भारत से निर्यात किए जाने वाले कफ सिरप में मिलावट की घटनाओं को देखते हुए सरकार खांसी की दवाई के निर्यात से पहले परीक्षण करने की व्यवस्था बनाने पर विचार कर रही है। सरकार की कवायद है कि दवा की पहले ही जांच कर ली जाए, जिससे निर्यात के बाद इसमें कोई शिकायत न आने पाए।
सूचना के मुताबिक केंद्रीय औषिध मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास इस तरह का प्रस्ताव भेजा है। इसके पीछे विचार यह है कि निर्यात के पहले सरकारी प्रयोगशालाओं में दवाओं की जांच हो। सूत्रों ने कहा कि इस सिलसिले में अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है।
CDSCO के अधीन 5 केंद्रीय औषधि परीक्षण प्रयोगशालाएं कसौली, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और मुंबई में स्थित हैं। वहीं गुवाहाटी और चंडीगढ़ में 2 क्षेत्रीय औषधि परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं। इसके अलावा भारत इंडियन फार्माकोपिया कमीशन लैबोरेटरी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उद्योग के सूत्रों ने दावा किया कि एनएबीएल से संबद्ध प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट को भी विनिर्माताओं और निर्यातकों द्वारा सर्टिफिकेट आफ एनालिसिस (सीओए) माना जा सकता है। जनवरी 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक एनएबीएल से मान्यता प्राप्त 2,300 से ज्यादा मेडिकल टेस्टिंग लैब भारत में स्थित हैं।
औषधि उद्योग से जुड़े एक दिग्गज ने कहा कि सरकार सभी सिरप और सॉल्वेंट विनिर्माताओं के लिए ग्लाइकोल का परीक्षण अनिवार्य किए जाने पर विचार कर सकती है। एक व्यक्ति ने नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा, ‘अब तक इंडियन फार्माकोपिया को अनिवार्य ग्लाइकॉल टेस्टिंग सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होती है। विनिर्माण इकाई द्वारा सीओए उपलब्ध कराया जाता है। अगर अन्य अनिवार्य परीक्षणों में ग्लाइकॉल के परीक्षण को अनिवार्य कर दिया जाए तो मिलावट की मूल समस्या खत्म हो जाएगी।’
इस समय फार्मास्यूटिकल उत्पादों के विनिर्माता राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन से किसी खास उत्पाद को बनाने के लिए सर्टिफिकेट आफ फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट (सीओपीपी) लेते हैं। सीओपीपी जांच के बाद दिया जाता है और अपेक्षा की जाती है कि विनिर्माता अपनी खेप के साथ सीओए प्रस्तुत करेंगे, चाहे वह घरेलू बाजार में खपत के लिए हो या निर्यात के लिए हो।
उद्योग के एक और सूत्र ने कहा कि भारत इस समय 200 देशों को निर्यात करता है और निर्यात के लिए भेजने के पहले भौतिक रूप से हर बैच के कफ सिरप का परीक्षण करना असंभव होगा।
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व्यक्ति ने कहा, ‘नाइजीरिया जैसे देशों का उन देशों में टेस्टिंग लैब है, जहां से दवा भेजी जाती है। वहीं यूरोप के देशों में दवा के प्रवेश बिंदु पर ही परीक्षण होता है। वहीं अमेरिका बंदरगाह पर दवा पहुंचने के बाद किसी खेप से नमूने लेकर परीक्षण कर लेता है। भारत सरकार की एजेंसी अब तक निर्यात किए जाने वाले माल के परीक्षण का काम नहीं करती है। इस में बहुत ज्यादा समय लग सकता है, अगर परीक्षण केवल सरकारी प्रयोगशालाओं में किया गया।’
यह कदम ऐसे समय में सामने आया है, जब गांबिया, उज्बेकिस्तान सहित कुछ देशों में भारत के कफ सिरप और यहां तक कि आई ड्रॉप की शिकायतें हो रही हैं। उद्योग का कहना है कि इन घटनाओं से भारत की निर्यातक के रूप में वैश्विक छवि खराब हुई है। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए केंद्र सरकार कुछ कदम उठाने पर विचार कर रही है, जिससे खराब गुणवत्ता की दवाओं को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में जाने से रोका जा सके।
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उत्तर प्रदेश औषधि नियंत्रक ने मैरियन बायोटेक का विनिर्माण लाइसेंस रद्द कर दिया, जिसके कफ सिरप डॉक-1 को उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत से जोड़ा गया था। फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (फार्मेक्सिल) ने मैरियन बायोटेक की सदस्यता निलंबित कर दी है, जिससे वह मार्केट एक्सेस इनीशिएटिव स्कीम के तहत प्रोत्साहन के लिए अपात्र हो गई है।