नैनो यूरिया की सफलता के बाद, अब दूसरे सबसे अधिक खपत वाले उर्वरक डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) के नैनो संस्करण को जैव सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षणों में मंजूरी मिल गई है और इसके साथ ही अगले खरीफ सत्र में इसे खेतों में इस्तेमाल करने की औपचारिक स्वीकृति का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है। ये नवाचारी और स्वदेशी तौर पर विकसित तरल उर्वरक फसलों के जरूरी पोषण के लिए किए जाने वाले आयात और सरकारी सब्सिडी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने वाले साबित हो सकते हैं।
हकीकत तो यह है कि हमारा देश अगले कुछ वर्षों में उर्वरकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बारे में भी सोच सकता है क्योंकि तब तक उन उर्वरकों का नैनो संस्करण भी तैयार हो जाएगा जो फिलहाल परीक्षण के दौर से गुजर रहे हैं। इससे उर्वरक सब्सिडी के लिए किया जाने वाला आवंटन पूरी तरह तो समाप्त नहीं होगा लेकिन फिर भी उसमें काफी कमी आएगी। गौरतलब है कि इस वर्ष यह सब्सिडी बढ़कर 2.3 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो अब तक का उच्चतम स्तर है।
यह बढ़ोतरी इसलिए कि यूक्रेन-रूस संघर्ष के बाद उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ है। यहां तक कि गत वित्त वर्ष के दौरान भी उर्वरक सब्सिडी का बिल करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये रहा था। सरकार को अक्सर संसद से पूरक वित्तीय अनुदान लेना पड़ता है ताकि वह बढ़ते उर्वरक सब्सिडी बिल की भरपाई कर सके। अन्यथा उस बकाये को अगले वित्त वर्ष के लिए बढ़ा दिया जाता है। इससे उर्वरक उद्योग में नकदी का भीषण संकट व्याप्त हो जाता है।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि देश में अब तक वाणिज्यिक रूप से इस्तेमाल किए जा रहे हाई-टेक नैनो उर्वरक न केवल सामान्य उर्वरकों की तुलना में काफी सस्ते और प्रभावी हैं बल्कि उनके अलावा भी कई लाभ हैं। उनका पोषण इस्तेमाल अधिक किफायती होता है और वे मिट्टी की उर्वरता में सुधार करके उपज और फसल गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए खेतों में परीक्षण के दौरान नैनो यूरिया को 80 फीसदी तक किफायती पाया गया जो पारंपरिक यूरिया की तुलना में दोगुना है।
अनुमान है कि इसके इस्तेमाल से उपज में तीन से 16 फीसदी का इजाफा हुआ यानी किसानों को प्रति एकड़ करीब 2,400 रुपये से 5,700 रुपये का फायदा हुआ। नैनो यूरिया की एक बोतल में 500 मिलीलीटर तरल उर्वरक होता है और इसकी कीमत 240 रुपये है। यह कीमत भारी सब्सिडी पर मिलने वाले यूरिया के 45 किलो के बैग की तुलना में काफी कम है जबकि दोनों में समान मात्रा में नाइट्रोजन है।
नैनो-डीएपी की कीमत 600 रुपये प्रति बोतल रहेगी जो सामान्य डीएपी के 50 किलो के बैग के बराबर होगी। इस 50 किलो के बैग के लिए किसानों को 1,350 रुपये चुकाने होते हैं वह भी 2,000 रुपये से अधिक की भारी सब्सिडी के बाद। इसके अलावा नैनो उर्वरक तरल स्वरूप में होने के कारण छोटी बोतलों में आ जाते हैं जिन्हें लाना-ले जाना आसान होता है। इससे किसानों को भारी भरकम बोरियों की ढुलाई में लगने वाली लागत से बचाव होता है। ऐसे में ये उर्वरक फसल उत्पादन की लागत कम करने में मदद करेंगे और खेती का मुनाफा बढ़ाएंगे।
नैनो उर्वरकों का एक और लाभ जिसकी ज्यादा चर्चा नहीं होती है वह यह है कि पारंपरिक उर्वरकों की तुलना में ये पर्यावरण को बहुत कम हानि पहुंचाते हैं। पारंपरिक उर्वरक हवा, मिट्टी और पानी तीनों को प्रदूषित करते हैं। चूंकि ये विषाक्त नहीं होते और स्वास्थ्य एवं प्राकृतिक जैव विविधता को नुकसान नहीं पहुंचाते इसलिए ये उर्वरक कृषि क्षेत्र के ग्रीनहाउस उत्सर्जन में भी काफी कमी लाते हैं। पारंपरिक उर्वरकों की तुलना में नैनो उर्वरकों के इन तमाम सकारात्मक पहलुओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि इनको बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इनके लाभ इतने अधिक हैं कि ये सभी अंशधारकों के लिए लाभदायक साबित होंगे। खासतौर पर किसानों के लिए जिन्हें कच्चे माल में बचत होगी और सरकार को भी उर्वरकों पर कम सब्सिडी का बोझ उठाना होगा।