भारत के शहरों में रहने वाले लोग किराये के घर पर अब अधिक धन खर्च कर रहे हैं। वे 10 साल या 12 साल पहले की तुलना में घर के बजट का ज्यादा हिस्सा मकान के किराये पर खर्च कर रहे हैं।
हालिया घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) 2022-23 के अनुसार शहरी भारत में मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीएसई) किराये के घर पर बढ़कर 6.56 फीसदी हो गया। अगर 1999-2000 के इस सर्वेक्षण से तुलना करें तो यह खर्च सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है। इस सदी की शुरुआत में यह खर्च सिर्फ 4.46 फीसदी था। सरकार ने शनिवार को भारत के उपभोक्ता रुझान के आंकड़े जारी किए थे।
इस सर्वेक्षण के आखिरी आंकड़े करीब एक दशक पुराने साल 2011-12 के उपलब्ध थे। सरकार ने ‘डेटा गुणवत्ता’ के मुद्दे का हवाला देते हुए 2017-18 में इस कवायद को रद्द कर दिया था। दरअसल, वर्ष 2017-18 के सर्वेक्षण ने इंगित किया कि उपभोक्ता रुझान खराब हो गए। हालांकि हालिया आंकड़ों में सुधार आया है। महंगाई को समायोजित करने के बाद ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति उपभोग 40 फीसदी था, जबकि यह शहरी क्षेत्र में 33 फीसदी था।
सर्वे के अनुसार शहरों में रहने वाले लोग किराये के मकान के अलावा धन का बड़ा हिस्सा यातायात पर खर्च करते हैं। यह राशि वाहन मद के तहत आती है।
इसके तहत घर से कार्यस्थल पर आने-जाने पर होने वाले राशि होती है। अगर कोई अपने वाहन से कार्यस्थल पर जाता है तो ईंधन की लागत भी आती है। इससे कुल उपभोक्ता खर्च में वाहन मद की हिस्सेदारी बढ़ गई है। यह साल 2022-23 में बढ़कर 8.59 फीसदी हो गई जबकि यह 2011-12 में 6.52 फीसदी थी। सरकारी आंकड़े के अनुसार शहरों में लोग उपभोक्ता बजट का अब ज्यादा हिस्सा कार्यस्थल आने-जाने पर खर्च करते हैं।
हालांकि ग्रामीण भारत में औसत उपभोक्ता खर्च में किराये के घर पर खर्च महज 0.76 फीसदी है। यह शहरी भारत में किराये के घर पर खर्च होने वाली हिस्सेदारी का करीब 10 फीसदी हिस्सा ही है। हालांकि गांवों में भी किराये के घर पर खर्च की हिस्सेदारी बढ़ी है। यह वर्ष 2011-12 में यह महज 0.45 फीसदी थी।
ग्रामीण भारत में आवाजाही पर होने वाले खर्च में तेजी से इजाफा हुआ है। ग्रामीण भारत में आने-जाने पर होने वाला खर्च वर्ष 2022-23 में 7.38 फीसदी था, जबकि यह 2011-12 में सिर्फ 4.2 फीसदी था। शहरों की तुलना में गांवों में रहने वाले लोग आवाजाही पर कम धन खर्च करते हैं। हालांकि अब यह अंतर तेजी से घट रहा है।
शहरों की तुलना में ग्रामीण भारत में कुल उपभोक्ता खर्च आधा है। ग्रामीण भारत में औसत मासिक उपभोक्ता व्यय 3,860 रुपये था, जबकि यह शहरी भारत में 6,521 रुपये था। इसमें बड़ा बदलाव यह भी था कि ग्रामीण भारत के उपभोग में खाने-पीने का हिस्सा अब आधे से अधिक नहीं रह गया है। यह साल 2022-23 में 47.47 फीसदी ही था, जबकि इसके पहले साल 2011-12 में 52.9 फीसदी था।
ग्रामीण भारत में अन्य मदों में खर्च होने वाली राशि में गिरावट आई है। कुल मिलाकर देखें तो शिक्षा पर खर्च का हिस्सा गिरकर 5.73 फीसदी हो गया, जबकि यह पहले 6.9 फीसदी था।
ग्रामीण भारत में शिक्षा पर खर्च 3.49 फीसदी से गिरकर 3.23 फीसदी हो गया। शहरी भारत में स्वास्थ्य पर खर्च बढ़कर 5.91 फीसदी हो गया, जबकि यह एक दशक पहले 5.54 फीसदी था। हालांकि इस अवधि में ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य पर खर्च 6.65 फीसदी से बढ़कर 6.97 फीसदी हो गया।