विदेशों में क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर 20 प्रतिशत TCS (स्रोत पर कर संग्रह) लगाने के साथ-साथ भारतीयों द्वारा विदेशी बैंक खातों में छह महीने से अधिक समय तक धन रखने पर प्रतिबंध लगाने से ऐसे संकेत मिलते हैं कि किसी ने विदेशी व्यय और बचत के तरीके की विस्तार से जांच की है।
हालांकि, पहली नजर में ये उपाय ही भ्रमित करते हैं और दूसरी नजर में गौर करने पर लगभग समझ से परे हो जाते हैं। ऐसे में इस तरह के सवाल उठते हैं कि क्या यह कदम विदेश यात्रा को रोकने के लिए उठाया गया है? या क्या यह कर चोरी करने वालों को इस दायरे में लाने के लिए है? क्या यह विदेशों में निवेश को हतोत्साहित करने (या शायद प्रोत्साहित करने के लिए) है? क्या इससे सरकारी खजाने के लिए एक बड़ा ब्याज मुक्त पूंजी प्रवाह होगा? इन सभी के जवाब नकारात्मक प्रतीत होते हैं।
सबसे पहली बात तो यह है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो विदेशी मुद्रा वाले क्रेडिट कार्ड के साथ विदेश जाता हो और वह आयकर के दायरे से बाहर हो। टीसीएस के लागू होने से पहले ही 7 लाख रुपये के दायरे को देखते हुए इसकी गारंटी है।
इसके अलावा ऐसा कोई क्रेडिट-कार्ड लेनदेन भी नहीं है जो बैंकिंग और कर रिकॉर्ड में दिखाई नहीं देता है। भारत के बैंक खाते से विदेशी खाते में या विदेशी खाते से भारत के बैंक खाते में पूंजी मिलने की जानकारी स्वचालित तरीके से दर्ज हो जाती है। इसलिए, इन उपायों से कर चोरी करने वालों की पहचान नहीं की जा सकती है।
क्या इससे लोग यात्रा करना छोड़ देंगे? विदेश जाने वालों का एक बड़ा हिस्सा पढ़ाई करने या काम करने के लिए विदेश जाता। बाकी में से कई विदेशों में काम करने वाले बच्चों के साथ उन पर आश्रित माता-पिता होते हैं जिनका खर्च उनके बच्चे उठाते हैं। पर्यटकों का समूह बेहद छोटा है और वे अतिरिक्त खर्च वहन कर सकते हैं।
सवाल यह भी है कि क्या यह लोगों को उच्च स्तर की जोखिम वाली परिसंपत्तियों में विदेशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए है? यदि आप उन लोगों को रोकते हैं जो विदेश में कमाते हैं और अपना पैसा बैंक जमा में रखते हैं (जो कम जोखिम वाला निवेश है) तो आप उन्हें उच्च जोखिम/उच्च रिटर्न साधनों की तलाश करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यह वास्तव में उन लोगों को प्रेरित नहीं करता है जो विदेश में इसलिए कमाते हैं ताकि वे स्वदेश भेज सकें। न ही यह आयात पर कटौती करता है, उदाहरण के लिए, एमेजॉन से लीगो किट ऑर्डर करने पर टीसीएस लागू नहीं होता है।
क्या इन उपायों से सरकारी खजाने के लिए एक बड़ा ब्याज मुक्त पूंजी प्रवाह होगा? विदेशी पर्यटकों ने पिछले वित्त वर्ष में लगभग 7 अरब डॉलर खर्च किए और भारतीय छात्रों ने 5 अरब डॉलर या उससे अधिक खर्च किए।
इसमें से अधिकांश क्रेडिट कार्ड पर नहीं होगा, या यह 7 लाख रुपये की सीमा से नीचे होगा। इस कुल खर्च का 20 फीसदी हिस्सा करीब 20,500 करोड़ रुपये है जो पांच दिनों के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह के बराबर है। अब 7 लाख रुपये के न्यूनतम स्तर को देखते हुए टीसीएस, एक दिन या उससे भी कम अवधि के जीएसटी संग्रह के बराबर होने की संभावना है।
यदि आप इस पर निगाह रखने के लिए अतिरिक्त खर्चों की कमी पूरा करते हैं तब याद रखें कि इसे आखिरकार वापस ही किया जाना है तब ऐसे में एकत्र की गई राशि वास्तव में परेशानी उठाने के लायक नहीं है।
ऐसे में यह पूछना लाजिमी है कि क्या कोई गुप्त एजेंडा है? मेरे सामने जो सबसे अजीब सा स्पष्टीकरण आया है, वह यह है कि यह आयकर अधिकारियों को टीसीएस के रिफंड का लाभ उठाने की अनुमति देगा ताकि उन्हें उस प्रक्रिया को तेजी से निपटाने के साथ ही कुछ ‘चाय-पानी’ का खर्च निकल आए। लेकिन इस पर विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि सरकार गर्व से इस तथ्य को पेश करती है कि वह खुद को भारत की अब तक की सबसे कम भ्रष्ट सरकार मानती है।
एक षडयंत्र वाला सिद्धांत यह भी है कि इन उपायों से राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ाई जा सकती है और 2024 के चुनावों के लिए भारत में विदेश से पूंजी वापस लाने से रोका जा सकेगा। क्या राजनीतिक दल सामान्य मार्गों से पैसा भेजते हैं और इसे विदेशी बैंक खातों में तब तक रहने देते हैं जब तक कि इसका उपयोग चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए नहीं किया जाता है, या नकदी में बदला जाता है और हवाला मार्ग के माध्यम से देश में भेजा जाता है? लेकिन फिर, बैंकों में इस पैसे के पड़े रहने के बजाय इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिकी बॉन्ड खरीदने से रोकने के लिए क्या है?
एक अन्य ‘व्यावहारिक साजिश’ सिद्धांत बताता है कि यह नोटबंदी जैसा भावनात्मक चुनावी प्रयोग है। नोटबंदी एक आर्थिक आपदा थी लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीतने में यह एक प्रमुख कारक था। हालांकि मतदाताओं को काफी परेशानियां आईं लेकिन उनका मानना था कि यह परेशानी देशभक्ति जताने की दिशा में एक कर्तव्य के तौर पर था और उन्होंने उस सरकार के लिए मतदान किया जिसकी वजह से उन्हें परेशानी उठानी पड़ी।
इस तर्क को आगे बढ़ाया जाए तो जो लोग विदेशी टीसीएस का भुगतान करते हैं उन्हें परेशानी होगी लेकिन फिर भी वे उस सरकार को वोट देने को अपना देशभक्ति से जुड़ा कर्तव्य समझेंगे जिसकी वजह से इनकी परेशानी बढ़ी है।
एक सामान्य सिद्धांत है कि राजकोषीय नीतियां पारदर्शी होनी चाहिए और उनके उद्देश्य भी स्पष्ट होने चाहिए। यदि बड़े पैमाने पर नागरिकों को स्पष्टीकरण नहीं मिल पा रहा है तब सरकार या तो नीति निर्धारित करने में या इसे समझाने में नाकाम हो रही है।