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Talat Mahmood की 25वीं पुण्यतिथि : उस मखमली आवाज का जादू…

दिलीप कुमार को ट्रेजडी किंग बनाने में तलत महमूद के गीतों की भूमिका भी कम नहीं थी।

Last Updated- May 09, 2024 | 7:25 PM IST
Talat Mahmood

तलत महमूद (Talat Mahmood) की 25वीं पुण्यतिथि  पर

उस मखमली आवाज का जादू आज भी बरकरार है। यह रेशमी आवाज आज भी सुनने वालों को उतना ही बेकरार करती है, जितना आज से दशकों पहले करती थी। निजी बात करूं तो इस लरजती हुई आवाज से मेरा पहला सामना 90 के दशक में हुआ था। 90 के दशक में बड़े हुए लोग जानते हैं कि वो दौर उन गायकों का भी था जो रफी, किशोर, मुकेश की नकल करके गायक बनने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। लेकिन आपने कभी नहीं सुना होगा कि किसी ने इस रेशमी आवाज की नकल करने की कोशिश भी की। यदि किसी की ऐसा करने की आकांक्षा भी रही हो तो वह असंभव की आकांक्षा थी।

ऐसा भी नहीं कि इस आवाज के मुरीद हम जैसे कुछ लोग ही हुए, मेहदी हसन, जगजीत सिंह जैसे जानेमाने गायक तक इनकी लासानी आवाज के शैदाई थे। शहंशाह-ए-गजल मेहदी हसन साहब को कई बार यह कहते सुना कि शुरुआती दिनों में वे तलत महमूद (Talat Mahmood) के गाए गीतों को ही सुना-सुना कर लोगों की दाद बटोरा करते थे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर उस समय तलत की आवाज का सुनने वालों के ऊपर क्या असर रहा होगा।

आज से ठीक 25 वर्ष पहले 9 मई 1998 को हिंदुस्तानी फिल्मों के इस माया-ए-नाज गुलूकार ने इस फानी दुनिया को अलविदा कहा था।

हिंदुस्तानी फिल्मों की मौसिकी जिन वर्षों में सबसे आला मुकाम पर थी यानी पचास और साठ की दहाईं, उसी दौर के एक मुख्तलिफ, विलक्षण सितारे का नाम था तलत महमूद। दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को जिन फिल्मों ने ट्रेजडी किंग बनाया उनमें से ज्यादातर फिल्मों में उनके ऊपर फिल्माए गए गीतों को तलत महमूद ने ही अपनी आवाज बख्शी। यह कहना गलत न होगा कि दिलीप कुमार को ट्रेजडी किंग बनाने में तलत के गीतों का योगदान भी कम नहीं था। आप उन फिल्मों को उठाकर देख लीजिए मसलन, आरजू (1950), बाबुल (1950), तराना (1951), दाग (1951), संगदिल (1952), फिल्म फुटपाथ (1953), देवदास (1954) … वगैरह।

महान संगीतकार अनिल विश्वास (Anil Biswas) ने हिंदी फिल्मों में तलत महमूद को ब्रेक दिया। बतौर गायक उनकी पहली हिंदी फिल्म थी दिलीप कुमार अभिनीत आरजू (1950)। अनिल दा ने कई इंटरव्यू में यह बताया कि तलत को जब उन्होंने गाने का मौका दिया तो उनकी भरसक कोशिश अपनी आवाज की मखमली मुलायमियत या सीधे कहें तो लरज/कंपन को छुपाने की थी। लेकिन बकौल अनिल दा उन्होंने तलत को बताया कि उनकी आवाज की यही लरज, सिलवट, मुलायमियत उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं। कहने की जरूरत नहीं कि जिस नायाब आवाज को तराश कर अनिल दा ने दुनिया के सामने पेश किया उस पुर-सोज आवाज ने सुनने वालों लोगों के दिलों पर किस कदर राज किया है। इसी फिल्म आरजू का राग दरबारी पर आधारित सोलो (एकल गीत) – ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो… को सुनिए और तलत की अप्रतिम अदायगी, अंदाज के साथ-साथ अनिल विश्वास की नितांत मौलिक संगीत रचना के जादू को महसूस कीजिए।

अनिल विश्वास के ही संगीत निर्देशन में ठीक अगले वर्ष आई फिल्म तराना (1951) का लता के साथ तलत का गाया डुएट (युगल गीत) – सीने में सुलगते हैं अरमां…. हिंदी फिल्मों के इतिहास के सबसे बेहतरीन डुएट में से एक है। इस फिल्म के बाद तो इस आवाज का इस्तेमाल उस समय के ज्यादातर संगीतकारों ने किया और तलत महमूद के एक से बढ़कर एक गीत लोगों को सुनने को मिले।

कुछ नायाब गीतों का जिक्र जरूरी है मसलन फिल्म संगदिल (1952) का गीत – ये हवा ये रात ये चांदनी…..। इस गीत में तलत महमूद की गायिकी अपने उरूज पर देखने को मिलती है। लेकिन हिंदी फिल्मों के विरले संगीतकार सज्जाद हुसैन (Sajjad Hussain) की इस अमर संगीत रचना को सुनने पर शायद ही आपको इस बात का अंदाजा लगे कि इस गीत को रचने की प्रक्रिया कितनी दुरूह, जटिल रही होगी। तलत महमूद को इस गीत के लिए 17 रीटेक देने पड़े थे। लेकिन फिर भी सज्जाद साहब मुतमइन नहीं थे। यह थी उस महान संगीतकार की परफेक्शन को लेकर समर्पण की एक बानगी। तभी तो हिंदी फिल्मों के खजाने में ऐसे नायाब मोती आए।

तलत महमूद (Talat Mahmood) के कुछ और बेमिसाल गीत हैं मसलन शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फिल्म दाग (1951) का गीत – ऐ मेरे दिल कहीं और चल……., अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में फिल्म अनहोनी (1952) का गीत – मैं दिल हूं एक अरमान भरा……., खय्याम के संगीत निर्देशन में फिल्म फुटपाथ (1953) का गीत – शामे गम की कसम…., सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फिल्म देवदास (1954) के गीत – मितवा लागी रे ये कैसी अनबूझ आग……., किसको खबर थी किसको यकीन था …, टैक्सी ड्राइवर (1954) – जाएं तो जाएं कहां…., सुजाता (1959) – जलते हैं जिसके लिए ……, मदन मोहन के संगीत निर्देशन में फिल्म जहाँआरा (1964) का गीत – फिर वही शाम, वही गम, वही तन्हाई है … वगैरह ।

First Published - May 9, 2023 | 12:49 PM IST

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