केंद्र सरकार कपड़ा उद्योग को पर्यावरण के लिहाज से टिकाऊ बनाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करने पर काम कर रही है। इसका मकसद वैश्विक बाजारों, खासकर विकसित देशों को ध्यान में रखकर कपड़ा उत्पादन और व्यापार की ठोस पहल करना है।
सरकार के अधिकारियों का मानना है कि कपड़ा क्षेत्र में भारत का पर्यावरण के लिहाज से टिकाऊ होना महत्त्वपूर्ण है, ताकि वैश्विक बाजार की प्रतिस्पर्धा में विशेष जगह बनी रह सके। कपड़ा मंत्रालय एक रूपरेखा तैयार कर रहा है और उद्योग के साथ परामर्श कर रहा है, ताकि उनके दृष्टिकोण पर भी विचार किया जा सके।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘कपड़ा क्षेत्र में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना और पीएम मित्र योजना लागू करने पर ध्यान देने के अलावा, एक और बात जिस पर विचार किया जा रहा है, वह है स्थिरता, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बनी रहेगी। हम एक व्यापक दृष्टिकोण पत्र और रूपरेखा के साथ आने की योजना बना रहे हैं और यह जल्द ही हो जाना चाहिए।’ सरकार ऐसे समय में इस पर विचार कर रही है, जब अमीर देश जैसे अमेरिका और ब्रिटेन के साथ यूरोप के देश टिकाऊपन के साथ कारोबार पर इसके असर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) ने पहले ही ‘ईयू स्ट्रैटेजी फॉर सस्टेनबल ऐंड सर्कुलर टेक्सटाइल’ को स्वीकार कर लिया है, जिससे कि वस्त्रों के टिकाऊ खपत के जरिए इस सेक्टर को 27 सदस्य देशों के गुट में ज्यादा हरित और ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। इसके तहत टेक्सटाइल को ज्यादा टिकाऊ, रिपेयर और रिसाइकल के अनुकूल बनाना ताकि जरूरत से ज्यादा उत्पादन और खपत की स्थिति को रोका जा सके और बगैर बिके और वापस आए कपड़ों को नष्ट करने को हतोत्साहित करने सहित अन्य कार्य शामिल हैं।
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआईटीआई) की महासचिव चंद्रिमा चटर्जी ने कहा कि कपड़े के प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता भारत को टिकाऊ टेक्सटाइल वैल्यू चेन में अग्रणी भूमिका निभाने की जरूरत है। चटर्जी ने कहा, ‘हम कपड़ा क्षेत्र के लिए बेहतर कार्बन फुटप्रिंट, चक्रीयता, अपशिष्ट प्रबंधन, जल प्रबंधन, टिकाऊ तकनीकों के लिए निवेश सहयोग और हरित नौकरियों के लिए कौशल विकास की दिशा में प्रभावी तरीके से बदलाव के लिए एक दृष्टिकोण, लक्ष्य और रोडमैप की उम्मीद कर रहे हैं। वैश्विक टेक्सटाइल बाजार में भारत की स्थिति इस पर निर्भर करेगी कि अगले कुछ साल में हम इस दिशा में कितना आगे बढ़ते हैं।’