इन्वेस्टर एजूकेशन ऐंड प्रोटेक्शन फंड अथॉरिटी (आईईपीएफए) ने अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को बताया है कि वह बेहद अल्प-विकसित शिकायत निवारण प्रणाली की वजह से रिफंड के दावों के लिए फोन कॉल, ईमेल का प्रबंधन करने में विफल रहा है। आईईपीएफए को विभिन्न तकनीकी प्लेटफॉर्मों की गैर-सक्रियता, संदिग्ध एजेंटों जैसी समस्याओं से भी जूझ रहा है।
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार की क्षमता संबंधित किल्लत का स्पष्ट उदाहरण है, जिसकी वजह से आईईपीएफए के साथ पड़ी परिसंपत्तियों का आकार बढ़ गया है।’विशेषज्ञ समिति ने गैर-दावे वाली परिसंपत्तियों और आईईपीएफ जैसी सरकार-स्वामित्व वाली रिपोजिटरीज को स्थानांतरित की गई आम लोगों की रकम का केंद्रीकृत डेटा तैयार करने का सुझाव दिया है।
इस डेटाबेस का मुख्य उद्देश्य गैर-दावे वाली परिसंपत्ति (हकदार मालिकों के साथ सभी वित्तीय परिसंपत्तियों समेत) को पहचान दिलाना होगा। इससे वैध मालिकों को निवेश और समाप्त हुई बचत और उसका दावा करने आदि की सही जानकारी देने में भी मदद मिलेगी।
समिति ने कहा है कि प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के प्रयास में कानून समर्थित केंद्रीय प्राधिकरण को सही मालिकों का पता लगाने, शिकायतें निपटाने और सुरक्षा तथा निजता से जुड़ी चिंताओं से निपटने में सक्षम बनाया जाना चाहिए। आईईपीएफए को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 125 के तहत गठित किया गया और इसका उद्देश्य निवेशक, जागरूकता ओर सुरक्षा को बढ़ावा देना है। निवेशक ऑनलाइन एप्लीकेशन नोटीफिकेशन फाइल कर रिफंड का दावा कर सकते हैं, जिसमें पुन: सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत होती है।