भारत में परिचालन कर रहे यूरोपीय बैंकों ने अपने देशों के नियामकों और यूरोपीय प्रतिभूति एवं बाजार प्राधिकरण (ESMA) से क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCIL) की मान्यता समाप्त करने की अंतिम समय-सीमा दो वर्ष तक बढ़ाए जाने का अनुरोध किया है।
सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इसकी ज्यादा संभावना नहीं दिख रही है कि एस्मा और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा 1 मई 2023 की मौजूदा समय-सीमा से पहले इस संबंध में कोई समाधान निकल पाएगा।
इस घटनाक्रम से अवगत एक अधिकारी ने कहा, ‘अब यूरोपीय आयोग भी इस मुद्दे से जुड़ गया है। यह मामला अब सिर्फ एस्मा और आरबीआई तक ही सीमित नहीं रह गया है। यूरोपीय बैंकों और नियामकीय मामलों से जुड़े लोगों ने अपने गृह देशों में संबद्ध नियामों से बातचीत की है।’
अधिकारी ने कहा, ‘इसकी संभावना नहीं है कि किसी 1 मई से पहले कोई बड़ा बदलाव आए बगैर इस संबंध में समझौता होगा। बैंक जिस बात पर जोर दे रहे हैं, वह मान्यता समाप्त किए जाने की समय-सीमा में दो साल का विस्तार है।’
अक्टूबर 2022 में, एस्मा ने सीसीआईएल समेत ऐसे 5 भारतीय क्लियरिंग संस्थानों की मान्यता समाप्त कर दी थी, जो सरकारी बॉन्डों और ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप्स (OIS) के लिए ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म का प्रबंधन करते हैं। यह निर्णय आरबीआई द्वारा विदेशी संस्था को सीसीआईएल का ऑडिट एवं निगरानी अधिकारी देने से इनकार किए जाने के बाद उठाया गया था।
एस्मा का निर्णय 1 मई, 2023 से प्रभावी होगा। भारत में परिचालन करने वाले यूरोपीय बैंकों में सोसियाते जेनेराली, डॉयचे बैंक, बीएनपी पारिबा और यूबीएस मुख्य रूप से शामिल हैं। सीसीआईएल की मान्यता रद्द किए जाने से भारतीय सरकार के बॉन्ड और ओआईएस बाजारों में इन बैंकों का परिचालन काफी हद तक प्रभावित होगा। जहां समान नियामकीय ढांचा ब्रिटेन में भी मौजूद है, लेकिन यूके फाइनैंशियल सर्विसेज ऐंड मार्केट्स बिल में पिछले महीने जिन संशोधनों पर चर्चा हुई, उनमें सीसीआईएल की तरह अन्य देश केंद्रीय समकक्षों के संबंध में मान्यता समाप्त करने की अवधि में विस्तार पर जोर दिया गया।
अधिकारियों का कहना है कि एक वर्ष की पिछली सर्वाधिक अवधि के मुकाबले संशोधन में अधिकतम अवधि 3 साल 6 महीने किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है।
यूरोपीय बैंकों के लिए वैकल्पिक रणनीतियों पर चर्चा के बीच भारत में सहायक इकाइयां शुरू करने के साथ साथ घरेलू डीलर या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के जरिये कारोबारी बदलाव की संभावना बढ़ी है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘इनमें से कुछ बैंकों की कहीं भी सहायक इकाइयां नहीं हैं। यह मौजूदा समय में सिर्फ नियमों को नजर अंदाज करने का तरीका होगा और यह एक उपयुक्त बिजनेस मॉडल नहीं है।’