वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने सोमवार को भारत की दीर्घकालिक विदेशी मुद्रा जारीकर्ता डिफॉल्ट रेटिंग (Long-term Foreign-Currency Issuer Default Rating) को ‘BBB-‘ पर बरकरार रखा है, जबकि आउटलुक को “स्थिर” बताया है। फिच ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि, मजबूत बाह्य वित्तीय स्थिति और सुधारवादी नीतियों को इस रेटिंग को बनाए रखने का मुख्य आधार बताया है।
फिच ने अपने बयान में कहा, “भारत की रेटिंग मजबूत आर्थिक वृद्धि और ठोस बाह्य वित्तीय स्थिति से समर्थित है।” एजेंसी ने वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए भारत की GDP वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान जताया है, जो वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) के समान है। यह वृद्धि दर ‘BBB’ श्रेणी के देशों की औसत वृद्धि दर (2.5%) से कहीं अधिक है।
फिच का कहना है कि भारत का आर्थिक परिदृश्य अपने समकक्ष देशों की तुलना में बेहतर बना हुआ है, भले ही पिछले दो वर्षों में इसमें थोड़ी नरमी आई हो। एजेंसी ने कहा कि घरेलू मांग मजबूत बनी हुई है, जिसे सरकार के पूंजीगत व्यय और स्थिर निजी खपत से बल मिल रहा है। हालांकि, निजी निवेश में थोड़ी नरमी बनी रहने की आशंका जताई गई है।
फिच ने अमेरिका द्वारा प्रस्तावित उच्च टैरिफ को संभावित खतरे के रूप में चिन्हित किया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयातित वस्तुओं पर शुल्क को दोगुना कर 50% तक करने की चेतावनी दी है, जो 27 अगस्त से प्रभावी हो सकते हैं। इन टैरिफ्स का मकसद भारत के रूस से तेल आयात को नियंत्रित करना बताया गया है।
“उच्च अमेरिकी टैरिफ हमारी अनुमानित वृद्धि दर के लिए मध्यम जोखिम हैं,” फिच ने कहा। इससे भारत की चीन से हटती वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से लाभ उठाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
फिच ने कहा कि यदि प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (GST) सुधारों को लागू किया जाता है, तो यह उपभोग को समर्थन दे सकता है और कुछ आर्थिक जोखिमों की भरपाई कर सकता है। केंद्र सरकार ने GST दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए एक दो-स्तरीय ढांचा प्रस्तावित किया है, जिसमें 5% और 18% की दरें ‘मेरिट’ और ‘स्टैंडर्ड’ वस्तुओं व सेवाओं के लिए तय की गई हैं, जबकि 5-7 वस्तुओं पर 40% की उच्च दर लागू करने का प्रस्ताव है। इसके अंतर्गत वर्तमान में लागू 12% और 28% की दरों को समाप्त करने की योजना है।
फिच ने भारत की वित्तीय स्थिति में कुछ कमजोरियों की ओर भी इशारा किया। एजेंसी ने कहा कि “भारत के उच्च राजकोषीय घाटे और कर्ज का स्तर ‘BBB’ श्रेणी के अन्य देशों की तुलना में अधिक है, जो उसकी रेटिंग के लिए एक बाधा है।” इसके साथ ही, कमजोर संरचनात्मक मानक जैसे कि शासन से जुड़े संकेतक और प्रति व्यक्ति GDP भी रेटिंग पर दबाव डालते हैं।
हालांकि, एजेंसी को विश्वास है कि भारत द्वारा लगातार दी जा रही आर्थिक स्थिरता और मजबूत वृद्धि, साथ ही सुधारों की दिशा में प्रयास, आने वाले वर्षों में इसके संरचनात्मक संकेतकों में सुधार ला सकते हैं।
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यह फिच की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिन पहले, 14 अगस्त को, S&P ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को एक पायदान बढ़ाकर ‘BBB-‘ से ‘BBB’ कर दिया था। यह पिछले 18 वर्षों में भारत की रेटिंग में S&P की पहली बढ़ोतरी थी।
तब आर्थिक मामलों की सचिव अनुराधा ठाकुर ने उम्मीद जताई थी कि अन्य रेटिंग एजेंसियां भी S&P के इस फैसले को ध्यान में रखेंगी और भारत की आर्थिक वास्तविकताओं को देखते हुए अपनी रेटिंग्स में बदलाव करेंगी।
फिच रेटिंग्स का भारत के लिए ‘BBB-‘ रेटिंग के साथ स्थिर आउटलुक बनाए रखना इस बात का संकेत है कि वैश्विक एजेंसियां भारत की विकास संभावनाओं को लेकर आश्वस्त हैं, हालांकि सुधारों की गति और वैश्विक जोखिमों के बीच संतुलन बनाए रखना सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना रहेगा।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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