इक्विटी के डेरिवेटिव कारोबार में अच्छी-खासी तादाद में रिटेल ट्रेडर घाटे में रहे हैं। बाजार नियामक सेबी के विश्लेषण के अनुसार पिछले तीन वित्त वर्ष में उनमें से 93 फीसदी ने औसतन 2 लाख रुपये (प्रति ट्रेडर) नुकसान उठाया है। नई रिपोर्ट में वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) में नुकसान उठाने वाले वैयक्तिक निवेशकों की संख्या वित्त वर्ष 24 में 91.1 फीसदी हो गई जो वित्त वर्ष 22 में 89 फीसदी थी।
एफऐंडओ सेगमेंट के नियमन के लिए बाजार नियामक नीति को आकार दे रहा है जिसमें ये आंकड़े काफी अहम हो जाते हैं। इस सेगमेंट में रोजाना का कारोबार अक्सर 500 लाख करोड़ रुपये के पार चला जाता है। सेबी ने सात अहम उपायों का प्रस्ताव किया है। उसका मकसद खुदरा भागीदारी कम करना और डेरिवेटिव बाजार में सटोरिया गतिविधियों पर लगाम कसना है। इन प्रस्तावों पर इस महीने के आखिर में होने वाली बोर्ड बैठक में मंजूरी मिलने की संभावना है।
भारतीय रिजर्व बैंक समेत वित्तीय नियामकों ने डेरिवेटिव मार्केट के जोखिमों और नुकसान की ज्यादा संभावना को लेकर निवेशकों को बार-बार सचेत किया है। रिपोर्ट में एक अहम चिंता यह जताई गई है कि लगातार वर्षो के नुकसान के बावजूद घाटा उठाने वाले तीन चौथाई से ज्यादा ट्रेडरों ने एफऐंडओ में अपनी गतिविधियां जारी रखीं।
एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर में रोजाना का औसत कारोबार बढ़कर 540 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया जो एक साल पहले करीब 360 लाख करोड़ रुपये रहा था। एफऐंडओ ट्रेडरों में 99.8 फीसदी वैयक्तिक निवेशक हैं। वित्त वर्ष 24 के कुल कारोबार में इनका योगदान हालांकि महज 30 फीसदी रहा। पिछले दो साल में रिटेल ट्रेडरों की संख्या वित्त वर्ष 22 के 51 लाख के मुकाबले वित्त वर्ष 24 में बढ़कर 96 लाख हो गई।
सेबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एफऐंडओ सेगमेंट में वैयक्तिक ट्रेडरों की भागीदारी में इजाफे ने इस योजना की सही होने और वैयक्तिक निवेशकों के लिए सुरक्षा की जरूरत पर बहस छेड़ दी है। वित्त वर्ष 24 में करीब 73 लाख वैयक्तिक निवेशकों ने शुद्ध रूप से औसतन 1.2 लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से रकम गंवाई जिसमें लेनदेन लागत भी शामिल है।
इसके उलट विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और प्रोप्राइटरी ट्रेडरों ने वित्त वर्ष 24 में क्रमश: 28,000 करोड़ रुपये व 33,000 करोड़ रुपये का सकल ट्रेडिंग लाभ अर्जित किया। इस मामले में अल्गो ट्रेडरों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर लाभ बड़ी इकाइयों ने अर्जित किया जो अल्गोरिदम का इस्तेमाल करती हैं। साथही एफपीआई के लाभ का 97 फीसदी और प्रोप्राइटरी ट्रेडरों के लाभ का 96 फीसदी अल्गो ट्रेडिंग से ही आता है। बाजार के कुछ निश्चित प्रतिभागियों ने खुदरा निवेशकों की घरेलू बचत की कीमत पर भारतीय बाजार से विदेशी अल्गो ट्रेडरों के मुनाफा काटने पर चिंता जताई है।
वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 24 के बीच यानी तीन वर्षों में 1.13 करोड़ ट्रेडरों का कुल नुकसान तीन साल की अवधि में 1.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया। अकेले वित्त वर्ष 24 में वैयक्तिक ट्रेडरों ने करीब 75,000 करोड़ रुपये का शुद्ध नुकसान दर्ज किया है।
नुकसान उठाने वाले अग्रणी 4 लाख ट्रेडरों ने पिछले तीन वित्त वर्ष में प्रति व्यक्ति 28 लाख रुपये का औसत नुकसान दर्ज किया। सिर्फ 7.2 फीसदी वैयक्तिक एफऐंडओ ट्रेडरों ने तीन साल की अवधि में मुनाफा कमाया जबकि सिर्फ एक फीसदी वैयक्तिक ट्रेडर लेनदेन की लागत समायोजित करने के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा लाभ अर्जित करने में सफल रहे।
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि नुकसान दर्ज करने वाले 75 फीसदी से ज्यादा वैयक्तिक ट्रेडरों ने अपनी सालाना आय 5 लाख रुपये से कम घोषित की है। इसके अलावा 30 साल से कम आयु वाले ट्रेडरों का अनुपात वित्त वर्ष 23 के 31 फीसदी के मुकाबले वित्त वर्ष 24 में 43 फीसदी पर पहुंच गया।