भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अक्टूबर महीने की ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’ रिपोर्ट में कुछ उच्च संकेतकों में सुस्त होने की बात स्वीकार की गई है। हालांकि रिपोर्ट में त्योहारी सीजन के दौरान उपभोग की मांग के कारण सुधार को लेकर भरोसा जताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में 2024-25 की दूसरी तिमाही में कुल मांग में अस्थायी सुस्ती की स्थिति दूर हो जाएगी, क्योंकि त्योहारों के कारण मांग में तेजी आएगी और उपभोक्ताओं का भरोसा सुधरेगा।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद भारत की वृद्धि के परिदृश्य को तेज घरेलू मांग से समर्थन मिलेगा। इसमें कहा गया है, ‘बहरहाल कुछ उच्च संकेतक 2024-25 की दूसरी तिमाही में रफ्तार में सुस्ती दिखा रहे हैं, जो अगस्त व सितंबर में असमान्य भारी बारिश और पितृ पक्ष के कारण है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि सुधरे हुए कृषि परिदृश्य के कारण ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में वस्तु एवं सेवा कर संग्रह, वाहनों की बिक्री, बैंक के ऋण वृद्धि, वस्तु निर्यात और विनिर्माण पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) में सुस्ती का उल्लेख किया गया है। इस माह की शुरुआत में रिजर्व बैंक की 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करने का फैसला किया था, जबकि नीतिगत रुख बदलकर तटस्थ कर दिया था।
समिति ने महंगाई बढ़ने के जोखिमों का हवाला दिया था, वहीं वृद्धि को लेकर सुस्ती के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया था, जिससे कई अर्थशास्त्री आश्चर्यचकित थे।
सोमवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य उच्च संकेतक भी हैं, जो स्थिर वृद्धि दिखा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि त्योहार के मौसम के कारण खपत पर व्यय आकार ले रहा है, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में खपत बढ़ रही है। निजी निवेश भी कुछ उत्साजनक संकेत दे रहा है, हालांकि सुस्ती जारी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दशहरा दीवाली के दौरान उपभोक्ता व्यय पिछले साल से 25 प्रतिशत अधिक रहने की संभावना है।
निजी क्षेत्र के निवेश की जरूरत पर बल देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी क्षेत्र द्वारा पूंजी लगाने और वृद्धि में निवेश, क्षमता तैयार करने, रोजगार सजन और कुशलता में सुधार का मंच तैयार है।
इसमें कहा गया है, ‘यह विचार जोर पकड़ रहा है कि निजी निवेश का वक्त आ गया है, क्योंकि देरी होने पर प्रतिस्पर्धात्मकता खोने का खतरा है।’