SEBI reforms 2024: वर्ष 2024 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने डेरिवेटिव सेगमेंट के उफान को रोकने, एसएमई सूचीबद्धता में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने तथा फंड प्रबंधन तंत्र को और व्यापक करने जैसे अहम सुधारों को लागू किया है। सबसे अहम बात यह कि सेबी ने एक ही दिन में निपटान की महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की है। ऐसा वैश्विक बाजार में पहली बार है। हालांकि इस वर्ष सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच को लेकर विवादों का सिलसिला चलता रहा और उन्हें हितों के टकराव से जुड़े मामले में आरोपों का सामना करना पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस विवाद ने सेबी के कुछ प्रमुख सुधारों की चमक छीन ली और एक तरह से सुधारों की प्रक्रिया पर विराम भी लगा।
छोटे निवेशकों के व्यापक नुकसान की चिंताओं के बीच सेबी ने डेरिवेटिव जुनून को रोकने के लिए छह उपाय लागू किए गए। हालांकि अभी इसकी शुरुआत ही है और कुछ उपायों को लागू करने के बाद वायदा एवं विकल्प सेगमेंट में कारोबार की मात्रा 30 प्रतिशत से अधिक घट गई है। केवल दो इंडेक्स डेरिवेटिव में साप्ताहिक एक्सपायरी जारी रखने और बाकी को खत्म करने का कदम सटोरियों पर भारी पड़ा।
कथित हेराफेरी और फर्जी लेन-देन के कई मामलों के बाद नियामक ने एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। इसके तहत छोटे एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) के लिए सूचीबद्धता और खुलासा नियम सख्त किए गए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि केवल बेहतर रिकॉर्ड वाली कंपनियां ही आईपीओ से रकम जुटाएं और सूचीबद्ध हों, इसके लिए सेबी ने कंपनियों की गुणवत्ता को लेकर कई पहल की हैं।
सेबी ने मार्च में वैकल्पिक आधार पर सेकंडरी बाजार में ट्रेडिंग पर उसी दिन निपटान (टी+0) शुरू करने का कदम उठाया। हालांकि इस नए कदम का मकसद निपटान जोखिमों को कम करना और बाजार दक्षता बढ़ाना था। लेकिन बीटा शेयरों में इसे सीमित संख्या में अपनाया गया। ब्रोकरों तथा बाजार प्रतिभागियों की तरफ से खास प्रतिक्रिया नहीं मिली।
भागीदारी बढ़ाने के लिए सेबी की योजना वर्ष 2025 में शीर्ष 500 शेयरों की पात्रता का विस्तार करने की है। साथ ही यह व्यवस्था वैकल्पिक होगी। इसी तरह सेबी सेकंडरी बाजार के लिए यूपीआई आधारित ब्लॉक प्रणाली लागू करने की कोशिश कर रहा है। इसका मकसद ग्राहकों की राशि की सुरक्षा करना है लेकिन इसका असर ब्रोकरों के पास आने वाली निवेशकों की राशि पर भी पड़ेगा।
वर्ष 2024 में ही नए म्युचुअल फंड परिसंपत्ति वर्ग का भी उभार हुआ है जो विविधतापूर्ण रणनीति की पेशकश कर सकेगा। इससे पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस) और वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) के बीच का अंतर कम होगा। इसमें 10 लाख रुपये के न्यूनतम निवेश का प्रावधान है। कई म्युचुअल फंड इस श्रेणी के लिए योजनाएं तैयार कर रहे हैं। लेकिन शुरुआत करने से पहले वे एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) की स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं।
बाजार नियामक ने वित्तीय क्षेत्र में गलत सूचनाओं के प्रसार पर भी सख्ती दिखाई है और उसने वित्तीय एन्फ्लूएंसरों पर लगाम लगाने के उपाय किए हैं। सेबी के कुछ प्रमुख कदमों में पंजीकृत संस्थानों को गैर-पंजीकृत खिलाड़ियों से जुड़ने पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय शामिल हैं ताकि पारदर्शिता को बढ़ावा मिलने के साथ ही निवेशकों की सुरक्षा होसके।
केटैलिस्ट एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक केतन दलाल का कहना है, ‘अब वर्ष खत्म हो रहा है। सेबी ने नियमन बनाने और उनमें संशोधन के लिए सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया को संहिताबद्ध करने की घोषणा की है। इसके साथ ही इसे स्वीकारने और नहीं स्वीकारने के तर्क को भी सार्वजनिक किया जाएगा जो वैधानिक प्रक्रिया का अहम पहलू है।’