दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडपीठ ने सरकार द्वारा मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले समूह रिलायंस के खिलाफ अपने गैस के कुंओं से अनुचित तरीके से गैस निकालकर 1.5 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई करने के खिलाफ दायर याचिका पर रिलायंस इंडस्ट्रीज तथा अन्य से जवाब मांगा है।
इससे पहले 9 मई को दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने याचिका को खारिज कर दी थी। जिसे सरकार ने चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत द्वारा 24 जुलाई, 2018 को आरआईएल के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम के पक्ष में सुनाए गए फैसले को बरकार रखा था। इस कंसोर्टियम की ब्रिटेन की कंपनी बीपी पीएलसी और कनाडा की निको रिसोर्सेज शामिल है।
मई के आदेश में कहा गया था, ‘अदालत यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि मध्यस्थता अदालत के निष्कर्ष ऐसे हैं जन तक कोई भी उचित व्यक्ति नहीं पहुंच पाएगा। यह कहना पर्याप्त है कि मध्यस्थता अदालत द्वारा अपनाया गया नजरिया निश्चित रूप से एक संभावित नजरिया है जिसमें किसी तरह की हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।’
गुरुवार को केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी और पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा के पीठ को बताया कि आरआईएल को 2003 से ही मालूम था कि उसके गैस ब्लॉक और पास के ही ओएनजीसी के गैस ब्लॉक आपस में जुड़े हुए हैं।
सरकार ने आरआईएल पर धोखाधड़ी करने और 1.5 अरब डॉलर से अधिक का फायदा उठाने का आरोप लगाया था। सरकार ने अदालत में कहा, ’30 जून, 2016 तक विस्थापित गैस की कीमत ही 1.5 अरब डॉलर होती है।’सरकार ने यह भी तर्क दिया कि आरआईएल ने कहा था कि उनके ब्लॉक और सरकार के बीच कोई जुड़ाव नहीं थी मगर सरकार की जानकारी के बिना जानबूझकर ओएनजीसी ब्लॉक से गैस की निकासी की थी।
उन्होंने यह भी कहा कि उनके द्वारा चुनौती दी गई मध्यस्थता फैसला भारत की सार्वजनिक नीति के खिलाफ था।