पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत की आर्थिक गतिविधियों में कोई बड़ा व्यवधान पैदा होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन रक्षा खर्च बढ़ने से राजकोष पर बोझ बढ़ सकता है। यह बात मूडीज रेटिंग्स ने सोमवार को जारी अपनी एक रिपोर्ट में कही। उसने कहा कि रक्षा मद में अधिक खर्च होने से भारत की राजकोषीय मजबूती प्रभावित हो सकती है और राजकोषीय समेकन की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है।
रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘पाकिस्तान और भारत के लिए हमारे भू-राजनीतिक जोखिम के आकलन में दोनों देशों के बीच लगातार दिख रहे तनाव को शामिल किया गया है। इस तनाव के कारण कभी-कभी सीमित सैन्य कार्रवाई भी देखने को मिलती है।’
मूडीज ने यह भी कहा है कि भारत के साथ तनाव लगातार बढ़ने से पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ने की आशंका है। इससे वहां जारी राजकोषीय समेकन प्रभावित होगा और वृहद आर्थिक स्थिरता हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति में बाधा आएगी।
मूडीज ने कहा कि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो भारत में वृहद आर्थिक स्थितियां स्थिर रहेंगी। उसे मुख्य तौर पर मजबूत सार्वजनिक निवेश और दमदार निजी खपत के बीच नरम लेकिन अभी भी उच्च स्तर की वृद्धि से सहारा मिलेगा।
रेटिंग एजेंसी ने यह रिपोर्ट पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच जारी की है। भारत ने इस हमले के बाद कार्रवाई करते हुए 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। उसके बाद पाकिस्तान ने भी भारत के साथ 1972 की शिमला शांति समझौते को निलंबित कर दिया, द्विपक्षीय व्यापार पर रोक लगा दी और भारतीय विमानन कंपनियों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया।
मूडीज रेटिंग्स ने उम्मीद जताई है कि समय-समय पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने घटनाएं दिखेंगी, लेकिन उनके कारण व्यापक सैन्य संघर्ष की स्थिति संभवत: पैदा नहीं होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार तनाव बढ़ने के कारण पाकिस्तान को बाहर से रकम की व्यवस्था करने में परेशानी होगी। इससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ सकता है जो अगले कुछ वर्षों के लिए उसकी बाहरी ऋण अदायगी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
मूडीज रेटिंग्स ने अपने अप्रैल अपडेट में अनुमान जाहिर किया था कि कैलेंडर वर्ष 2025 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 5.5 से 6.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी, जो 6.6 फीसदी के फरवरी के अनुमान से थोड़ा कम है। रेटिंग एजेंसी ने अमेरिकी शुल्क को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया था। उसका कहना था कि अमेरिकी शुल्क के कारण व्यापार योजना प्रभावित होगी, निवेश अवरुद्ध होगा और वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ जाएगा।
रेटिंग एजेंसी की ‘टैरिफ ऐंड टरमॉइल’ शीर्षक के तहत अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शुल्क के कारण वैश्विक व्यापार गतिविधियों पर दबाव बढ़ेगा, क्षेत्रीय निर्यात की मांग प्रभावित होगी और व्यापार में भरोसा कमजोर होगा जिससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में निवेश की रफ्तार सुस्त पड़ जाएगी।