भारत की कंपनियां अगले पांच साल में बड़े पैमाने पर निवेश करने की योजना बना रही हैं। S&P ग्लोबल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान पूंजीगत खर्च (कैपेक्स) दोगुना होकर 850 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। बिजली, बिजली ट्रांसमिशन, एयरलाइंस और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे सेक्टर इस निवेश के केंद्र में रहेंगे। मजबूत बैलेंस शीट, बेहतर नकदी प्रवाह और सरकार की अनुकूल नीतियों के दम पर कंपनियां अपने कारोबार को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की तैयारी में हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की शीर्ष 100 लिस्टेड कंपनियां, जिनका कुल राजस्व 1 ट्रिलियन डॉलर और 2025 में 150 अरब डॉलर का EBITDA है, इस निवेश का बड़ा हिस्सा अपनी कमाई से पूरा करेंगी। इससे उनका कर्ज नियंत्रण में रहेगा। इसके अलावा, अनलिस्टेड रिन्यूएबल एनर्जी और एयरलाइन कंपनियों के बड़े निवेश प्लान को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है।
बिजली और ट्रांसमिशन सेक्टर में करीब 300 अरब डॉलर का नया निवेश होगा, जो कुल कैपेक्स का एक तिहाई से ज्यादा है। भारत सरकार के 2030 तक 500 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी कैपिसिटी के टारगेट को हासिल करने के लिए रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स और ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर पर खास ध्यान दिया जाएगा। एनटीपीसी लिमिटेड, टाटा पावर और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन इस दिशा में अहम भूमिका निभाएंगे। अदाणी समूह ने अगले पांच साल में हर साल 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है, जबकि टाटा समूह 120 अरब डॉलर का निवेश एयरलाइंस, सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में करेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, बिजली क्षेत्र में कर्ज बढ़ सकता है। एनटीपीसी और टाटा पावर का कर्ज-से-ईबीआईटीडीए अनुपात लगभग 1 गुना बढ़ सकता है, लेकिन प्रमुख कंपनियों की क्रेडिट प्रोफाइल अभी भी ठीक रहेगी।
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एयरलाइन सेक्टर भी निवेश का बड़ा केंद्र बनेगा। इंडिगो और एयर इंडिया जैसी कंपनियां 75 से 100 अरब डॉलर का निवेश कर 2035 तक अपने विमान बेड़े को तीन गुना बढ़ाएंगी। इस निवेश का बड़ा हिस्सा लीज-फाइनेंसिंग से आएगा, जिससे बैलेंस शीट पर दबाव कम होगा। इंडिगो इस विस्तार को आसानी से संभाल लेगी, लेकिन एयर इंडिया और स्पाइसजेट को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
पारंपरिक क्षेत्र जैसे स्टील, सीमेंट, तेल-गैस और ऑटोमोबाइल में भी 250 अरब डॉलर का निवेश होगा। स्टील क्षेत्र में 25 मिलियन टन और सीमेंट में 35 फीसदी क्षमता बढ़ाने की योजना है। ये निवेश धीरे-धीरे और आंतरिक फंडिंग के जरिए होंगे। इसके अलावा, ग्रीन हाइड्रोजन, सेमीकंडक्टर और बैटरी प्लांट जैसे उभरते क्षेत्रों में 50 से 100 अरब डॉलर का निवेश होगा। अदाणी समूह और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स इस दिशा में अगुवाई करेंगे। इन क्षेत्रों में ज्यादा बाहरी कर्ज की जरूरत पड़ सकती है।
एयरपोर्ट सेक्टर में भी 35 अरब डॉलर का निवेश संभव है, खासकर अगर ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स और निजीकरण की योजनाएं आगे बढ़ती हैं। हालांकि, लंबी समयावधि और नियामक देरी से जोखिम बढ़ सकता है।
इस बार कंपनियां पहले की तुलना में कम कर्ज पर निर्भर होंगी। S&P का अनुमान है कि बैंक और पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन व आरईसी लिमिटेड जैसी वित्तीय संस्थाएं बिजली क्षेत्र में 200 अरब डॉलर तक का समर्थन देंगी। देश का बॉन्ड मार्केट भी अब मजबूत हो रहा है, जो लंबी अवधि और बेहतर कीमतों की पेशकश कर रहा है। ग्रीन बॉन्ड्स की मांग भी बढ़ रही है।
इस निवेश चक्र के अंत तक कई भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर अग्रणी बन सकती हैं। एनटीपीसी 130 गीगावाट बिजली क्षमता तक पहुंच सकती है, इंडिगो 1,000 विमानों का बेड़ा संचालित कर सकती है, और सीमेंट कंपनियां स्विस कंपनी होल्सिम जैसी वैश्विक दिग्गजों से मुकाबला कर सकती हैं। अल्ट्राटेक और अदाणी समूह ग्रीनफील्ड क्षमता बढ़ाने में भारी निवेश कर रहे हैं।
हालांकि, S&P ने चेतावनी दी है कि रिन्यूएबल, स्टील और ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट जैसे क्षेत्रों में जोखिम ज्यादा हैं, क्योंकि प्रोजेक्ट्स में देरी और कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव से चुनौतियां बढ़ सकती हैं।