पहले से ही दबाव में चल रहे अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में और कमी आ सकती है क्योंकि उधार दरों की तुलना में जमा दरें धीरे-धीरे समायोजित होती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा दिसंबर की बैठक में रीपो दर में 25 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती के फैसले के बाद इस पर और दबाव पड़ सकता है।
उद्योग जगत के जानकारों के अनुसार इस अतिरिक्त दर कटौती का असर 2025-26 (वित्त वर्ष 26) की अंतिम तिमाही में महसूस किया जाएगा। हालांकि केंद्रीय बैंक द्वारा नकदी झोंकने और नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती से बैंकों पर पड़ने वाला प्रभाव कुछ हद तक कम हो सकता है, बशर्ते आरबीआई अगली बैठक में दरों में और कटौती न करे।
आरबीआई की छह सदस्यीय एमपीसी ने शुक्रवार को रीपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती की। लिहाजा, नरमी के वर्तमान चक्र में कुल कटौती 125 आधार अंक हो गई, जो 6.50 फीसदी से घटकर अब 5.25 फीसदी पर आ गई है।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, नीतिगत रीपो दर में कुल 100 आधार अंकों की कटौती के परिणामस्वरूप फरवरी-अक्टूबर 2025 के दौरान रुपये के नए ऋणों के लिए बैंकों की भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) में 69 आधार अंकों की कमी आई है (ब्याज दर प्रभाव 78 आधार अंक है)। इसके अतिरिक्त, बकाया रुपया ऋणों के डब्ल्यूएएलआर में 63 आधार अंक की कमी आई है। इसका प्रभाव सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से देखा गया है।
इस बीच, जमा की बात करें तो नई जमाओं पर भारित औसत घरेलू सावधि जमा दर (डब्ल्यूएडीटीडीआर) में 105 आधार अंकों की गिरावट आई है, जबकि इसी अवधि में पुरानी जमाओं पर 32 आधार अंक की नरमी देखने को मिली है। चूंकि बैंकों के ऋण पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा बाहरी बेंचमार्क से जुड़ा होता है, जो रीपो दर कम होने पर स्वतः ही बदल जाते हैं, इसलिए उधार दरें तुरंत कम हो जाती हैं। हालांकि, जमा दरों को समायोजित होने में अधिक समय लगता है। इस ट्रांजिशन अवधि में बैंकों के एनआईएम पर दबाव पड़ता है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, हमें उम्मीद है कि आगे चलकर विशेषकर रीपो दर में कटौती के बाद जमा दरों में कुछ हद तक नरमी आएगी।
बैंकों ने वित्त वर्ष की पहली छमाही में अपने मार्जिन में सिकुड़न देखी है क्योंकि जमा दरें एक मसला रही हैं, खासकर ऐसे समय में जब जमा वृद्धि अर्थव्यवस्था में ऋण वृद्धि से पिछड़ गई है। आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में निजी क्षेत्र के बैंकों का एनआईएम वित्त वर्ष 25 की चौथी तिमाही के अंत के 4.02 फीसदी की तुलना में 3.87 फीसदी था यानी 15 आधार अंक की गिरावट। इसी अवधि में सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों का एनआईएम 10 आधारअंक घटकर 2.81 फीसदी से घटकर 2.71 फीसदी पर आ गया। एनआईएम में गिरावट वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में में तेज थी और वित्त वर्ष 26 की दूसरी तिमाही में बैंकिंग क्षेत्र ने 50 आधार अंक की रीपो कटौती के पूरे प्रभाव को अवशोषित करने के बाद भी उम्मीद से बेहतर एनआईएम दिया।
मोतीलाल ओसवाल के शोध विश्लेषक नितिन अग्रवाल ने कहा, इससे (रीपो में 25 आधार अंकों की कटौती से) बैंकों के मार्जिन पर और असर पड़ेगा क्योंकि रीपो-लिंक्ड लोन की कीमतों में 25 आधार अंकों की और कमी आएगी। हालांकि हमें उम्मीद है कि इसका असर वित्त वर्ष 26 की चौथी तिमाही के नतीजों में ही दिखेगा क्योंकि पूरा लाभ अगली तिमाही में होगा।
इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनिल गुप्ता के अनुसार, बैंकों के ब्याज मार्जिन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि बाहरी बेंचमार्क से जुड़े ऋणों की दरें जल्द ही कम हो जाएंगी, जबकि जमा आधार की धीरे-धीरे कम होंगी।