बाहरी अनिश्चितता को देखते हुए अर्थशास्त्रियों ने गुरुवार को कहा कि भारत को न्यायपालिका, श्रम और नियमन के क्षेत्र में सुधार करने की जरूरत है, जिससे निजी क्षेत्र निवेश की दिशा में कदम बढ़ाने को प्रेरित हो सके। इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में, खासकर प्राथमिक स्तर की शिक्षा में आमूल चूल बदलाव करने की जरूरत है, जिससे 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने के सपने को मूर्त रूप मिल सके।
सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) के प्रेसिडेंट लवीश भंडारी को चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि घटने या बढ़ने की चिंता नहीं थी, बल्कि उन्हें मध्यम से दीर्घावधि के हिसाब से वृद्धि की संभावनाओं को लेकर चिंता थी। शुक्रवार को जीडीपी के तिमाही आंकड़े आने वाले हैं।
भंडारी ने कहा, ‘सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि आप आंतरिक रूप से मजबूत रहें।’ उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया में देरी को लेकर चिंता जताई, जिसकी वजह से अनुबंध से जुड़े समझौते प्रभावित होते हैं। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि 2030-31 तक औसत सालाना वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रहेगी, लेकिन उनका विचार है कि अगर निजी क्षेत्र निवेश से दूर नहीं रहता तो व़ृद्धि दर बढ़ सकती है।
उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘इस समय हम एकमात्र कॉर्पोरेट क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं, जिनके पास खर्च करने की क्षमता ज्यादा है। मुझे लगता है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का वित्तीय लचीलापन इस समय पिछले 10 वर्षों में सबसे अधिक है। फिर भी वे निवेश नहीं कर रहे हैं।’ उन्होंने सुधारों पर जोर देते हुए कहा कि इन कारोबारियों के वापस लौटने पर अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी।
नियामकीय सुधार को लेकर भंडारी ने कहा कि जब तक उद्योग जगत चुनौतियों को लेकर ईमानदार नहीं होता है, तब तक विनियमन में ढील नहीं आ सकती है। उन्होंने कहा कि समस्या यह आती है कि ज्यादातर नियामक सरकारी क्षेत्र से संचालित हैं। उन्होंने कहा, ‘हम शायद ही कभी बाहर के लोगों को लाते हैं। निश्चित रूप से हमारे नियामक ढांचे में विदेशी लोगों को न लाया जाए। विनियमों में वास्तविक ढील बहुत कठिन है क्योंकि सरकारक में उद्योग के आने को लेकर कोई भरोसा नहीं करता।’उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र जिन समस्याओं का सामना कर रहा है और दीर्घावधि के हिसाब से अर्थव्यवस्था की जो जरूरतें हैं, उन्हें समझने के लिए नियामक इकाइयों के पास पर्याप्त क्षमता नहीं है। भंडारी ने नियामक सुधारों पर जोर देते हुए कहा कि इसके अलावा ये नियामक निकाय एक दूसरे से बात नहीं करते।
हालांकि मशरिक के सीईओ और कंट्री हेड तुषार विक्रम ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक अपने विनियमन में आने वाले उद्योग के लोगों से बहुत जुड़ा हुआ है। अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया के वित्तीय क्षेत्र का अनुभव रखने वाले विक्रम ने कहा कि रिजर्व बैंक अन्य नियामक निकायों की तुलना में संबंधित उद्योग से कहीं बेहतर तरीके से संपर्क में रहता है।
हालांकि उन्होंने कहा कि कंपनियों को प्रतिष्ठान स्थापित करने के लिए जिन मंजूरियों की जरूरत होती है, वह तमाम नियामक होने के कारण अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा कि जब हम विनियमन कम कर रहे हैं तो हमें विश्व के साथ बहुत तेजी से तालमेल बिठाने की जरूरत है। निप्पॉन म्युचुअल फंड में सीईओ और एमडी संदीप सिक्का ने कहा कि बाजार नियामक सेबी और विनियमन के दायरे में आने वाले कारोबारी बहुत नजदीकी से काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया म्युचुअल फंड कारोबारियों व सेबी के बीच एक और स्तर मुहैया कराता है।
भंडारी ने खासकर प्राथमिक स्तर पर शैक्षणिक सुधारों की बात की और कहा कि दीर्घावधि आर्थिक वृद्धि में इसकी अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि अभी जो प्राइमरी स्कूल में प्रवेश कर रहे हैं, 2047 में करीब 30 साल उम्र के होंगे। प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले आधे विद्यार्थी लिख और पढ़ नहीं पाते। अगर प्राथमिक स्कूल ठीक नहीं होते हैं तो आपका 2047 का सपना टूट जाएगा।