पिछले साल पीएसयू बैंकों और वित्तीय संस्थानों से प्रेरित देश का कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से अपनी रफ्तार गंवा रहा है, क्योंकि कंपनियां सस्ती वित्तीय सहायता के लिए बैंक ऋणों का रुख कर रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट के पैनल में शामिल विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिफल ऊंचे स्तर पर बने रहने और मांग कम होने के कारण कुल इश्यू पिछले साल के स्तर से काफी कम रहने के आसार हैं।
‘वैश्विक उथल-पुथल में मार्ग की तलाश : क्या भारत सही रास्ते पर रह सकता है?’ शीर्षक वाले पैनल में अपने विचार साझा करते हुए ट्रेजरी ऐंड इकनॉमिक रिसर्च के प्रमुख शैलेंद्र झिंगन ने कहा, ‘हमें लगता है कि कुल मिलाकर, पिछले साल जो आंकड़ा 11.1 लाख करोड़ रुपये या उसके आसपास था, हम उससे कम पर समापन (साल 2025-26 का) करने जा रहे हैं। मुझे यह लगता है कि इसका मुख्य कारण ऋण बाजार में दरें काफी सस्ती हैं। एक ऐसा चलन है, जहां कंपनियां बॉन्ड से दूर होकर ऋण बाजार का रुख कर रहीं हैं। रीपो दर 5.5 प्रतिशत पर होने के कारण मौजूदा स्तर पर कॉर्पोरेट कर्ज की तुलना में ईबीएलआर (एक्सटर्नल बेंचमार्क लेंडिंग रेट) ऋण कहीं ज्यादा आकर्षक लगते हैं। इसलिए मुझे लगता है कि यह ट्रेंड काफी हद तक साफ है। आगे भी आपूर्ति धीमी रहेगी।’
पहली तिमाही में कॉर्पोरेट बॉन्ड निर्गम में उछाल के बाद दूसरी तिमाही में गतिविधि धीमी हो गई क्योंकि उधार लेने की लागत बढ़ गई। भारतीय कंपनियों ने मौजूदा वित्त वर्ष के पहले चार महीने में डेट के जरिये रिकॉर्ड 4.07 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे।
एचडीएफसी बैंक के ग्रुप ट्रेजरी अरूप रक्षित ने कहा, ‘ऋण बाजार फिलहाल काफी सस्ता है और क्रेडिट ऑफटेक के साथ, जो वास्तव में उस जगह पर नहीं है, जहां उसे होना चाहिए, किसी बैंक के लिए भी इसे कर्ज के रूप में लेना आसान हो जाता है। अकाउंटिंग के सिद्धांत भी बदल चुके हैं कि आप कॉर्पोरेट बॉन्ड से कैसा व्यवहार करते हैं, कैसे रखते हैं। तो, यह कुछ ऐसा है जो धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।’
डेट श्रेणी में एफपीआई प्रवाह के संबंध में पैनल में शामिल विशेषज्ञों ने कहा कि जेपी मोर्गन ईएम बॉन्ड इंडेक्स में भारत के शामिल होने के साथ लगभग 24 से 25 अरब डॉलर के पैसिव निवेश की उम्मीद थी और यह काफी हद तक हुआ भी है। इनमें से ज्यादातर निवेश पैसिव निवेशकों से आए हैं। इसके उलट ऐक्टिव निवेशक, जो आम तौर पर तेजी से आगे बढ़ने वाले भागीदार होते हैं, वे दर कटौती, बॉन्ड प्रतिफल में गिरावट या करेंसी में संभावित मजबूती की उम्मीदों पर प्रतिक्रिया करते हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे कई निवेशकों ने तब प्रवेश किया था, जब घरेलू जी-सेक बेंचमार्क प्रतिफल लगभग 6.20 प्रतिशत था और जब ऐसा लगा कि दर कटौती का साइकल खत्म होने वाला है, तो वे निकल गए। उनमें से कुछ अब वापस आ गए हैं क्योंकि प्रतिफल 6.50 से 6.55 प्रतिशत के आसपास है और रुपया काफी हद तक अच्छे मूल्य पर लग रहा है।
सिटी के प्रबंध निदेशक आदित्य बागड़ी ने कहा, ‘इन घटनाक्रमों के बावजूद भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों में विदेशी होल्डिंग लगभग 5 प्रतिशत (कुल सीमा का) के कम स्तर पर बनी हुई है और स्टेट डेवलपमेंट लोन तथा कॉर्पोरेट बॉन्ड में तो और भी कम निवेश है। नतीजतन भारत का बॉन्ड बाजार काफी हद तक घरेलू स्तर पर ही चल रहा है, जिसे मुख्य रूप से म्युचुअल फंड, पेंशन फंड, इंश्योरेंस कंपनियों और बैंकों से मदद मिल रही है।’