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कैंसर के इलाज में मददगार होगी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, ऑन्कोलॉजी और रेडियोलॉजी में होने लगा AI का इस्तेमाल

एआई के अल्गोरिदम मरीज की अनुवांशिक सूचना और पुरानी बीमारियों के रिकॉर्ड भी जांच लेते हैं, जिससे जेनेटिक मार्कर और कैंसर के साथ जुड़े खतरे पकड़ में आ जाते हैं।

Last Updated- March 29, 2024 | 9:46 PM IST
Cancer

ऑन्कोलॉजी और रेडियोलॉजी में भी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) काफी मददगार साबित हो सकती है। कैंसर जैसी बीमारी की जड़ें खोजने में एआई का इस्तेमाल धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है। कई कंपनियां भी इस बात पर शोध कर रही हैं कि स्वास्थ्य सेवा में एआई तकनीक को किस तरह शामिल किया जा सकता है और कैंसर की जांच में किस तरह उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

बेंगलूरु में अपोलो कैंसर सेंटर में एआई से चलने वाला देश के पहला प्रिसीजन ऑन्कोलॉजी सेंटर (पीओसी) खोला है। यहां कैंसर का पता लगाने, बीमारी की स्टेज को आंकने और समझने तथा उपचार संबंधी दिशानिर्देशों का सही तरीके से पालन करने के लिए एआई का उपयोग किया जा रहा है ताकि समय से कैंसर का उपचार किया जा सके। इसी तरह अपोलो रेडियोलॉजी इंटरनैशनल ने पिछले हफ्ते ही गूगल के साथ हाथ मिलाने का ऐलान किया। दोनों मिलकर कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए एआई मॉडल तैयार करेंगी।

एआई की इस्तेमाल करने से कैंसर का पता शुरुआती चरण में ही लगाया जा सकता है क्योंकि यह एक्सरे, सीटी स्कैन, मैमोग्राम जैसी तस्वीरों का विश्लेषण बेहत सटीक तरीके से कर सकती है। फिर भी कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस दिशा में स्थायी समाधान के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा।

बेहतर होगी जांच

कोलकाता के अपोलो कैंसर सेंटर्स में वरिष्ठ मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट जयदीप घोष कहते हैं कि कैंसर का पता लगाने में एआई की सबसे पहली भूमिका मेडिकल चित्रों का सटीक विश्लेषण करना है।

उन्होंने कहा, ‘स्तन कैंसर के लिए मैमोग्राम और फेफड़ों के कैंसर के लिए सीटी स्कैन और पेट स्कैन की जांच एआई आसानी से कर सकती है। यह शरीर में हो रही ऐसी बारीक गड़बड़ियों को भी पकड़ सकती है और उनकी मदद से कैंसर का पता बिल्कुल शुरुआती दौर में ही लग जाता है।’

उन्होंने कहा कि शुरुआत में ही पता चल जाए तो डॉक्टरों को भी समय से इलाज शुरू करने में मदद मिलती है। इससे इलाज सफल रहने और मरीज के ठीक होने के अवसर बढ़ जाते हैं।

एआई के अल्गोरिदम मरीज की अनुवांशिक सूचना और पुरानी बीमारियों के रिकॉर्ड भी जांच लेते हैं, जिससे जेनेटिक मार्कर और कैंसर के साथ जुड़े खतरे पकड़ में आ जाते हैं।

मेडिकल इमेजिंग और रोग की पहचान के लिए टीबी की जांच में एआई का इस्तेमाल पहले से ही किया जा रहा है। मुंबई का स्टार्टअप क्योर डॉट एआई इसका उदाहरण है, जो फरवरी 2020 से ही कई स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में एआई अल्गोरिदम वाले डिवाइस मुहैया करा रहा है।

एआई का इस्तेमाल बढ़ने की बात पर घोष ने कहा कि कुछ सेंटर मैमोग्राफी में इसे आजमा रहे हैं मगर इसे आम तरीका बनने में अभी समय लग जाएगा।

अभी आजमाइश ही है एआई

एआई अल्गोरिदम में काफी प्रगति होने के बाद भी डॉक्टरों को यही लगता है कि रोग की जांच और उनका पता लगाने में इसका इस्तेमाल अभी बेहद शुरुआती बात है क्योंकि सफल एआई मॉडल तैयार होने में अभी वक्त लग जाएगा।

कैंसर चिकित्सा में एआई मॉडलों की मौजूदा स्थिति का जिक्र करते हुए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के वरिष्ठ निदेशक नितेश रोहतगी ने कहा कि कैंसर का पता लगाने में एआई के इस्तेमाल की राह में सबसे बड़ी बाधा डेटा को इकट्ठा करना है। उन्होंने कहा, ‘अल्गोरिदम को मरीज के भीतर कैंसर की आशंका का सही पता लगाने के लिए कई तरह के डेटा की जरूरत पड़ती है। ऐसा डेटा इस समय दुनिया में कहीं भी नहीं है।’

दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हास्पिटल में हेरेडिटरी, प्रिसीजन ऑन्कोलॉजी और जेनेटिक काउंसलिंग की निदेशक अपर्णा धर के हिसाब से इलाज में एआई का इस्तेमाल अभी आजमाया ही जा रहा है।

उन्होंने कहा कि एआई से कैंसर का अधिक सटीक तरीके से और कम समय में पता लगाया जा सकेगा मगर यह बात भी याद रखनी चाहिए के डेटा की कमी के कारण हमेशा चूक होने या कुछ नजरअंदाज होने का खतरा बना रहता है।

First Published - March 29, 2024 | 9:46 PM IST

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