भारत सरकार कॉर्बन उत्सर्जन को कम करने और रिन्यूबल एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए इन दिनों खास जोर दे रही है। इसी तर्ज पर भारत सरकार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र (nuclear energy sector) में 26 अरब डॉलर के निवेश को लेकर प्राइवेट कंपनियों से बातचीत कर सकती है। यह जानकारी रॉयटर्स को सरकारी सूत्रों के हवाले से मिली।
सरकार की योजना बिजली उत्पादन को बढ़ाने और उससे होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने की है। इसी लक्ष्य के साथ सरकार यह बड़ा निवेश चाहती है। रॉयटर्स ने बताया कि सरकार जिन 5 प्राइवेट फर्मों से बाचत कर रही है उसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries), टाटा पावर (Tata Power), अदाणी पावर (Adani Power) और वेदांत लिमिटेड (Vedanta Ltd.) शामिल हैं। रॉयटर्स को सरकारी सूत्रों ने यह भी बताया कि सरकार चाहती है कि सभी प्राइवेट कंपनियां 44,000 करोड़ रुपये के करीब का निवेश करें।
सूत्रों ने कहा कि संघीय परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy) और सरकार द्वारा संचालित न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Nuclear Power Corp of India Ltd-NPCIL) ने निवेश योजना पर पिछले साल प्राइवेट कंपनियों के साथ कई दौर की चर्चा की है।
ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत परमाणु ऊर्जा (nuclear power) में प्राइवेट निवेश आमंत्रित कर रहा है। मौजूदा स्थिति के मुताबिक, भारत में 2 फीसदी से भी कम बिजली उत्पादन रिन्यूबल एनर्जी (विंड एनर्जी, सोलर एनर्जी, हाइड्रो पावर) के माध्यम से होता है। सरकार का प्लान कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
अगर प्राइवेट फर्में निवेश करती हैं तो इस फंडिंग से भारत को 2030 तक अपनी इंस्टाल्ड बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
सूत्रों ने कहा कि निवेश के साथ, सरकार को 2040 तक 11,000 मेगावाट (मेगावाट) नए न्यूक्लियर पावर उत्पादन क्षमता बनाने की उम्मीद है।
NPCIL के पास वर्तमान में 7,500 मेगावाट की क्षमता का न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट है और कंपनी ने अन्य 1,300 मेगावाट के लिए निवेश करने की योजना बनाई है।
सूत्रों ने कहा कि फंडिंग योजना के तहत प्राइवेट कंपनियां न्यूक्लियर प्लांट में निवेश करेंगी। उन्हें जमीन, पानी का अधिग्रहण भी प्राप्त होगा और प्लांटों के रिएक्टर कॉम्प्लेक्स के बाहर के क्षेत्रों में कंस्ट्रक्शन का काम भी करेंगी।
लेकिन, स्टेशनों के निर्माण, संचालन और उनके फ्यूल मैनेजमेंट का अधिकार NPCIL के पास रहेगा, जैसा कि कानून के तहत परमिशन है।
भारतीय कानून प्राइवेट कंपनियों को न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट स्थापित करने से रोकता है लेकिन उन्हें कंपोनेंट्स, इक्विपमेंट्स की सप्लाई करने और रिएक्टरों के बाहर काम के लिए कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्ट की परमिशन देता है।
सरकार सालों से अपने न्यूक्लियर एनर्जी क्षमता में बढ़ोतरी लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है, इसकी मुख्य वजह यह है कि वह न्यूक्लियर फ्यूल सप्लाई नहीं खरीद सकी। हालांकि, 2010 में, भारत ने रीप्रोसेस्ड न्यूक्लियर फ्यूल की सप्लाई के लिए अमेरिका के साथ एक समझौता किया।
भारत के कड़े परमाणु मुआवजा कानूनों ने जनरल इलेक्ट्रिक (General Electric ) और वेस्टिंगहाउस (Westinghouse) जैसे विदेशी पावर प्लांट बिल्डर्स के साथ बातचीत में रुकावट उत्पन्न की है। देश ने 2020 से 2030 तक 2,000 मेगावाट परमाणु ऊर्जा जोड़ने का लक्ष्य टाल दिया है।