इकोनॉमिक सर्वे (आर्थिक समीक्षा) में कहा गया है कि भारत में मुद्रास्फीति (Inflation) में तेजी आने का जोखिम दूर हो गया है। वित्त वर्ष 2023-24 में महंगाई की चुनौती बीते वर्ष के मुकाबले कम चिंताजनक रहने का अनुमान है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत, और अगले वित्त वर्ष की पहली तथा दूसरी तिमाही में 5 और 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। मॉनसून सामान्य रहने की संभावना के आधार पर आरबीआई ने ये अनुमान व्यक्त किए हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में मंगलवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा में कहा गया हैकि भारत का मुद्रास्फीति प्रबंधन अच्छा है और इसकी तुलना उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से की जा सकती है।
उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में संभावित मंदी की वजह से वैश्विक जिंस कीमतों की वजह से पैदा हुआ मुद्रास्फीति जोखिम वित्त वर्ष 2023 के बजाय वित्त वर्ष 2024 में ज्यादा घटने का अनुमान है।
समीक्षा में चीन में कोविड-19 महामारी के फिर से फैलने का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आपूर्ति संबंधित समस्याएं बढ़ सकती हैं, लेकिन साथ ही चीन में हालात सामान्य होने पर जिंस कीमतों में तेजी आ सकती है।
इसमें कहा गया है, ‘इसके अलावा, अमेरिका में आसान उधारी की संभावना हाल के महीनों में बढ़ी है, और इस वजह से तेल के लिए अमेरिकी मांग बनी रह सकती है। इसी तरह, तेल से जुड़ी भू-राजनीति का खासकर हमारी आयातित मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ सकता है।’
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई मई 2022 से रीपो दर 225 आधार अंक तक बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत कर चुका है। भले ही मुद्रास्फीति चरम पर है, लेकिन मुख्य मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत के आसपास बनी हुई है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अगले सप्ताह फिर से दरों में 25 आधार अंक का इजाफा कर सकती है।
समीक्षा में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 में मुद्रास्फीति की चुनौती इस साल की तुलना में काफी कम गंभीर रहेगी। इसमें 2022 में सीपीआई मुद्रास्फीति के तीन चरणों का जिक्र किया गया है – अप्रैल तक 7.8 प्रतिशत, फिर अगस्त तक 7 प्रतिशत और फिर उसके बाद दिसंबर में घटकर 5.7 प्रतिशत के आसपास रही।
सरकार ने कहा है, ‘मुद्रास्फीति में तेजी रूस-यूक्रेन युद्ध और देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक गर्मी के कारण फसल पैदावार में आई कमी की वजह से आई थी। सरकार और आरबीआई ने प्रयास तेज किए और इसे केंद्रीय बैंक के निर्धारित स्तर के दायरे में लाने में सफलता मिली।’
आरबीआई ने खुदरा महंगाई को 4 प्रतिशत पर बनाए रखने का लगातार प्रयास किया। लेकिन 2022 की तीन तिमाहियों (जनवरी-मार्च, अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर) में औसत मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर रही, जिसे आरबीआई की विफलता के तौर पर देखा गया।
मौद्रिक नीतिगत सख्ती के अलावा समीक्षा में सरकार द्वारा इस दिशा में उठाए गए अन्य कई उपायों का भी जिक्र किया गया है, जिनमें पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कमी, गेहूं उत्पादों के निर्यात पर सख्ती, चावल पर निर्यात शुल्क लगाना, दलहनों पर आयात शुल्क और उपकर घटाना मुख्य रूप से शामिल हैं।