पोर्टफोलियो में परिसंपत्ति आवंटन की समीक्षा और उसमें फेरबदल या संतुलन की जरूरत की जांच-पड़ताल करने के बाद अगला कदम प्रदर्शन के मूल्यांकन पर जाकर टिकता है। किसी फंड श्रेणी का औसत प्रतिफल (रिटर्न) अक्सर उसमें शामिल फंडों के अलग-अलग रिटर्न में अंतर पर पर्दा डाल देता है।
उदाहरण के लिए लार्ज कैप फंड की बात करें तो पिछले वर्ष इस श्रेणी का औसत रिटर्न 3.8 प्रतिशत रहा है जबकि सबसे मजबूत प्रदर्शन करने वाले फंड ने 9.6 प्रतिशत रिटर्न दिया है। दूसरी तरफ सबसे कमजोर फंड ने -6.4 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। इस तरह का भारी अंतर को देखते हुए समय-समय पर पोर्टफोलियो में पिछड़ने वालों की पहचान कर उन्हें बेदखल करना जरूरी हो जाता है।
इस सिलसिले की शुरुआत इस पड़ताल के साथ करें कि किसी फंड ने अपने मानक सूचकांक या बेंचमार्क के मुकाबले कैसा प्रदर्शन किया है। प्राइमइन्वेस्टर डॉट कॉम की सलाहकार प्रमुख आरती कृष्णन का कहना है,‘तुलना के लिए सही बेंचमार्क चुनें और जल्दबाजी में ऐसा न करें और भरपूर समय दें।’ ठीक-ठाक अवधि के बाद इस नतीजे पर पहुंचने में मदद मिलती है कि किसी फंड ने बाजार में तेजी और गिरावट दोनों समय में अपने बेंचमार्क को मात देने में सफल रहा है।
अधिकांश भारतीय सूचकांक बाजार-पूंजीकरण को महत्त्व देते हैं और बेहतर प्रदर्शन करने वालों शेयरों को स्वतः ही शामिल कर लेते हैं और पिछड़ने वालों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। शुरुआती शेयर निवेशकों को कम समय में बेंचमार्क को पीछे छोड़ पाना मुश्किल होता है। कृष्णन का कहना है,‘दीर्घ अवधि में धन सृजन मजबूत शेयरों को उचित मूल्य पर खरीदने से होता है। यह कमाई बढ़ता है। निवेशकों को यह पता लगाना चाहिए कि उनके फंड प्रबंधकों के पास ये कौशल हैं या नहीं।’
किसी फंड के 1, 3, 5 और 10 वर्षों के रिटर्न की उसके बेंचमार्क से तुलना करने से निरंतरता का अनुमान लगाने में मदद मिलती है। कैप्चर रेश्यो (शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान म्युचुअल फंड के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कैप्चर रेश्यो का इस्तेमाल किया जाता है)भी फंडों को समझने में मददगार होते हैं।
पीजीआईएम इंडिया ऐसेट मैनेजमेंट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिषेक तिवारी का कहना है,‘100 से अधिक का कैप्चर रेश्यो बताता है कि बेंचमार्क के सकारात्मक रिटर्न की अवधि के दौरान किसी निवेश ने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन किया है। 100 से कम का कैप्चर रेश्यो बताता है कि जब बेंचमार्क में गिरावट रही है तो किसी निवेश को अपने बेंचमार्क से कम नुकसान हुआ है।’
बेंचमार्क से तुलना के बाद समकक्ष फंडों के साथ रिटर्न की तुलना की जानी चाहिए। प्रूडेंट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स एलएलपी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रशस्त सेठ कहते हैं, ‘श्रेणी से तुलना निवेशकों को यह समझने में मदद करती है कि किसी फंड ने समान खूबियों वाले फंडों की तुलना में कैसा प्रदर्शन किया है।’
समकक्ष फंडों को भी समान अवसरों का लाभ मिलता है और बाधाओं से रूबरू होना पड़ता है। यह तुलना बताती है कि क्या किसी फंड का प्रदर्शन वास्तविक कौशल या व्यापक बाजार की गति दर्शाता है। कृष्णन आगाह करते हैं कि एक फंड की तुलना समान निवेश शैली और जोखिम वाले फंडों से की जानी चाहिए।
वह कहती हैं, एक मूल्य-उन्मुख फ्लेक्सी कैप फंड मजबूत बाजार में अपने ही जैसे दूसरे फंडों से पीछे रह सकता है लेकिन स्थिर दीर्घकालिक रिटर्न दे सकता है, जबकि कम कारोबार करने वाले शेयर में निवेश करने वाला एक स्मॉल कैप फंड तेजी से चढ़ते बाजार में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है लेकिन मंदी के दौरान तुरंत फिसल भी सकता है।
रिटर्न पर लगातार नजर रखने से पता चलता है कि फंड विभिन्न अवधियों में कितनी बार अपने बेंचमार्क से आगे रहा है। तिवारी कहते हैं, ‘उदाहरण के लिए 60 रोलिंग अवधियों में से कोई फंड 45 मौकों पर या अवधियों में (75 प्रतिशत) बेंचमार्क को हराता है तो वह मजबूत कहलाता है जबकि कोई दूसरा फंड 18 अवधियों (30 प्रतिशत) में ही बेंचमार्क को पीछे छोड़ पाता है तो उसे रिटर्न के लिहाज से कमजोर माना जाता है।’
रोलिंग रिटर्न निरंतरता की स्पष्ट झलक पेश करता है। चमत्कार वश या अत्यधिक जोखिम लेने से अल्पकालिक प्रदर्शन बेहतर हो सकता है। कृष्णन कहते हैं,‘जब आप लंबी अवधि के रोलिंग रिटर्न को देखते हैं तो डेटा में अचानक लाभ या किसी चमत्कार का अधिक योगदान कम दिखने लगता है। इसस सभी बाजार परिस्थितियों में प्रदर्शन करने की फंड की वास्तविक क्षमता का अनुमान लगाने में मदद करता है।’
ट्रस्ट म्युचुअल फंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संदीप बागला कहते हैं कि रोलिंग रिटर्न समय से जुड़े पूर्वग्रह या पहलू समाप्त कर देता है। रोलिंग रिटर्न विभिन्न परिस्थितियों में प्रदर्शन करने की परिसंपत्ति प्रबंधक की क्षमता का भी मूल्यांकन करते हैं। सेठ का कहना है, ‘एक फंड जो 65-75 प्रतिशत समय अवधियों में सकारात्मक रोलिंग रिटर्न बनाए रखता है वह दीर्घकालिक और ठोस निवेश नजरिये को दर्शाता है।’
जोखिम को समझे बिना रिटर्न का अंदाजा लगाना भ्रामक हो सकता है। हो सकता है एक फंड ने अधिक रिटर्न दिया होगा लेकिन अत्यधिक जोखिम भी उठाया होगा। बागला का कहना है, ‘उच्च अस्थिरता का मतलब है कि निवेशक जिस समय बाहर निकलना चाहते हैं उस समय एनएवी अत्यधिक कम रह सकता है।’जोखिम एक और अहम कारण से मायने रखता है।
कृष्णन कहती हैं, ‘पूंजी नुकसान से उबरने में बहुत मेहनत लगती है। मसलन 50 प्रतिशत नुकसान की भरपाई करने के लिए पोर्टफोलियो को 100 प्रतिशत तक बढ़त हासिल करने की जरूरत होती है।’रिटर्न औसत रिटर्न से कितना भिन्न रहा इसका अनुमान मानक विचलन से पता चलता है। अधिक उतार-चढ़ाव से निवेशकों के लिए उथल-पुथल भरी हो जाती है और उनके बीच अनिश्चितता भी बढ़ जाती है।
तिवारी का कहना है,‘निवेशकों को एक ऐसा फंड अधिक ठीक लगता है जो कम जोखिम के साथ समान रिटर्न देने की क्षमता रखता है।’
शार्प रेश्यो से इस बात का पता चलता है कि कोई फंड जोखिम लेने के लिए निवेशकों को कितनी कुशलता से मुआवजा देता है। बागला का कहना है कि एक उच्च शार्प रेशियो अस्थिरता के बदले अधिक लाभ मिलने का संकेत होता है। कृष्णन का कहना है कि शार्प रेश्यो को इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए 1 से ऊपर होना चाहिए कि फंड ने जोखिमों के एवज में पर्याप्त रिटर्न दिया है।
सक्रिय फंड प्रबंधक भी एक विशेष शैली का पालन करते हैं जिनमें मूल्य, तेजी, गुणवत्ता आदि होते हैं जो कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल रह सकते हैं। तिवारी कहते हैं,‘अस्थायी तौर पर कमजोर प्रदर्शन फंड की शैली के कारण हो सकता है जो किसी खास अवधि में कारगर नहीं रहती है’।
सेठ कहते हैं कि एक मूल्य-केंद्रित फंड बाजार में तेजी के दौरान पिछड़ सकता है लेकिन अपना नजरिया बदलने के बाद स्वयं को तेजी से दुरुस्त भी कर सकता है। उनका कहना है कि यदि किसी फंड के निवेश का तौर-तरीका, प्रबंधन और उसकी पोर्टफोलियो गुणवत्ता बरकरार रहती है तो अस्थायी कमजोरी आम तौर पर चिंता का कारण नहीं होता है।
कृष्णन के अनुसार यह जानने के लिए कोई आसान तय नियम नहीं है कि किसी फंड का कमजोर प्रदर्शन अस्थायी है या इसकी बुनियादी कमजोरी का नतीजा है। वह कहती हैं,‘अगर किसी फंड में एक अनुभवी प्रबंधक है जिन्होंने बाजार में विभिन्न परिस्थितियों में अपना हुनर साबित किया है और फंड के मकसद का पालन करता रहा है तो निवेशक यह मान सकते हैं कि रिटर्न में कमी अस्थायी है।’कमजोर प्रदर्शन की हद भी मायने रखती है। कृष्णन कहती हैं,‘अगर कोई फंड अपने समकक्ष फंडों की तुलना में 1-2 प्रतिशत अंक पीछे चल रहा है तो यह अंतर पाटा जा सकता है मगर 5 प्रतिशत अंक पीछे है तो तत्काल कदम उठाने की जरूरत होती है।’
फंडों के कमजोर प्रदर्शन करने के दौर में निवेशकों को धैर्य रखना चाहिए। तिवारी कहते हैं कि बिना सोचे समझे जल्दबाजी में निवेश नहीं निकालना चाहिए और अपने फंड को नुकसान की भरपाई करने का अवसर देना चाहिए। बागला आगाह करते हैं कि फंडों में बार-बार बदलाव करने से कर से जुड़े लाभ भी गायब हो जाते हैं। बागला के अनुसार निवेशकों को कम से कम एक साल इंतजार करना चाहिए।
सेठ का सुझाव है कि कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए उस पर दो से तीन तिमाहियों तक नजर बनाई रखनी चाहिए ताकि यह पता चल पाए कि रोलिंग रिटर्न और समकक्ष रैंकिंग में सुधार होता है या नहीं। उनका कहना है,‘अगर फंड स्थिर बाजार में भी 12-18 महीनों तक अपने बेंचमार्क और श्रेणी से पीछे रहता है तो उसकी कमजोर बुनियादी हो सकती है।’
फंड्सइंडिया में वरिष्ठ प्रबंधक (शोध) की जीरल मेहता का कहना है अगर बिना कोई फंड बिना किसी स्पष्ट कारण से 3-4 तिमाहियों तक अपने समकक्ष फंडों और बेंचमार्क से पीछे रहता है या जोखिम मानक बिगड़ते जाते हैं और फेरबदल का सिलसिला शुरू हो जाता है या फिर फंड निवेशक के मकसद से मेल नहीं खाता है तो निवेशकों को बाहर निकलने का विकल्प आजमाना चाहिए।’
व्यय अनुपात सीधे रिटर्न को प्रभावित करता है। सैंक्टम वेल्थ के निवेश उत्पाद प्रमुख आलेख यादव कहते हैं,‘एक उच्च व्यय अनुपात का मतलब है कि फंड को प्रतिस्पर्द्धी शुद्ध रिटर्न देने के लिए मजबूत सकल रिटर्न हासिल करना होगा। यही कारण है कि व्यय कम रखना जरूरी है।’हालांकि, उनका कहना है कि अंततः जो बात मायने रखती है वह है शुद्ध रिटर्न। अगर फंड बेहतर शुद्ध रिटर्न देने में कामयाब रहता है तो अधिक खर्च को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है।
किसी फंड प्रबंधक के निकलने का यह मतलब नहीं है कि निवेशकों को निवेश खींच लेना चाहिए। पर्याप्त प्रबंधन कौशल रखने वाले लोगों की मौजूदगी वाली सटीक तौर-तरीका अपनाने वाली फंड कंपनी अपना प्रदर्शन लगातार बेहतर बनाए रख सकती है। यादव का कहना है कि ऐसी फंड कंपनियों के मामले में निवेशकों को इंतजार करना चाहिए और फंड को स्थिर होने का समय देना चाहिए।
हालांकि, प्रदर्शन में लगातार गिरावट की सूरत में बाहर निकला जा सकता है। रणनीति में बदलाव को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह तब होता है जब कोई फंड अपने घोषित मकसद से विचलित हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर एक वैल्यू फंड तेजी से चढ़ने वाले शेयरों पर दांव खेलने लगता है या एक लार्ज कैप फंड मिड या स्मॉल कैप में निवेश करने लगता है तो इसे रणनीति से भटकाव कहा जा सकता है।
यादव कहते हैं,‘यह खतरे की घंटी है क्योंकि प्रबंधक अपनी विशेषज्ञता से बाहर जाकर दांव खेल रहा होता है। इससे फंड का जोखिम-रिटर्न अनुपात बदल सकता है और यह निवेशक के समग्र परिसंपत्ति आवंटन को नुकसान पहुंचा सकता है।’
जब कोई फंड निवेशक के मकसद के लिए माकूल नहीं रह जाता है या उसे रकम की जरूरत होती है तो तत्काल निकलना जरूरी हो सकता है। अन्य स्थितियों में जैसे कोई निवेशक बेहतर विकल्प की तलाश कर रहा है तो वह चरणबद्ध तरीके से निवेश भुनाकर कर देनदारी से निपट सकता है।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)