Economic Survey 2024: पूंजी व श्रमिकों की आय से जुड़ी देश की कर नीतियां असमानता दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। आर्थिक समीक्षा 2023-24 में ये बातें कही गई है। इसमें चेतावनी देते हुए कहा गया है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की बढ़ती जरूरत रोजगार व आय दोनों पर असर डाल सकती है।
अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के मुताबिक, पिछले दशकों में प्रगतिशील व्यक्तिगत कर दरों और संपत्ति कर और संपदा शुल्क को लेकर काफी बड़े प्रयोग के बावजूद कर-जीडीपी अनुपात इस अवधि में एक अंक में ही बना रहा है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘असमानता बढ़ती जा रही है और लंबी अवधि का लक्ष्य अधिक नौकरियों के सृजन का है, लेकिन इस अंतरिम अवधि में हमें आय व शेयरों पर उच्च दर से कर वसूलने की दरकार है। इसका मतलब है कि ऊपरी स्लैब में कर की दर ऊंची रह सकती है या अमीरों पर सरचार्ज लगाया जा सकता है। साथ ही इक्विटी यानी शेयरों पर पूंजीगत लाभ कर भी इस दायरे में आ सकता है।’
भारत में असमानता पर साल 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है, ‘हमने पाया कि भारत में ऊपर वाले 1 फीसदी लोगों की हिस्सेदारी कुल अर्जित आय में 6 से 7 फीसदी है, वहीं शीर्ष 10 फीसदी की हिस्सेदारी कुल अर्जित आय में एक तिहाई है।’
वैश्विक स्तर पर बढ़ती असमानता प्रमुख आर्थिक चुनौतियों के तौर पर उभर रही है, जो नीति निर्माताओं को मुश्किल में डाल रही है। समीक्षा में कहा गया है, सरकार इस पर काफी ध्यान दे रही है और सभी नीतिगत हस्तक्षेप नौकरियों के सृजन, औपचारिक क्षेत्र के साथ अनौपचारिक क्षेत्रों का एकीकरण और महिला श्रमिकों के विस्तार को ध्यान में रखकर हो रहे हैं, जिसका लक्ष्य प्रभावी तौर पर असमानता को दूर करने का है।
इस मसले पर बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों के जवाब में मुख्य अर्थशास्त्री वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा, ‘प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर में हमारे पास कर की दरें प्रगतिशील हैं। अंतत: इसका निहितार्थ यह भी है कि हम आय पर किस तरह से कर लगाते हैं , जो श्रमिकों की आय है और पूंजी आदि पर हम कैसे कर वसूलते हैं।’
एक हालिया शोध पत्र से पता चलता है कि भारत को 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की शुद्ध परिसंपत्ति पर 2 फीसदी कर लगाने और 33 फीसदी विरासत कर लेने की दरकार है ताकि वह देश में बढ़ती असमानता को दूर कर सके। इस शोध पत्र के सहयोगी लेखक अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी हैं।
ईवाई के वरिष्ठ सलाहकार सुधीर कपाडि़या इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कहा, ‘नाकाम कर व्यवस्था को पुनर्जीवित करने का कोई मतलब नहीं है। इसकी जगह मौजूदा डिजिटल व पारदर्शी कर व्यवस्था और थोड़ी प्रगतिशील दरों की मौजूदा व्यवस्था कुल कर राजस्व में बढ़ोतरी सुनिश्चित की है।
अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि के साथ कर व कर जीडीपी अनुपात में इजाफा होगा और इससे सभी आय स्तरों में कर बोझ एक जैसा सुनिश्चित होगा, ऐसे में कर प्रशासन में गुणवत्तापरक अवधारणा पर ज्यादा ध्यान देना सही होगा, जिसमें सेवाओं की बेहतरी और गैर-जरूरी कर नोटिस व कानूनी मुकदमों में कमी शामिल है।
इसके अलावा समीक्षा में कहा गया है कि मजबूत राजस्व सरकार को राजकोषीय मजबूती का रोडमैप हासिल करने में मदद करेगा। इसमें कहा गया है, कोरोना महामारी के बाद राजकोषीय मजबूती मोटे तौर पर बेहतर राजस्व से हासिल हो सकती है।
हालांकि कर में बढ़ोतरी के लिए समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि कर की दरों को व्यावहारिक बनाना समय की मांग है, खास तौर से जीएसटी के ढांचे को।
साथ ही कर मांग को गंभीर व कम गंभीर उल्लंघन के बीच अंतर करना चाहिए और करदाताओं के बीच आम गलतियों को लेकर ज्यादा जागरूकता, स्वैच्छिक अनुपालन को प्रोत्साहन और केंद्र व राज्यों में कर बढ़ाने की खातिर विवादों के समाधान में तेजी लाई जानी चाहिए।