नीतिगत दर तय करने वाली समिति की सदस्य आशिमा गोयल ने उन वजहों की जानकारी दी, जिसके कारण महंगाई नीचे लाने पर ध्यान देने की जरूरत है। मनोजित साहा से बातचीत के प्रमुख अंश…
एमपीसी के ब्योरे में आपने कहा है कि वृद्धि बहाल हुई है, लेकिन कुछ आंकड़ों से मंदी के संकेत मिल रहे हैं। क्या आपको लगता है कि वित्त वर्ष 24 के लिए रिजर्व बैंक का 6.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान अधिक है?
वृद्धि का अनुमान पिछले साल के सीएसओ के दूसरे अग्रिम अनुमान 7 प्रतिशत से कम है, जिसमें उच्च नीतिगत दर सहित वृद्धि पर नजर रखी गई है। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था ने बाहरी झटकों के प्रति लचीलापन दिखाया है और वैश्विक वृद्धि दर में कमी भी अनुमान से कम गंभीर है। ऐसे में 6.5 प्रतिशत वृद्धि संभव है। भारत में निर्यात से ज्यादा आयात होता है, ऐसे में मांग में पर बाहरी असर नकारात्मक है। शुद्ध आयात मांग में कमी मामूली है। यह एक वजह है जिससे वृद्धि अनुमान 6.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत किया गया है।
बड़ा जोखिम क्या है- वृद्धि या महंगाई?
भारत की वृद्धि पर वैश्विक असर कम पड़ा है। ऐसे में एमपीसी अब महंगाई को लक्ष्य के भीतर रखने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
आपने कहा कि वास्तविक नीतिगत दर एक से ज्यादा है। क्या आप संकेत दे रही हैं कि वास्तविक दरें अब उच्च स्तर पर हैं?
फरवरी में दर में बढ़ोतरी 25 आधार अंक थी, वास्तविक दरें अभी उचित सीमा में हैं। वास्तविक संख्या के बजाय सीमा पर काम करना बेहतर है, क्योंकि महंगाई के भविष्य को लेकर अनिश्चितता है। एक साल आगे की वास्तविक दर 1.3 प्रतिशत उचित है। मौसम और तेल की कीमत संबधी अनिश्चितता को देखते हुए जरूरी है है कि सख्त संकेत दिए जाएं कि जरूरत पड़ने पर दर में बढ़ोतरी हो सकती है।
आपने कहा कि पहले ही पर्याप्त सख्ती हो चुकी है, जिससे महंगाई 4 प्रतिशत के लक्ष्य पर लाई जा सके। क्या इसका मतलब यह है कि अब रीपो रेट और बढ़ाने की जरूरत नहीं है?
अगर महंगाई दर तय ऊपरी सीमा पार नहीं करती है तो रीपो रेट में आगे बढ़ोतरी करने की जरूरत नहीं होगी।
एमपीसी को दर में कटौती के लिए क्या चीज प्रेरित करती है?
मैं एमपीसी के बारे में नहीं कह सकती। मेरे विचार से अगर महंगाई दर सतत आधार पर लक्ष्य के भीतर रहती है और संभावित वास्तविक दर जितनी जरूरत है, उससे ऊपर जाती है तो दर में कटौती उचित है।