राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) श्रम बाजार के आंकड़ों की उपलब्धता बढ़ाने के मकसद से मार्च के आखिरी हफ्ते से आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़े मासिक आधार पर जारी करना शुरू कर सकता है। अधिकारियों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी दी।
दरअसल अब ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए मासिक आंकड़े उपलब्ध होंगे। अभी तक एनएसओ शहरी क्षेत्रों के लिए पीएलएफएस डेटा तिमाही और वार्षिक आधार पर जारी करता था जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह केवल वार्षिक रूप से किया जाता था।
एक अधिकारी ने कहा, ‘मार्च महीने के आते ही हम विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तरह ही हम बेरोजगारी से जुड़े आंकड़े मासिक आधार पर जारी करना शुरू कर देंगे। इसके पीछे सोच भारतीय श्रम बाजार के लिए यथासंभव उपयोगकर्ताओं को वास्तविक आंकड़े मुहैया कराने की है। सर्वेक्षण अच्छी तरह चल रहे हैं और हमें पूरा विश्वास है कि हम परिणाम जारी कर पाएंगे।’ विकसित देश आमतौर पर रोजगार के आंकड़े मासिक आधार पर जारी करते हैं जिस पर बाजार और अर्थशास्त्रियों की नजर अर्थव्यवस्था की मजबूती को मापने के लिए होती है। भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के दबदबे के कारण अब तक रोजगार के आंकड़ों पर कम अंतराल में नजर रखना एक मुश्किल काम बन गया है।
वित्त वर्ष 2025 की जून तिमाही में शहरी क्षेत्रों से जुड़े ताजा सर्वेक्षण पिछले महीने में जारी किए गए जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जुलाई 2023-जून 2024 के सालाना सर्वेक्षण के आंकड़े सितंबर महीने में जारी किए गए थे।
तिमाही आधार पर आंकड़े जारी करने के लिए सर्वेक्षण द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया मौजूदा साप्ताहिक स्थिति (सात दिनों की संदर्भ अवधि के साथ) पर निर्भर करती है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वार्षिक पीएलएफएस सामान्य स्थिति (365 दिनों की संदर्भ अवधि के साथ) पर निर्भर करता है।
अधिकारी ने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत परिभाषाओं जिसमें आईएलओ की परिभाषा भी शामिल है, उसके तहत बेरोजगारी दर को मापने के लिए वर्तमान की साप्ताहिक स्थिति पर गौर किया जाता है। ये मासिक सर्वेक्षण सीडब्ल्यूएस का उपयोग करेंगे, जिससे डेटा का संकलन और उससे जुड़ा काम तेज हो जाएगा। अब कंप्यूटर आधारित कार्यप्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है जिससे मंत्रालय को अपने सर्वर पर तुरंत प्रतिक्रिया रिकॉर्ड करने के साथ ही डेटा सत्यापन की सुविधा भी होती है। ऐसी कोशिश की जा रही है कि डेटा आसानी से उपलब्ध कराए जाएं ताकि यह नीति निर्माताओं के लिए उपयोगी साबित हो।’ भारत के रोजगार से जुड़े डेटा सरकार व अर्थशास्त्रियों के बीच विवाद का केंद्र बने रहे हैं।