महज चार साल में दो विमानन कंपनियों- जेट एयरवेज और गो फर्स्ट- को दिवालिया प्रक्रिया से जूझना पड़ा है। हालांकि उनकी वजहें अलग-अलग रहीं। लेकिन क्या जेट के उलट गो फर्स्ट मूल्यांकन एकदम गिरने से रोक सकेगी? विशेषज्ञों का कहना है कि यह बात इस पर निर्भर करेगा कि गो फर्स्ट अपना परिचालन कितनी तेजी से पटरी पर लाती है और विभिन्न हवाईअड्डों पर अपने स्लॉट बचा पाती है या नहीं।
वाडिया समूह के स्वामित्व वाली विमानन कंपनी गो फर्स्ट ने 2 मई को स्वैच्छिक कॉरपोरेट दिवाला के लिए आवेदन किया था। पर्याप्त क्षमता इस्तेमाल न हो पाने के कारण नकदी की किल्लत होने से उसे यह कदम उठाना पड़ा। दूसरी ओर जेट एयरवेज ने अप्रैल 2019 में ऋणदाताओं द्वारा आईबीसी में घसीटे जाने से पहले ऋण पुनर्गठन की कोशिश की थी। मगर आईबीसी में जाने के चार साल बाद भी उसका मामला जस का तस है।
जेट एयरवेज को दिवालिया होने के बाद निवेशक लाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी। मगर गो फर्स्ट के साथ यह समस्या नहीं है क्योंकि उसका मौजूदा प्रवर्तक वाडिया समूह भी समाधान प्रक्रिया में भाग ले सकता है। गो फर्स्ट ने समय रहते स्वैच्छिक तौर पर दिवालिया समाधान की पहल की है इसलिए उसके प्रवर्तक इसमें भाग ले सकते हैं। उसके ऋण को फिलहाल गैर-निष्पादित आस्ति (NPA) नहीं माना गया है।
शार्दूल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर अनूप रावत ने कहा, ‘परिचालन पटरी पर लाना समाधान पेशेवर के लिए प्रमुख चुनौती है। काम फिर शुरू करने के लिए विमानन कंपनी को फौरी तौर पर रकम चाहिए और पट्टा कंपनियों समेत कई पक्षों के समर्थन की भी जरूरत होगी। यह सब उसे बहुत तेजी से करना होगा।’
गो फर्स्ट के मुकाबले जेट एयरवेज का आकार और परिचालन काफी बड़ा था। उसका कामकाज 2019 में ठप हो गया था। उसके बेड़े में 100 से अधिक विमान शामिल थे, जो देश में 40 से ज्यादा और विदेश में 24 स्थानों के लिए उड़ान भरते थे।
जेट का अंतरराष्ट्रीय परिचालन काफी बड़ा था, जिससे उसे विदेश में भी कई चुनौतियों से जूछना पड़ा। नीदरलैंड में उसे अलग दिवालिया प्रक्रिया से जूझना पड़ा और जेट का एक विमान एम्सटर्डम में जब्त कर लिया गया। नीदरलैंड में कर्ज देने वालों के दावे भारतीय प्रक्रिया में जोड़े गए और उन्हें सीमा पार सहयोग संधि के मुताबिक निपटाया गया। जेट एयरवेज की एक सहायक विमानन कंपनी जेटलाइट भी थी, जो दिवालिया प्रक्रिया में शामिल नहीं थी।
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जेट एयरवेज के समाधान पेशेवर और ग्रांट थॉर्नटन के पार्टनर आशिष छावछरिया ने कहा, ‘हमने करीब 4,000 लेनदारों और करीब 14,000 कर्मचारियों के दावे निपटाए, जो 26 अलग-अलग विदेशी मुद्राओं में थे। टिकट खरीद चुके करीब 10 लाख यात्रियों को रकम लौटानी थी। लेनदारों की समिति (सीओसी) में करीब 30 वित्तीय ऋणदाता शामिल थे।’
छावछरिया ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि यदि गो फर्स्ट तेजी से अपना परिचालन पटरी पर लाती है तो उसे फायदा होगा और ग्राहकों का भरोसा भी बहाल होगा। इससे उसके प्रशिक्षित एवं लाइसेंस प्राप्त कर्मचारियों को भी मदद मिलेगी। रकम हासिल करने के लिए उन्होंने टिकट बिक्री दोबारा शुरू करने का तरीका बताया। दिवालिया विशेषज्ञों ने कहा कि यदि कोई गो फर्स्ट का पुनर्गठन करना चाहता है तो उसे कंपनी के पास संपत्तियों और अगले 5 से 10 साल के लिए भारतीय विमानन बाजार की संभावनाओं पर विचार करना होगा।