यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने सरकारी स्वामित्व वाली फाइनैंशियल क्षेत्र की इकाइयों – बैंकों और बीमा कंपनियों – में शीर्ष स्तर के पदों पर निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों की नियुक्ति को खोलने के कदम का कड़ा विरोध किया है। यह कदम वैधानिक सार्वजनिक संस्थानों में नेतृत्व का वास्तविक निजीकरण बताया गया।
यूएफबीयू ने कहा कि इन नियुक्तियों को सक्षम करने के लिए आदेश सक्षम कानूनों में किसी भी संशोधन के बिना जारी किए गए हैं – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1955, बैंकिंग कंपनीज (उपक्रमों का अधिग्रहण व स्थानांतरण) अधिनियम 1970 व 1980 और भारतीय जीवन बीमा अधिनियम 1956 – गंभीर कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन है। यूएफबीयू बैंकों में अधिकारियों और कर्मचारियों के नौ ट्रेड यूनियनों का प्रतिनिधित्व करता है। यह कार्यकारी आदेश कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने 4.10.2025 को जारी किया था।
इस आदेश में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सहित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों में पूर्णकालिक निदेशकों, प्रबंध निदेशकों, कार्यकारी निदेशकों और अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए संशोधित समेकित दिशानिर्देशों को मंजूरी दी गई थी।
यूएफबीयू ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक केवल वित्तीय संस्थान नहीं हैं। वे राष्ट्रीय भरोसे का प्रतीक है। समाज के हर वर्ग की सेवा करते हैं और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं। ये वैधानिक व महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक वित्तीय संस्थान हैं और उनके नेतृत्व में भारत के लोगों के प्रति संप्रभु जिम्मेदारी है, न कि केवल कॉर्पोरेट जनादेश।
निजी क्षेत्र के अधिकारियों को आयात करके इस वैधानिक जिम्मेदारी को कम करने से बैंक के सार्वजनिक चरित्र, उनकी संवैधानिक जवाबदेही व सार्वजनिक लोकाचार और मूल्यों को कमजोर करने का खतरा है, जिन्होंने अपनी स्थापना के बाद से इन बैंकों का मार्गदर्शन किया है।
इन बैंकों का शीर्ष प्रबंधन अनिवार्य रूप से इन बैंकों का सार्वजनिक चरित्र प्रदर्शित करे।