अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में 50 आधार अंक की कटौती के बाद दुनिया भर की परिसंपत्ति वर्गों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। बुधवार को अमेरिकी शेयर बाजार गिरकर बंद हुए। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाजिर सोने का हाल भी ऐसा ही रहा। हालांकि एशियाई शेयरों में गुरुवार सुबह ठीक-ठाक तेजी रही और भारतीय शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए।
विश्लेषकों ने कहा कि यह रुख फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जीरोम पॉवेल के बड़ी कटौती के साथ दरों में नरमी का चक्र शुरू करने के कारण देखने को मिला, लेकिन फिर उन्होंने यह भी कह दिया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है। इस बयान से निवेशक थोड़े समय के लिए सतर्क रह सकते हैं। विश्लेषकों ने कहा कि अमेरिकी अभी मंदी के करीब नहीं है लेकिन आर्थिक नरमी के संकेत हैं, जिससे आने वाले समय में दर कटौती की रफ्तार तय होगी।
एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज ने कहा कि बाजार साल 2024 में करीब 60 आधार अंक और 2025 में 150 आधार अंकों की कटौती मानकर चल रहा है, जो फेड के अनुमान से काफी ज्यादा है। ज्यादातर परिसंपत्ति वर्गों ने रातोरात अपनी बढ़त गंवा दी क्योंकि पॉवेल ने आने वाले समय में बड़ी कटौती की उम्मीदों को लेकर सतर्क कर दिया।अमेरिकी दर कटौती विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों को आकार दे सकती है और इस लिहाज से निवेशकों को अपने-अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करना पड़ सकता है।
इक्विटी पर असर
जूलियस बेयर इंडिया के प्रबंध निदेशक और वरिष्ठ सलाहकार उमेश कुलकर्णी ने कहा कि अमेरिकी इक्विटी बाजारों ने ऐतिहासिक तौर पर बेहतर किया है जब फेड की दर कटौती का चक्र अमेरिका की मजबूत अर्थव्यवस्था के दौरान शुरू हुआ था। उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक माहौल अभी इक्विटी के अनुकूल है। हालांकि आगामी अमेरिकी चुनावों को लेकर अनिश्चितता, अमेरिका में आर्थिक मंदी को लेकर चिंता और अन्य भूराजनीतिक कारकों के चलते इक्विटी बाजार में उतारचढ़ाव ज्यादा रह सकता है।
उभरते बाजारों की इक्विटी का रुख इस पर निर्भर करेगा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सख्ती की ओर बढ़ रही है या नरम उधारी (मंदी)की ओर। कुलकर्णी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था हालांकि मजबूत है लेकिन भाव महंगे हैं और इस कारण अल्पावधि में बढ़त सीमित रह सकती है। अगर वैश्विक स्तर पर उधारी दरों में इजाफे की संभावना बढ़ती है तो भारतीय इक्विटी में ज्यादा उतार-चढ़ाव दिख सकता है।
विश्लेषकों के मुताबिक फेड की कटौती से दुनिया के डेट मार्केट में तेजी आ सकती है, जिससे नकदी में सुधार आएगा और इससे कारोबारों और उपभोक्ताओं के लिए उधारी सस्ती हो जाएगी। दर कटौती से डॉलर कमजोर हो सकता है और अमेरिकी बॉन्ड के लिए विदेशी मांग बढ़ सकती है। हालांकि भारत में बॉन्ड बाजार पर नजर रखने वालों को रिजर्व बैंक से तत्काल दर कटौती की उम्मीद नहीं दिखती। लेकिन उन्होंने कहा कि आरबीआई के रुख में तत्काल बदलाव की संभावना से पूरी तरह इनकार भी नहीं किया जा सकता।
फिस्डम के विश्लेषकों ने भारतीय निवेशकों को लंबी अवधि के बॉन्डों में निवेश बढ़ाने की सलाह दी है ताकि वे पूंजी में संभावित बढ़ोतरी का लाभ ले सकें क्योंकि प्रतिफल में गिरावट के साथ बॉन्ड की कीमतें बढ़ती हैं।
अनुमान के उलट फेड की दर कटौती के बाद सोने पर थोड़ा दबाव आया। बुधवार को 2,618 डॉलर प्रति आउंस की सर्वोच्च ऊंचाई छूने के बाद सोना गुरुवार को 2,587 डॉलर प्रति आउंस रहा। मोटे तौर पर सोना तब चमकता है जब दरों में कटौती का चक्र मंदी के माहौल के साथ आता है।
फेड ने निवेशकों को मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर आश्वस्त किया है लेकिन विश्लेषक 50 आधार अंकों की कटौती को मंदी से लड़ने के लिए केंद्रीय बैंक का पहला कदम मान रहे हैं। ऐसे में पश्चिमी दुनिया में तेल की मांग स्थिर हो सकती है।
जूनिलस बेयर के उमेश कुलकर्णी ने कहा कि चीन में तेल के बढ़ते उत्पादन के बीच पेट्रो देश अपनी कटौती को धीरे धीरे कम कर सकते हैं क्योंकि बाजार हिस्सेदारी को लेकर प्रतिस्पर्धा गरमा रही है। भूराजनीतिक कारणों से कीमतों में बढ़ोतरी सामान्य तौर पर अल्पावधि के लिए होती है और भूराजनीतिक हालात बहुत ज्यादा खराब न होने से तेल की कीमतों में गिरावट का मौजूदा रुख थोड़ा और खिंच
सकता है।