केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार की सामाजिक कल्याण योजनाओं से जुड़े एक आधिकारिक अध्ययन में कहा गया है कि उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों ने महंगाई नहीं बल्कि महिला होने की वजह से कई समस्याएं आने और ईंधन के पारंपरिक विकल्पों की आसान उपलब्धता के कारण सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलिंडर को फिर से भराने से मना कर दिया।
‘गरीब कल्याण’ से जुड़े मुद्दों के नौ वर्षों के व्यापक विश्लेषण से जुड़े विमर्श पत्र में एक प्रभावी नीतिगत रणनीति तैयार करने की सिफारिश की गई है। इसका उद्देश्य न केवल महिलाओं को योजना के लाभार्थियों के रूप में शामिल करना है बल्कि समान रूप से निर्णय लेने की शक्ति को भी बढ़ावा देना है ताकि उनकी समस्या दूर हो सके। इसमें ‘महिलाओं की स्थिति में सुधार करने और प्रचलित पितृसत्तात्मक शक्ति को बदलने’ का सुझाव दिया गया है। इन सभी कदमों का मकसद यह है कि महिलाएं धुएं से भरे रसोईघर से निजात पाकर धुआंरहित चूल्हे का इस्तेमाल कर सकें।
सामाजिक कल्याण योजनाओं से जुड़ा अध्ययन उन किताबों की श्रृंखला का हिस्सा है जिन्हें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तहत नैशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) प्रकाशित करने की प्रक्रिया में जुटा है। ये किताबें केंद्र की वित्तीय सहायता से चल रहे प्रमुख संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा लिखी गई हैं।
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सरकार की ‘बौद्धिक विरासत परियोजना’ के तहत प्रकाशित होने वाली इन किताबों में ‘सीमाओं से परे: मन की बात के सामाजिक प्रभाव का अध्ययन’ और ‘गरीब एवं सीमांत लोगों के लिए नीतियां: भारत में गरीब कल्याण योजनाओं का अध्ययन’ शामिल हैं और ये दोनों ही प्रयागराज स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने लिखी हैं।
इस श्रृंखला की अन्य पुस्तकों में, नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग द्वारा ‘नए भारत की ओर: बुनियादी ढांचा, समुदाय एवं विकास का अध्ययन’, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर द्वारा ‘अक्षय ऊर्जा उत्पादन’ और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा ‘मेकिंग न्यू इंडिया’शामिल हैं।
गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक, बदरी नारायण के अनुसार देश के अग्रणी शोध संस्थानों द्वारा सरकार की योजनाओं का समग्र मूल्यांकन करना दुर्लभ काम है जिन्हें इस सीरीज के जरिये पूरा किया गया है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि यह शोध पहले से उपलब्ध आंकड़ों और क्षेत्र से जुड़े सर्वेक्षणों पर आधारित है।
शिक्षाविद् ने कहा, ‘सरकारी योजनाओं ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समूह को ‘लाभार्थी वर्ग’ बनाने में एक अहम भूमिका निभाने में मदद की है जिससे उनकी उम्मीदें और आकांक्षा बढ़ी है और उन्हें गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिल रही है।’
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‘बौद्धिक विरासत परियोजना’ केंद्रीय विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और उच्च शिक्षा केंद्रों के द्वारा किया जा रहा सहयोग है जिसमें केंद्र सरकार के मंत्रालय सामाजिक कल्याण और शासन से संबंधित ज्ञान संबंधित योजनाओं पर काम कर रहे हैं। परियोजना के तहत, योजनाओं से जुड़ी थीम की पहचान ‘संबंधित मंत्रालयों के परामर्श’ से की जाती है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के संबंध में, एक विमर्श पत्र में कहा गया है कि स्वच्छ ईंधन से महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता बढ़ती है और इससे उनका श्रम भी कम लगता है और बेहतर रोजगार, शिक्षा या उनका अपना मनोरंजन करने की संभावनाओं में सुधार होता है।
हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि ‘प्रभावी नीतिगत रणनीतियों’ में न केवल महिलाओं को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए बल्कि इसमें महिला-पुरूष दोनों को शामिल करना चाहिए जहां निर्णय लेने की शक्ति समान होनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि अगर यह फैसला किसी पुरुष या महिला के जीवन को प्रभावित करता है तो उस व्यक्ति को विशेषाधिकार मिलना चाहिए।
पीएमयूवाई को अंतर को कम करने के लिए किस तरह के उपाय किए जा सकते हैं, उन संभावित हस्तक्षेपों का पता लगाना चाहिए ताकि खाना पकाने के तरीकों में सार्थक बदलाव लाने के लिए जागरूकता अभियान तैयार किया जा सके और साथ ही भारत में धुआं रहित रसोई को एक हकीकत बनाने के लिए हमारे दृष्टिकोण में बदलाव लाए जाने चाहिए।
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इस अध्ययन में गोवा, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड में घर के स्वामित्व में महिलाओं के स्तर पर सकारात्मक अंतर की पहचान करने, महिलाओं के नाम पर अधिक घरों का निर्माण के लिहाज से पीएम आवास योजना-ग्रामीण की सफलता की तारीफ की गई है। वर्ष 2016-2023 के दौरान भारत में बनाए गए कुल घरों में से 18.32 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के लिए, 20.63 प्रतिशत अनुसूचित जातियों के लिए और 11.63 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए थे।
इस रिपोर्ट में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में भ्रष्टाचार को रोकने की सराहना भी की गई है और कहा गया है कि प्रणाली से जुड़े कुछ मुद्दे लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को प्रभावित कर रहे हैं जैसे कि खाद्य सब्सिडी का बढ़ता बिल और केंद्रीय पूल में पड़े खाद्यान्न का बड़ा भंडार केवल राजकोषीय बोझ को बढ़ता है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 169 में से 107वें स्थान पर है, ऐसे में देश को खाद्य वर्ग में विविधता लाकर ‘खाद्य सुरक्षा’ से ‘पोषण सुरक्षा’ की ओर बढ़ने का लक्ष्य रखना चाहिए।