कच्चे तेल की कीमतों में मंगलवार को गिरावट आई। इसकी वजह यूक्रेन युद्ध समाप्ति के लिए बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलने और रूसी शिपमेंट पर प्रतिबंध जारी रहने की आशंका रही और जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की चिंता बढ़ गई। ब्रेंट वायदा 11:46 बजे (जीएमटी) तक 33 सेंट या 0.5 फीसदी की गिरावट के साथ 63.04 डॉलर प्रति बैरल पर था। वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट क्रूड 32 सेंट यानी 0.5 फीसदी की गिरावट के साथ 58.52 डॉलर पर आ गया।
सोमवार को के दोनों बेंचमार्क में 1.3 फीसदी की वृद्धि हुई थी क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति के लिए शांति समझौते पर बढ़ते संदेह ने रूसी कच्चे तेल और ईंधन की आपूर्ति के निर्वाध प्रवाह की उम्मीदों को कम कर दिया। रूसी तेल पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगे हुए हैं।
रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकऑयल पर नए प्रतिबंधों तथा रूसी कच्चे तेल से परिष्कृत तेल उत्पादों को यूरोप में बेचने के खिलाफ नियमों के कारण कुछ भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी तेल की खरीद में कटौती कर दी है, विशेष रूप से निजी कंपनी रिलायंस ने।
बिक्री के सीमित विकल्पों के कारण रूस, चीन को निर्यात बढ़ाने पर विचार कर रहा है। मंगलवार को रूसी उप-प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा कि मॉस्को और पेइचिंग चीन को रूसी तेल निर्यात बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं।
यूबीएस के विश्लेषक जियोवानी स्टाउनोवो ने कहा, बाजार के प्रतिभागी अभी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यूरोपीय और अमेरिका के नवीनतम प्रतिबंधों का रूसी तेल निर्यात पर असर पड़ेगा या नहीं। कुल मिलाकर, बाजार विश्लेषक व्यापक आपूर्ति और मांग असंतुलन की संभावना पर निगाह रख रहे हैं।
डॉयचे बैंक ने सोमवार को एक नोट में कहा कि उसे 2026 तक कच्चे तेल का सरप्लस कम से कम 20 लाख बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है और 2027 तक भी किलल्त की कोई राह नहीं दिखती। विश्लेषक माइकल हसुए ने कहा, 2026 में आगे मंदी की राह बनी हुई है।
अगले साल बाजारों में नरमी की उम्मीद का कारण यूक्रेन-रूस शांति समझौते न होना है। इस समझौते से कीमतों को बल मिला। समझौते के कारण मॉस्को पर लगे प्रतिबंध हट सकते हैं, जिससे बाजार में पहले से प्रतिबंधित तेल की आपूर्ति फिर से शुरू हो सकती है।
फिर भी तेल बाजारों को इस बढ़ती उम्मीद से कुछ सहारा मिल रहा है कि अमेरिका 9-10 दिसंबर की नीतिगत बैठक में ब्याज दरों में कटौती करेगा और फेडरल रिजर्व के सदस्य कटौती के लिए समर्थन का संकेत दे रहे हैं। कम ब्याज दरें आर्थिक वृद्धि को गति दे सकती हैं और तेल की मांग बढ़ा सकती हैं।