वैश्विक कच्चे तेल (Crude Oil) बाजार में इन दिनों सप्लाई की अधिकता (Supply Glut) देखने को मिल रही है। यही वजह है कि पिछले दो हफ्तों में तेल की कीमतों में करीब 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी जारी है और रूस की करीब 20 फीसदी रिफाइनिंग क्षमता (5.2 मिलियन बैरल प्रति दिन) प्रभावित है, इसके बावजूद दामों में गिरावट जारी है। WTI क्रूड 4 महीने के निचले स्तर पर $60 प्रति बैरल से नीचे चला गया है, वहीं ब्रेंट क्रूड की कीमत $63 प्रति बैरल तक लुढ़क गई है, जो इस साल की शुरुआत से अब तक 16 फीसदी की गिरावट है।
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट मोहम्मद इमरान के मुताबिक, सितंबर 2025 के अंत तक वैश्विक बाजार में तेल की 0.7 से 0.8 मिलियन बैरल प्रति दिन (mbpd) की अधिक सप्लाई है। इसकी बड़ी वजह OPEC+ देशों द्वारा उत्पादन बहाली (restoration) है, जिससे अप्रैल से सितंबर के बीच वैश्विक सप्लाई 2.5% बढ़ी है। IEA की सितंबर रिपोर्ट के अनुसार, शॉर्ट टर्म में बाजार बैलेंस्ड दिख रहा है, लेकिन 2026 तक 3.33 मिलियन बैरल प्रतिदिन की सरप्लस सप्लाई की आशंका जताई गई है। वहीं 2025 में मांग वृद्धि सिर्फ 7.4 लाख बैरल प्रतिदिन रहने का अनुमान है। दूसरी ओर, Non-OPEC+ देशों, खासतौर पर अमेरिका से सप्लाई में 2.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन की बढ़ोतरी होने की संभावना है, जिससे जुलाई में ही 26.5 मिलियन बैरल का अतिरिक्त स्टॉक बन गया।
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अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर ने भी बाजार में अनिश्चितता बढ़ा दी है। 10 अक्टूबर को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर 100% टैक्स लगाने की धमकी दी, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन को झटका लग सकता है। हालांकि 13 अक्टूबर को दोनों देशों के बीच फिर से बातचीत शुरू हुई, लेकिन बाजार अब भी सतर्क है कि कहीं यह तनाव फिर न बढ़ जाए।
एशिया के दो बड़े उपभोक्ता देश। भारत और चीन, वैश्विक तेल की मांग का 21% हिस्सा रखते हैं। जहां भारत में मांग घरेलू आर्थिक गतिविधियों की मजबूती के कारण अच्छी बनी हुई है, वहीं चीन की मांग कमजोर पड़ रही है। चीन की GDP ग्रोथ 4.6% तक सीमित है, इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ रही है (नई कारों में 50% EVs), और ट्रांसपोर्ट फ्यूल की खपत लगभग स्थिर है। सितंबर में चीन के क्रूड ऑयल इंपोर्ट्स 47.25 मिलियन टन (11.5 mbpd) रहे। जो अगस्त की तुलना में 4.5% कम लेकिन पिछले साल से 3.9% ज्यादा हैं। इस साल अब तक (YTD) चीन ने 423 मिलियन टन तेल आयात किया है, जो 2.6% की साल-दर-साल वृद्धि है।
3 अक्टूबर 2025 को इजरायल और हमास के बीच हुए सीजफायर समझौते ने तेल बाजार में राहत दी है। इसके बाद 9 अक्टूबर को WTI की कीमतों में 1.7% की गिरावट देखी गई। यह समझौता पिछले दो साल से जारी संघर्ष को खत्म करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
हालांकि ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव से बाजार अभी भी चिंतित है, क्योंकि यदि संघर्ष बढ़ा, तो स्ट्रेट ऑफ होरमुज (जहां से दुनिया के 20% तेल की सप्लाई होती है) प्रभावित हो सकती है। जिससे $5–$10 प्रति बैरल तक की अतिरिक्त कीमत जुड़ सकती है।
अमेरिका ने 2025 में रिकॉर्ड उत्पादन किया है। जुलाई में अमेरिकी क्रूड उत्पादन 13.6 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच गया, जो अब तक का हाई है। EIA रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की 2025 और 2026 की उत्पादन अनुमानित औसत 13.53 और 13.51 mbpd रहेगा। वहीं गल्प ऑफ मैक्सिको क्षेत्र से भी उत्पादन बढ़कर 1.89 mbpd होने की उम्मीद है। यह बढ़ती सप्लाई वैश्विक बाजार में कीमतों पर दबाव डाल रही है।
मोहम्मद इमरान के अनुसार, पिछले दो हफ्तों के डेटा से साफ है कि तेल बाजार पर मंदी का रुख (bearish outlook) बना हुआ है।
अधिक सप्लाई
अमेरिका-चीन तनाव
मध्य पूर्व में शांति प्रक्रिया से जोखिम प्रीमियम का कम होना
और अमेरिकी उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचना। ये सभी कारक मिलकर तेल की कीमतों पर दबाव डाल रहे हैं।
उनका अनुमान है कि 2025 के अंत तक WTI की औसत कीमत $56 प्रति बैरल रह सकती है, जबकि निकट अवधि में कीमतें $57–$62 प्रति बैरल के दायरे में रह सकती हैं।