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Web Exclusive: हिमालय से एंडीज पर्वत तक व्यापार की डोर, भारत क्यों चिली से व्यापार समझौते को दे रहा है बढ़ावा?

इस दौरे के दौरान दोनों देशों ने अपनी मौजूदा हालांकि सीमित, व्यापारिक समझौता- PTA को बढ़ाकर एक CEPA में बदलने पर सहमति जताई।

Last Updated- May 24, 2025 | 9:13 PM IST
PM Narendra Modi and President of Chile Gabriel Boric
Photo: PTI

India-Chile CEPA: भारत और चिली विश्व मानचित्र पर एक-दूसरे से बहुत दूर हैं। उनके बीच विशाल महासागर हैं, लेकिन फिर भी दोनों देशों के बीच कुछ प्राकृतिक समानताएं हैं। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल में भारत की यात्रा पर आए चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक (Gabriel Boric) के साथ ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कही। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भारत के हिमालय और चिली के एंडीज पर्वतों ने दोनों देशों में हजारों वर्षों से जीवनशैली को आकार दिया है… महान चिली कवयित्री और नोबेल पुरस्कार विजेता गैब्रिएला मिस्ट्राल (Gabriela Mistral) ने रवींद्रनाथ टैगोर और अरविंदो घोष के विचारों से प्रेरणा ली थी। इसी तरह, भारत में भी चिली साहित्य की सराहना की गई है।” उन्होंने आगे कहा, “भारतीय फिल्मों, भोजन और शास्त्रीय नृत्यों के प्रति चिली के लोगों में बढ़ती रुचि हमारे सांस्कृतिक संबंधों का जीवंत उदाहरण है।”

इस दौरे के दौरान दोनों देशों ने अपनी मौजूदा हालांकि सीमित, व्यापारिक समझौता- प्राथमिकता प्राप्त व्यापार समझौता (PTA) को बढ़ाकर एक समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) में बदलने पर सहमति जताई। इस महीने की शुरुआत में उन्होंने CEPA के लिए टर्म्स ऑफ रेफरेंस पर हस्ताक्षर किए, जिसकी वार्ताएं 26 से 30 मई के बीच नई दिल्ली में आयोजित की जाएंगी।

CEPA से बढ़ेगा भारत-चिली व्यापार

भारत और चिली ने जनवरी 2005 में आर्थिक सहयोग पर एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके बाद मार्च 2006 में एक प्राथमिकता प्राप्त व्यापार समझौता (PTA) हुआ। इसके बाद सितंबर 2016 में इस PTA का विस्तार किया गया, जो मई 2017 में प्रभाव में आया। इस विस्तार के साथ समझौते का दायरा करीब 474 से बढ़ाकर 2,829 टैरिफ लाइनों तक कर दिया गया। अब प्रस्तावित समग्र आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) का उद्देश्य मौजूदा PTA को और आगे बढ़ाना है। यह समझौता महत्वपूर्ण खनिजों, डिजिटल सेवाओं, निवेश प्रोत्साहन और सहयोग, और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) जैसे क्षेत्रों को शामिल करते हुए आर्थिक एकीकरण और सहयोग को और बढ़ाने का लक्ष्य रखता है।

भारत का चिली के साथ 2024 में 1.3 अरब डॉलर का व्यापार घाटा रहा। इस दौरान भारत ने चिली को 1.1 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि 2.45 अरब डॉलर का आयात किया। भारत चिली को फार्मास्युटिकल उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुएं, ऑटोमोबाइल और केमिकल्स निर्यात करता है। भारत चिली से महत्वपूर्ण खनिज संसाधन आयात करता है जो औद्योगिक विकास के लिए जरूरी कच्चे पदार्थ हैं। 2024 में, भारत ने चिली से 1.25 अरब डॉलर की वैल्यू का तांबा अयस्क और कंसंट्रेट्स आयात किया, जो चिली से कुल आयात का लगभग आधा हिस्सा है। वहीं, लिथियम ऑक्साइड और हाइड्रॉक्साइड तथा लिथियम कार्बोनेट का कुल आयात इस दौरान सिर्फ 16 लाख डॉलर रहा।

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भारत के वाणिज्य विभाग ने एक बयान में कहा, “आर्थिक साझेदारी को और बढ़ाने के लिए दोनों पक्षों ने समग्र आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर बातचीत शुरू करने की मंशा जताई है ताकि व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों की पूरी क्षमता को उजागर किया जा सके। इससे रोजगार में वृद्धि, निवेश प्रोत्साहन, सहयोग और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। जैसा कि फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के तहत गठित जॉइंट स्टडी ग्रुप (JSG) द्वारा सुझाव दिया गया है।”

विदेश मंत्रालय में सचिव (ईस्ट) पी. कुमारन ने बताया कि कैसे दोनों देश अपने-अपने हितों को सुरक्षित करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारे हितों में कृषि निर्यात का विस्तार और महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा शामिल है।” बोरिक की यात्रा के दौरान एक ब्रीफिंग में उन्होंने कहा, “चिली की ओर से स्वाभाविक रुचि उन कृषि उत्पादों के निर्यात में है, जो भारतीय बाजार में आमतौर पर उपलब्ध नहीं हैं लेकिन जिनके उत्पादन में चिली माहिर है।”

कुमारन ने यह भी कहा कि भारत चिली में सेवाओं के बाजार को खोलने में रुचि रखता है। उन्होंने कहा, “चिली खनन, एग्रो-प्रोसेसिंग और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अधिक निवेश चाहता है। और हम आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में, उन क्षेत्रों में निवेश चाहते हैं जो हमें औद्योगिक क्षमताएं विकसित करने में मदद करें और भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने में योगदान दें।”

लिथियम से लेकर एनर्जी तक, भारत-चिली सहयोग को नया विस्तार

अर्जेंटीना और बोलीविया के साथ मिलकर चिली “लिथियम त्रिकोण” (Lithium Triangle) का हिस्सा है। इन तीन देशों के पास दुनिया के 75% से ज्यादा लिथियम भंडार मौजूद हैं — जो इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के लिए एक अत्यंत आवश्यक खनिज है। अकेले चिली के पास दुनिया के 52% से अधिक लिथियम भंडार हैं जो मुख्य रूप से अटाकामा सॉल्ट फ्लैट्स (Atacama Salt Flats) क्षेत्र में केंद्रित हैं।

वर्तमान में, दुनिया के लगभग 24% तांबे और 30% लिथियम का उत्पादन चिली से होता है। खनन क्षेत्र चिली की जीडीपी में लगभग 13% का योगदान देता है। वर्ष 2023 में चिली सरकार ने एक राष्ट्रीय लिथियम रणनीति (National Lithium Strategy) और एक राष्ट्रीय लिथियम कंपनी की घोषणा की, जिसमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnerships) के माध्यम से राज्य-नेतृत्व वाले विकास को प्राथमिकता दी गई है।

अप्रैल में साइन किए गए संयुक्त बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चिली के राष्ट्रपति गेब्रियल बोरिक ने अन्वेषण, खनन और प्रोसेसिंग के साथ-साथ रिसर्च और डेवलपमेंट के क्षेत्र में सहयोग को तेज करने पर सहमति जताई ताकि महत्वपूर्ण खनिजों की पूरी वैल्यू चेन में निवेश को बढ़ावा दिया जा सके और दोनों देशों को पारस्परिक लाभ मिल सके।

संयुक्त बयान में कहा गया “दोनों पक्षों ने खनिजों और खनन के क्षेत्र में आपसी लाभकारी साझेदारी और समझौतों के माध्यम से सप्लाई चेन और लोकल वैल्यू चेन को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति जताई है, जिसमें चिली से भारत को खनिजों और कच्चे माल की लॉन्ग टर्म में सप्लाई की संभावना भी शामिल है।”

CEPA चर्चा के तहत भारत महत्वपूर्ण खनिजों (Critical Minerals) के लिए एक ठोस कदम उठाने की दिशा में काम कर रहा है।

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पी. कुमारन ने कहा, “हम मानते हैं कि इससे हमें इस विषय में विस्तार से बात करने का अवसर मिलेगा कि भारत और चिली के बीच किस प्रकार की पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्थाएं की जा सकती हैं।” उन्होंने आगे कहा कि इसमें स्वाभाविक रूप से भारतीय निवेश शामिल होंगे और संभवतः चिली में कुछ प्रकार का वैल्यू एडिशन भी किया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा, “चिली की ओर से यह स्पष्ट इच्छा है कि निवेशक देश से रिफाइंड मटेरियल बाहर ले जाने से पहले वहां आकर उसमें वैल्यू जोड़ें।”

कुमारन ने यह भी स्पष्ट किया कि यह व्यापार समझौता केवल महत्वपूर्ण खनिजों तक ही सीमित नहीं है।

उन्होंने कहा, “भारत फार्मास्युटिकल्स, वैक्सीन आदि का दुनिया के सबसे प्रतिस्पर्धी उत्पादक देशों में से एक है। हम नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी चिली के साथ काम करना चाहते हैं। मेरी जानकारी के अनुसार, चिली अपनी एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर, विशेष रूप से ट्रांसमिशन लाइनों का विस्तार करना चाहता है, ताकि देश के अधिक हिस्सों को कवर किया जा सके और उपलब्ध नवीकरणीय एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रभावी रूप से सभी वर्गों तक पहुंच सके।” उन्होंने कहा, “ये सभी क्षेत्र हमारी साझा रुचि के हैं।”

लिथियम बैटरी: भारत के सामने हिमालय जैसी चुनौती

लिथियम-आयन बैटरी उत्पादन में चीन दुनिया में सबसे आगे है जिसकी वैश्विक विनिर्माण क्षमता में हिस्सेदारी लगभग 73% है। इसका मुख्य कारण चीन का फर्स्ट मूवर एडवांटेज और चिली के साथ उसका गहरा आर्थिक सहयोग है। चीन और चिली ने नवंबर 2005 में एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर किए थे, जो अक्टूबर 2006 में प्रभाव में आया। इसके बाद नवंबर 2017 में दोनों देशों ने FTA के एक अपग्रेडेड प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत व्यापार उदारीकरण को और बढ़ाया गया और लगभग 98% वस्तुओं पर टैरिफ छूट को विस्तार दिया गया। चीन ने चिली में, खासकर एनर्जी सेक्टर में तेजी से अपनी पकड़ मजबूत की है। आज चिली के एनर्जी सेक्टर का लगभग दो-तिहाई हिस्सा चीनी कंपनियों के नियंत्रण में है।

2018 में चीन की खनन और मैन्युफैक्चरिंग कंपनी Tianqi Lithium ने चिली स्थित Sociedad Química y Minera (SQM) में 24% हिस्सेदारी खरीदी थी। यह दुनिया की प्रमुख लिथियम उत्पादक कंपनियों में से एक है। इस महत्वपूर्ण निवेश के जरिए चीन को सालार डी अटाकामा क्षेत्र में सीधे लिथियम खनन का अधिकार मिला, जो अपनी उच्च गुणवत्ता वाले लिथियम भंडार के लिए जाना जाता है।

चीन की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी BYD को भी चिली में 80,000 टन तक लिथियम निकालने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है। इसके अलावा, BYD ने चिली के प्रमुख खनन केंद्र एंटोफगास्ता (Antofagasta) में लगभग 29 करोड़ डॉलर का निवेश कर एक लिथियम कैथोड फैक्ट्री स्थापित करने की योजना की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य चिली में ही लिथियम का वैल्यू एडिशन करना है। चीनी कंपनियों ने चिली में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भी निवेश किया है, जिनमें एंटोफगास्ता में प्रस्तावित लिथियम इंडस्ट्रियल पार्क भी शामिल है, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और मजबूत करता है।

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नई दिल्ली स्थित व्यापार थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के फाउंडर अजय श्रीवास्तव ने कहा कि चूंकि भारत के पास फिलहाल लिथियम को प्रोसेस करने या उसका उपयोग मैन्युफैक्चरिंग में करने की क्षमता नहीं है। इसलिए भारत-चिली FTA का लिथियम सोर्सिंग पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। अभी के लिए, भारत स्मार्टफोन और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए तैयार लिथियम-आयन बैटरियां चीन से आयात करता है।

वर्तमान में भारत में लिथियम-आयन बैटरियों जैसी एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल्स (ACCs) के निर्माण और कुल वैल्यू एडिशन में निवेश नगण्य है। घरेलू स्तर पर लगभग पूरी ACC मांग आयात के जरिए पूरी की जा रही है। 2024 में भारत ने 2.8 अरब डॉलर मूल्य की लिथियम-आयन बैटरियां आयात कीं, जिनमें से तीन-चौथाई आयात चीन से हुआ। मई 2021 में सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ACCs (एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल्स) बैटरियों के आयात पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) को मंजूरी दी थी, जिसका कुल बजट ₹18,100 करोड़ था। हालांकि, यह योजना अभी तक धीमी गति से आगे बढ़ रही है। अगर भारत को लिथियम-आयन बैटरी निर्माण में चीन की बराबरी करनी है, तो उसे चिली के साथ और गहरे रिश्ते बनाने होंगे और यह काम हिमालय जितना ही विशाल है।

First Published - May 24, 2025 | 9:13 PM IST

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