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सज्जाद हुसैन : हिंदी फिल्मों के सबसे ओरिजिनल संगीतकार

जो बात सज्जाद हुसैन (Sajjad Hussain) को औरों से सबसे अलग करती थी वह था परफेक्शन को लेकर उनका जुनून।

Last Updated- June 15, 2025 | 9:09 AM IST

सज्जाद हुसैन (Sajjad Hussain) की जन्मतिथि पर (15 जून)

अजीत कुमार
सज्जाद हुसैन (Sajjad Hussain) हिंदी फिल्मों के सबसे ओरिजिनल और गुणी संगीतकार  थे। महान संगीतकार अनिल विश्वास (Anil Biswas) कहा करते थे,  ‘पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सज्जाद अकेले ऐसे संगीतकार हुए जिनका संगीत पूरी तरह से प्योर था यानी जिनके संगीत में रत्ती भर भी मिलावट नहीं थी। बाकी हम सभी ने कभी न कभी इधर उधर ताक- झांक की ही।‘

लेकिन जब आप जानेंगे कि आखिर इस महान संगीत निर्देशक को कितनी फिल्मों में संगीत देने का मौका मिला।  इनकी किन-किन फिल्मों ने सफलता के झंडे गाड़े । तो शायद आपको ताज्जुब हो। आप सोचेंगे जब उनकी प्रतिभा, विलक्षणता नि:संदेह थी। फिर उन्हें महज 14-15 फिल्मों में ही संगीत देने का मौका क्यों मिला। उनके हिस्से कोई भी हिट फिल्म क्यों नहीं आई। उनके गीत सराहे गए लेकिन पॉपुलर क्यों नहीं हुए।

आज बात उन्हीं विरले संगीतकार सज्जाद हुसैन (Sajjad Hussain) की।

मध्यप्रदेश (तब के मध्य  प्रांत) के सीतामऊ से निकलकर बम्बई की मायानगरी तक के उनके सफर की भी एक अपनी दास्तान है। अगर 16-17 साल की छोटी सी उम्र में सज्जाद साहब अपने किसी परिचित के यहां कुंदन लाल  सहगल (Kundan Lal Saigal) के उस रिकॉर्ड को न सुनते तो शायद ही हिंदी फिल्मों को इतना प्रतिभावान संगीतकार मिलता और करोड़ों गीत संगीत के दीवानों को चंद ही सही लेकिन कभी न भुलाए जाने वाले अनमोल गीत सुनने को मिलते। कुंदन लाल सहगल के जिस गीत ने सज्जाद की जिंदगी के सफर का रुख मोड़ दिया  वह था फिल्म देवदास (1935) का- दुख के दिन अब बीतत नाहीं—-। बकौल सज्जाद साहब जब उन्होंने इस गीत को पहली बार सुना तो न सिर्फ कुंदनलाल सहगल की अप्रतिम गायिकी बल्कि उस फिल्म के संगीतकार तिमिर बरन की संगीत रचना का भी उन पर जबरदस्त असर हुआ। उनके मन में भी ख्याल आया कि वह मुंबई जाएं और हिंदी फिल्मों के लिए ऐसे गीत रचें जिनका सुनने वालों पर वैसा ही असर हो जैसा उनके ऊपर सहगल के गाए गीत का हुआ है। फिल्म देवदास के उस गीत में सारंगी के जिस टुकड़े का इस्तेमाल हुआ है। उसकी सज्जाद साहब ने बारंबार सराहना की।

इस वाकये के 1-2 साल बाद यानी तकरीबन 18 साल की उम्र में सज्जाद एक सफल संगीतकार बनने की हसरत लेकर 1937 में मुंबई पहुंच गए। जहां उन्होंने शुरुआत में उस समय के कुछ नामी गिरामी फिल्म निर्माण कंपनियों मसलन मिनर्वा मूवीटोन, वाडिया मूवीटोन ….. के आर्केस्ट्रा में बतौर साजिंदा काम किया। वहीं कुछ संगीत निर्देशकों मसलन मीर साहब,  रफीक गजनवी, हनुमान प्रसाद ….वगैरह के सहायक भी बने।

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बतौर स्वतंत्र संगीत निर्देशक सज्जाद साहब की पहली फिल्म 1944 में आई जिसका नाम था- दोस्त। इस फिल्म के निर्देशक थे शौकत हुसैन रिजवी जो बाद में मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां  (Noor Jahan) के शौहर भी बने। नूरजहां की लासानी आवाज से मुअत्तर  इस फिल्म के सारे गीत उस जमाने में बेहद लोकप्रिय हुए थे। खासकर बदनाम मोहब्बत कौन करे ….और कोई प्रेम का देके संदेसा….। हिंदी फिल्मों को इस दर्जे का संगीत, इतनी मधुर, खनक भरी और परिपक्व आवाज इस फिल्म से पहले शायद ही सुनने को मिली हो।

हालांकि इस फिल्म के संगीत की सफलता का सारा श्रेय जब निर्देशक शौकत हुसैन रिजवी ने नूरजहां को दे दिया। तो फिल्म के संगीत निर्देशक सज्जाद साहब को काफी तकलीफ हुई। तभी उन्होंने फैसला किया कि अब वह नूरजहां और शौकत हुसैन रिजवी के साथ कभी काम न करेंगे और उन्होंने इसको ताउम्र निभाया भी। हालांकि विभाजन के बाद नूरजहां और शौकत हुसैन रिजवी दोनों पाकिस्तान चले गए।

दोस्त के बाद 1946 में आई उनकी महत्वपूर्ण फिल्म थी 1857। इस फिल्म का सुरैया और सुरेंद्र का गाया डुएट (युगल गीत)- तेरी नजर में मैं रहूं… कमाल का है। इस फिल्म के और भी गीत मसलन सुरैया का सोलो – गम-ए-आशियाना सताएगा कब तक …….बेहद कर्णप्रिय और सुरीले हैं।

1950 में सज्जाद के संगीत निर्देशन में आई थी फिल्म खेल। जो लता मंगेशकर के (Lata Mangeshkar) साथ उनकी पहली प्रदर्शित फिल्म थी। फिल्म में लता के गाए दो  गीत -भूल जा ए दिल….. और जाते हो तो जाओ हम  भी यहां…… की संगीत रचना में एक ठहरी हुई शांत उदासी  है।

सन 1951 में आई फिल्म सैंया के ज्यादातर गीत बेहद  भावपूर्ण  और मधुर हैं। मसलन लता की आवाज में – किस्मत में खुशी का नाम नहीं ……हवा में दिल डोले… काली काली रात रे दिल बड़ा सताए….. वो रात दिन वो शाम की……।

इसी साल सज्जाद हुसैन के संगीत निर्देशन में एक और फिल्म आई थी ‘हलचल’। इस फिल्म के तीन गीतों को संगीतबद्ध किया था सज्जाद साहब ने। जिनमें लता के गाये दो गीत – लुटा दिल मेरा हाय आबाद होकर ….और आज मेरे नसीब ने ….भुलाए न भूल सके जाने वाले गीत हैं। आज मेरे  नसीब ने ….. सज्जाद के संगीत निर्देशन में गाया लता का पहला गीत है । हालांकि इस फिल्म से पहले ही उनकी फिल्म खेल और सैंया प्रदर्शित हो गई थी । जिनमें लता के गाए गीत भी थे । प्रोड्यूसर के आसिफ के साथ हुए विवाद की वजह से इस फिल्म के बाकी गीतों को मोहम्मद शफी ने संगीतबद्ध किया था।

सज्जाद के संगीत निर्देशन में ठीक इसके अगले साल एक और बेहतरीन फिल्म आई थी संगदिल  (1952)। इस फिल्म में सज्जाद का संगीत अपनी बुलंदियों पर था। इस फिल्म में तलत का गाया- ये हवा ये रात ये चांदनी …..सज्जाद की अप्रतिम संगीत रचना है। इस गीत के लिए तलत महमूद को 17 रिटेक देने पड़े थे। लेकिन इसके बाद भी सज्जाद साहब इस गीत को लेकर मुतमइन नहीं थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सज्जाद साहब परफेक्शन को लेकर कितना जुनूनी थे।

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महान संगीतकार मदन मोहन (Madan Mohan) को यह गीत इतना पसंद था कि उन्होंने फिल्म आखिरी दाव में राग भैरवी पर आधारित इस गीत को ध्यान में रखकर एक गीत की संगीत रचना कर डाली । रफी के गाए इस गीत के बोल हैं – तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा …..। हालांकि सज्जाद साहब को यह अच्छा न लगा और उन्होंने एक मौके पर  मदन मोहन से इसकी शिकायत  भी की। लेकिन मदन मोहन ने सज्जाद साहब को यह कहकर समझाया कि मैंने आपकी संगीत रचना की कॉपी की है  न कि किसी ऐरे-गैरे की।

इस फिल्म के और भी गीत काफी सराहे गए । मसलन लता का गाया -वो तो चले गए ए दिल …सज्जाद साहब की एक और  बेहतरीन यादगार संगीत रचना है। इसी फिल्म में तलत का गाए एक और गीत – कहां हो कहां मेरे जीवन सहारे…  की भी संगीत रचना कमाल की है। वहीं आशा और गीता दत्त का गाया डुएट- धरती से दूर गोरे बादलों के पार आ जा….. की संगीत रचना एक अलग तरह की निश्छलता का सुखद अहसास करा जाती है। बाकी दो गीत लता और तलत का गाया डुएट – दिल में समा गए सजन ….और गीता दत्त की आवाज में – दर्शन प्यासी आई दासी ….भी अलग अलग तरह के सौंदर्य बोध करा जाते हैं।

सन 1955 में आई फिल्म रुखसाना में लता का गाया एकमात्र गीत -तेरा दर्द दिल में बसा लिया…. सज्जाद साहब की अनूठी मर्मस्पर्शी संगीत रचना है। इस गीत की रिकॉर्डिंग के बाद लता बीमार हो गई थीं। इसलिए बाकी गीत आशा भोसले (Asha Bhosle)  की आवाज में रिकॉर्ड किए गए थे। फिल्म के हीरो किशोर कुमार (Kishore Kumar) थे। सो उनकी आवाज में भी एक सोलो और आशा भोसले के साथ एक डुएट है। किशोर का गाया सोलो -तेरे जहां से चल दिए…. और आशा के साथ उनका डुएट- ये चार दिन बहार के हंसी खुशी गुजार के …सज्जाद साहब की अपनी तरह की अनमोल संगीत रचनाएं हैं। आशा का सोलो – तुम्हें हम याद करते हैं …..की संगीत रचना भी नायाब है।

सज्जाद साहब का संगीत कई मायनों में अलग और सबसे जुदा है। जिसकी बड़ी वजह शास्त्रीय संगीत की उनकी बारीक समझ थी। इसके अलावा वह बहुत सारे साज बजाने में भी निपुण थे। मैंडोलिन और सज्जाद हुसैन तो एक दूसरे के पर्याय ही बन गए। इसके अलावा सितार, तबला, एकॉर्डियन, गिटार, क्लेरिनेट, वायलिन, पियानो, बैंजो सहित 20 से ज्यादा साज बजाने में भी उनकी सिद्धहस्तता थी। तभी तो सज्जाद साहब अपनी आर्केस्ट्रा का संचालन खुद करते थे। उन्हें अरेंजर की जरूरत नहीं थी। एक-एक साज पर उनकी पैनी नजर होती थी। क्या मजाल उनकी किसी संगीत रचना में आपको एक भी नोट का हेर-फेर मिले। कोई भी साज आपको अपनी जगह से जरा भी हिला हुआ लगे। कहा जाता है कि तबलची के लिए बोल भी सज्जाद साहब खुद लिखते थे।

लेकिन जो बात सज्जाद साहब को औरों से सबसे अलग करती थी वह था परफेक्शन को लेकर उनका जुनून। उनके इस जुनून में कोई दखल दे यह बात उन्हें कतई गवारा नहीं था। इसी आत्महंता जुनून की वजह से वह इंडस्ट्री में अलग-थलग पड़ गए।

सज्जाद साहब की बहुत सारी संगीत रचनाओं में अरबी शैली  के संगीत का भी रंग दिखता है। लेकिन इस असर को पैदा करने के लिए उन्होंने कभी नकल का सहारा नहीं लिया। किसी गीत की कॉपी नहीं की। जहां कहीं भी इस तरह का रंग मिलता है वह नितांत मौलिक है। खुद सज्जाद के रचे बुने हुए हैं।

उनकी अंतिम फिल्म रुस्तम सोहराब (1963) सुरैया की आखिरी फिल्म भी थी। इस फिल्म में सुरैया (Suraiya) मुख्य भूमिका में थी। फिरदौसी की शाहनामा पर आधारित इस फिल्म की पृष्ठभूमि अरेबियन थी। इसलिए इस फिल्म के गीत और संगीत में अरेबियन संगीत का असर था। और इस असर को पैदा किया था अपनी मेहनत लगन और प्रतिभा के बल पर सज्जाद हुसैन ने। फिल्म में एक से बढ़कर एक गीत हैं। लता का गाया – ऐ दिलरुबा नजरें मिला …अपने आप में एक विलक्षण दुरूह संगीत रचना है। इसी फिल्म में एक निहायत जुदा रंग की कव्वाली – फिर तुम्हारी याद आई ए सनम … भी है जिसे मोहम्मद रफी, मन्ना डे और सादात खान ने गाया है ….।

और सुरैया का गाया अंतिम गीत -ये कैसी अजब दास्तां हो गई है …एक तरह से हिंदी सिनेमा के इस ग्रेटा गार्बो (Greta Garbo) का स्वान सॉन्ग (swan song) भी है।

ये कैसी अजब दास्तां हो गई है
छुपाते छुपाते बयां हो गई है
ये कैसी…

बुझा दो बुझा दो, बुझा दो सितारों की शम्में बुझा दो
छुपा दो छुपा दो, छुपा दो हसीं चांद को भी छुपा दो
यहां रौशनी मेहमां हो गई है…

First Published - June 15, 2023 | 10:21 AM IST

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