भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की हालिया अधिसूचना से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) परेशान हैं। अधिसूचना का लक्ष्य ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों (AIF) की तरफ से जारी आंशिक चुकता यूनिट का नियमन करना है।
केंद्रीय बैंक का कदम ऐसे यूनिट जारी करने का मार्ग प्रशस्त करता है लेकिन उद्योग के प्रतिभागियों को डर है कि उन्हें बकाया इश्यू के लिए दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
पिछले हफ्ते आरबीआई ने एक परिपत्र जारी कर कहा था कि वह भारत से बाहर के निवेशकों को एआईएफ की तरफ से जारी उन आंशिक चुकता यूनिटों का नियमन करेगा जो मार्च में हुए संशोधन से पहले जारी किए गए हों।
इसके अनुसार आईएफ की तरफ से मार्च से पहले जारी आंशिक चुकता यूनिट शुल्क का भुगतान करने पर वैध हो जाएंगे। एआईएफ उद्योग ने चुकाई जाने वाली रकम पर और स्पष्टीकरण की मांग की है।
3वन4 कैपिटल के संस्थापक पार्टनर सिद्धार्थ पई ने कहा कि आरबीआई ने विगत में जारी आंशिक चुकता यूनिटों के नियमन के लिए परिपत्र जारी किया है लेकिन इससे जुड़े कंपाउंडिंग अमाउंट (मूल और ब्याज) पर कोई स्पष्टता नहीं बताई है।
एआईएफ उद्योग को उम्मीद है कि यह रकम सपाट शुल्क होगी और पूंजी में गिरावट के प्रतिशत के तौर पर नहीं होगी क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो किसी एआईएफ के परिचालन मॉडल के लिए यह खासा दबाव का कारण बनेगा।
आंशिक चुकता यूनिट का मामला करीब छह महीने पहले तब सुर्खियों में आया था जब फॉर्म आईएनवीआई (जिसे निवेशकों से पूंजी का योगदान मिलने के 30 दिन के भीतर एआईएफ को जमा करना होता है) में ऐसे आंशिक चुकता यूनिटों के बारे में बताने की इजाजत नहीं थी।
एआईएफ पूल वाली निवेश कंपनी होती है और निवेशकों को उनके योगदान या पोर्टफोलियो में लाभकारी हित के आधार पर यूनिटों का आवंटन किया जाता है। इन्वेस्टमेंट मैनेजर निवेश का मौका आने पर निवेशकों से उनकी प्रतिबद्धता के मुताबिक पूंजी लेते हैं। इसके लिए आंशिक चुकता यूनिट जारी की जाती है।
इसके लिए बाजार नियामक सेबी ने एआईएफ को आंशिक चुकता या पूर्ण चुकता यूनिट जारी करने की इजाजत दी थी। फॉर्म आईएनवीआई भरते समय मसला खड़ा होने पर एआईएफ उद्योग ने इस मसले पर आर्थिक मामलों के विभाग और आरबीआई से संपर्क साधा। इसके बाद मार्च में नियमों में संशोधन कर फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट (नॉन-डेट इंस्ट्रूमेंट) नियम 2019 में आंशिक चुकता यूनिट को शामिल किया गया।
सुपरएनएवी के चीफ ग्रोथ ऑफिसर मालवीय कुलकर्णी ने कहा कि नियामक की तरफ से कंपाउंडिंग के जरिये किसी को छोड़ने का उदाहरण शायद ही होगा। फिर भी यह स्थिति नियामकीय अनिश्चितताओं की पृष्ठभूमि में सतर्क रुख अपनाने पर जोर देती है।
कानूनी फर्मों का मानना है कि इस कदम से लंबित नियामकीय मसले सुलझ जाएंगे और एआईएफ के लिए पहले के गैर-अनुपालन से पैदा होने वाले संभावित दंडात्मक कदमों का जोखिम घट जाएगा।
जेएसए एसोसिएट्स ऐंड सॉलिसिटर्स में पार्टनर सिद्धार्थ मोदी ने कहा कि नियामकीय संशोधन से पहले एआईएफ की तरफ से प्रवासियों को जारी आंशिक चुकता यूनिट को वैध बनाने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। एफपीआई के लिए आरबीआई का फैसला एक तरह से निवेश जांच मुहैया कराता है।
हालांकि एक एआईएफ के ट्रस्टी ने कहा कि फॉर्म आईएनवीआई में आंशिक चुकता यूनिट की जानकारी देने से रोकने का कारण क्या था, यह स्पष्ट नहीं है। यह फॉर्म ही फेमा व एआईएफ के नियमों में संशोधन की दरकार की मूल वजह बन गया।
घटनाक्रम
*सेबी के नियम के तहत एआईएफ निवेशकों को आंशिक चुकता यूनिट जारी कर सकता है।
*पिछले साल एआईएफ ने आईएनवीआई फॉर्म भरने में परेशानी का सामना किया था क्योंकि इसमें एफपीआई प्रवासियों को जारी आंशिक चुकता यूनिट का जिक्र करने की इजाजत नहीं थी।
*निवेशकों से निवेश हासिल करने के 30 दिन के भीतर एआईएफ को आईएनवीआई फॉर्म जमा कराना होता है।
*एआईएफ उद्योग ने आरबीआई व सरकार के सामने यह मसला उठाया था।
*मार्च में आर्थिक मामलों के विभाग ने फेमा नियम में संशोधन आंशिक चुकता यूनिट को शामिल करने के लिए किया था।