देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि वित्तीय और गैर-वित्तीय क्षेत्रों के दमदार बहीखाता रहने की वजह से भारत अगले दशक तक 6.5 से 7 फीसदी की दर से विकास कर सकता है।
नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में नागेश्वरन ने कहा, ‘अब जब हम वित्त वर्ष 2025 के बाद के दशक में प्रवेश कर रहे हैं हमारे लिए 6.5 से 7 फीसदी के बीच स्थिर वृदि्ध दर जारी रखने के शुभ संकेत दिख रहे हैं।’ मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि वित्त वर्ष 2024 की पहली तीन तिमाही में विकास की गति को देखते हुए अब इसकी अच्छी संभावना है कि जीडीपी वृद्धि दर 8 फीसदी के करीब पहुंच जाएगी।
वित्त वर्ष 2024 के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी जनवरी की रिपोर्ट में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 7.8 फीसदी कर दिया है।
नागेश्वरन ने कहा कि बिना ऊंची महंगाई के वृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए पहले की तुलना में अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है क्योंकि देश में महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक की संदर्भ सीमा के भीतर है। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति लक्ष्य दायरे के बीच रह सकती है और मॉनसून के आधार पर यह 4 फीसदी के आसपास रह सकती है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा, ‘हमें इस दौरान किसी तरह की अप्रत्याशित आश्चर्य की उम्मीद नहीं है। भू-राजनीति में हमेशा ऐसे परिदृश्य हो सकते हैं जिससे मुद्रास्फीति हमारी अपेक्षा से अधिक हो सकती है, लेकिन अभी हमारा आधारभूत परिदृश्य यही है कि मुद्रास्फीति तय लक्ष्य दायरे के मध्य की ओर बढ़ेगी।’
नागेश्वरन ने यह भी कहा कि निजी क्षेत्रों में निवेश बढ़ने के संकेत हैं, निजी कॉरपोरेट क्षेत्र के बचत और निवेश का अंतर अधिशेष दिखा रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह अधिशेष घट रहा है जिसका मतलब है कि वे निवेश कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि खास कर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए विकास की गति बरकरार रखने के लिए, व्यवसायों के अनुपालन बोझ को कम करने और युवा आबादी के कौशल में निवेश करने पर ध्यान देने की जरूरत है।
कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कंट्री डायरेक्टर ऑगस्ट जौएम ने कहा कि वित्त वर्ष 2024 और 2025 के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जल्द ही वृदि्ध पूर्वानुमान जारी करेगा और भारत के लिए यह उन्नत होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी और वैश्विक माहौल काफी अनुकूल हो जाएगा तो इससे भारत की वृदि्ध दर में इजाफा होगा और यह 8 फीसदी तक पहुंच सकता है।
जौएम ने कहा, ‘अगर भारत 8 फीसदी की दर से बढ़ेगा तो इससे मुद्रास्फीति का दबाव बनेगा। अगर आप क्षमता से ज्यादा बढ़ेंगे तो इसका मतलब है कि आप अच्छा कर रहे हैं, लेकिन अधिक व्यापक नजरिये के लिहाज से यह अच्छा नहीं है। सवाल है कि हम तेजी से वृदि्ध की उम्मीद करते हैं तो हम संभावित वृदि्ध को बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं।’
एनसीएईआर की महानिदेशक पूनम गुप्ता ने कहा कि अतीत में भारत की जीडीपी वृद्धि को प्रभावित करने वाली राजनीतिक और नीतिगत अनिश्चितता, तेल की कीमतों में तेज वृद्धि, कम बारिश आदि जैसे सामान्य झटके अब कम मायने रखते हैं।
उन्होंने कहा, ‘बारिश की गुणवत्ता से भारत और अधिक अलग हो गया है। वित्तीय क्षेत्र स्थिर है। जीडीपी की प्रत्येक इकाई में हमें कम तेल की आवश्यकता होती है क्योंकि अर्थव्यवस्था सेवाओं की ओर बढ़ रही है और ऊर्जा दक्षता में भी सुधार हो रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा का रुख किया जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने लचीलेपन और व्यापक आर्थिक स्थिरता के साथ वृद्धि हासिल की है।’
गुप्ता ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले की तुलना में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को बेहतर तरीके से झेल सकती है और 100 डॉलर से कम तेल कीमतों का कोई भी स्तर काफी हद तक प्रबंधन किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘मैक्रोइकनॉमिक स्थिरता बड़ी मुश्किल से हासिल की जाती है। यह होना चाहिए और इसे बरकरार भी रखा जाएगा।’
गुप्ता ने कहा कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े तेजी से प्रति व्यक्ति आय वृद्धि के आंकड़ों में तब्दील हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जनसंख्या में धीमी वृद्धि के नतीजतन प्रति व्यक्ति आय वृद्धि में तेजी आई है।’उन्होंने कहा कि क्या भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के जरिये रकम जुटाकर अपने चालू खाते के घाटे को थोड़ा बढ़ाने पर विचार कर सकता है? यह एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत मुद्दा है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।
गुप्ता ने कहा, ‘एफडीआई वित्त, प्रौद्योगिकी और बाजारों तक पहुंच लाता है। अगर आप अन्य तेजी से बढ़ते उभरते बाजारों का अनुभव देखेंगे तो एफडीआई उनकी विकास यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है।’