भारतीय दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने आईबीसी नियमों में अपने ताजा संशोधन में परिसमापन प्रक्रिया के दौरान कंपनी को चालू हालत में बेचने की अनुमति देने का प्रावधान खत्म कर दिया है। परिसमापन प्रक्रिया में बदलाव के लिए किया गया उपरोक्त संशोधन आईबीबीआई ने 14 अक्टूबर को अधिसूचित किया था।
दिवाला नियामक ने इसके पहले के एक चर्चा पत्र में कहा था कि परिसमापन प्रक्रिया के दौरान कंपनी की बिक्री से कुछ चिंता सामने आई है। इसमें खराब प्रतिक्रिया, लंबे कानूनी विवाद, बढ़ी लागत और परिसमापन प्रक्रिया पूरी होने में देरी शामिल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी या काराबोर की बिक्री की संभावना को खत्म किए जाने के बाद बोली के माध्यम से कॉर्पोरेट इंसाल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रॉसेस (सीआरआईपी) के तहत कंपनी का अधिग्रहण ही एकमात्र विकल्प होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि परिसमापन के तहत केवल परिसंपत्तियों को ही एक या दूसरे तरीके से बेचा जा सकता है।
पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर और नैशनल लीडर, रेग्युलेटरी अंशुल जैन ने कहा, ‘यह उन बोलीदाताओं के लिए अच्छा हो सकता है जो केवल चुनिंदा संपत्तियां हासिल करना चाहते हैं और इसके परिणामस्वरूप परिसमापन प्रक्रियाओं का तेजी से निष्कर्ष निकल सकता है, लेकिन उन बोलीदाताओं के लिए अब परिसमापन बिक्री फायदेमंद नहीं लगेगी, जो पूरी कंपनी का अधिग्रहण करने और लाइसेंस, पंजीकरण आदि की निरंतरता का लाभ उठाने में रुचि रखते थे।’
जून 2025 तक 103 कॉर्पोरेट कर्जदारों (सीडी) के मामलों को बिक्री करके बंद कर दिया गया, जो परिसमापन प्रक्रिया के लिए चिंता का विषय है। आईबीबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि इन 103 सीडी में लगभग 1.61 लाख करोड़ रुपये के दावे थे, जबकि परिसमापन मूल्य लगभग 5.68 लाख करोड़ रुपये था।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स की मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘बोर्ड ने प्रभावी रूप से समाधान प्रक्रिया और परिसमापन के बीच एक स्पष्ट सीमा रेखा खींची है। इसके पीछे का इरादा परिसमापन को पुनरुद्धार के लिए एक विस्तारित रास्ते के बजाय, संपत्ति की वसूली और वितरण पर केंद्रित एक टर्मिनल प्रक्रिया के रूप में सख्ती से मानना प्रतीत होता है।’