पश्चिम रेलवे एक वित्त वर्ष में 10 करोड़ टन ढुलाई करने वाला रेलवे का छठा जोन बन गया है। पश्चिम रेलवे पहला गैर कोयला जोन है जिसने यह उपलब्धि हासिल की है। इस जोन में महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और राजस्थान आता है। इस क्षेत्र के यातायात में 2022-23 (वित्त वर्ष 23) में 24 फीसदी की महत्त्वपूर्ण उछाल आई।
यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से औद्योगिक यातायात की जरूरतों को पूरा करता रहा है। विश्लेषण के मुताबिक इस वित्त वर्ष में आयातित कोयले की ढुलाई के कारण आमूलचूल बदलाव आया है। देशव्यापी कोयला संकट ने ऊर्जा संकट की ओर धकेल दिया था। इससे आयातित कोयले पर निर्भरता बढ़ गई थी।
इससे वित्त वर्ष 23 में पश्चिम रेलवे की कोयले की ढुलाई 7.7 गुना बढ़ गई थी। इस दौरान गुजरात के पश्चिमी बंदरगाहों से कोयले की सीधे आपूर्ति हुई थी। विशेषज्ञों ने इंगित किया था कि पूर्वी भारत के ऊर्जा संयंत्रों में पहुंचाए जाने वाले कोयले को भी ‘रेल-सी-रेल’ मॉडल या जलमार्ग के जरिए पहुंचाया गया था। केंद्र सरकार जलमार्ग के जरिए कोयले और अन्य जिंसों की आवाजाही को बढ़ावा दे रही थी।
इससे गैर कोयला जोन जैसे पश्चिम रेलवे को निरंतर फायदा मिलने की उम्मीद थी। हालांकि पश्चिम रेलवे ने बड़े पैमाने पर आयातित कोयले की ढुलाई की थी। लेकिन इस जोन की कुल ढुलाई में कोयले की हिस्सेदारी केवल 15 फीसदी थी जो भारतीय रेलवे की 50 फीसदी ढुलाई से काफी कम थी।
पश्चिम रेलवे के इस शानदार वित्त वर्ष में औद्योगिक यातायात में खासी बढ़ोतरी हुई। वित्त वर्ष 23 में इस जोन से हो रहे सीमेंट यातायात में करीब 16 फीसदी, उर्वरक में करीब 18 फीसदी और मिनरल ऑयल की ढुलाई में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह तैयार उत्पाद (फिनिशड गुड्स) की आवाजाही कमजोर रही जबकि इस क्षेत्र में निरंतर बढ़ोतरी जारी है।