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रुपये की रिकॉर्ड कमजोरी से विदेशी निवेश पर बढ़ा दबाव, व्यापार समझौते और आय सुधार पर टिकी उम्मीदें

बुधवार को रुपया पहली बार 90 के स्तर को पार कर गया और 90.30 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छूने के बाद 90.19 पर बंद हुआ

Last Updated- December 03, 2025 | 9:30 PM IST
rupees dollar

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) के निवेश पर दबाव बने रहने की संभावना है क्योंकि कॉरपोरेट आय में सुधार और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर प्रगति को निकासी में किसी भी उलटफेर के लिए अहम माना जा रहा है।

बुधवार को रुपया पहली बार 90 के स्तर को पार कर गया और 90.30 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छूने के बाद 90.19 पर बंद हुआ। विश्लेषकों ने इस कमजोरी का कारण कम निर्यात (जो कई भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी तक के अमेरिकी व्यापार शुल्क से प्रभावित है) और लगातार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली को बताया।

विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये में कमजोरी से एफपीआई निवेश के निकट भविष्य के परिदृश्य पर असर पड़ सकता है। हालांकि भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था इस झटके को कम करने में मदद करेगी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि रुपये में कमजोरी के कारण आय वृद्धि के अनुमानों में कोई बदलाव नहीं होगा।

कोटक महिंद्रा ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के मुख्य निवेश अधिकारी हर्ष उपाध्याय ने कहा, भावना के लिहाज से इसका असर तो पड़ेगा लेकिन कमाई के लिहाज से ऐसे बहुत कम क्षेत्र हैं जहां इसका दीर्घकालिक असर होगा। निर्यातकों को आम तौर पर लाभ होगा, लेकिन आयातकों को भी उनके वायदा अनुबंधों से कुछ हद तक सुरक्षा मिलेगी। रुपये की कमजोरी अलग-अलग क्षेत्रों पर अलग-अलग असर डाल सकती है, लेकिन कुल मिलाकर कमाई के लिहाज से इसका कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।

इस वित्त वर्ष में कंपनियों की आय वृद्धि एक अंक में रही है और अगले दो वित्त वर्षों में इसमें बढ़त का अनुमान है। वेलेंटिस एडवाइजर्स के संस्थापक और प्रबंध निदेशक ज्योतिवर्धन जयपुरिया ने कहा, मुद्रा का अवमूल्यन आम तौर पर एफपीआई निवेश के लिए नकारात्मक होता है।

उन्होंने कहा, हमें उम्मीद है कि आय चक्र बदलेगा। दिसंबर तिमाही से हमें दो अंकों में वृद्धि की उम्मीद है। अगर आय नहीं बढ़ती है तो इससे निवेश प्रवाह प्रभावित हो सकता है। अमेरिका के साथ व्यापार समझौता भी एक बड़ा सकारात्मक पहलू हो सकता है।

जयपुरिया को उम्मीद है कि 2026 निवेश के लिए एक बेहतर साल होगा, क्योंकि 15 महीनों की लगातार बिकवाली के बाद वैश्विक निवेशक अब भारत में काफी कम निवेश कर रहे हैं। अक्टूबर 2024 से एफपीआई भारी शुद्ध बिकवाली कर रहे हैं, जो कंपनियों की लाभप्रदता में गिरावट, बढ़े हुए मूल्यांकन पर सवाल और अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता को लेकर बनी अनिश्चितता के कारण कमजोर पड़ गए हैं।

आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये निजी इक्विटी निवेशकों की निकासी ने दबाव को और बढ़ा दिया है। 2025 में अब तक एफपीआई ने भारतीय इक्विटी से 1.5 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं। विश्लेषकों का कहना है कि विदेशी निवेशक जल्दबाज़ी में वापसी नहीं कर सकते क्योंकि मुद्रा में उतार-चढ़ाव से संभावित लाभ कम होने का खतरा है।

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विश्लेषकों ने कहा कि अनुकूल व्यापार समझौते से धारणा में सुधार होगा और एफपीआई को वापसी में मदद मिल सकती है क्योंकि इस वर्ष की गिरावट के बाद मूल्यांकन में नरमी आई है।

First Published - December 3, 2025 | 9:27 PM IST

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