Budget 2025: आने वाला केंद्रीय बजट ऐसे समय में पेश किया जाएगा जब देश की आर्थिक वृद्धि धीमी हो रही है। वित्तीय बाजारों में बढ़ती अस्थिरता, विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट और वैश्विक नीति की अनिश्चितताओं ने चुनौतियां बढ़ा दी हैं। साथ ही, अमेरिका में नई सरकार बनने से वैश्विक माहौल और भी जटिल हो गया है। इन परिस्थितियों में बजट का मुख्य फोकस विकास को तेज करना और 2047 तक ‘विकसित भारत’ के विज़न को पूरा करने की दिशा में कदम उठाना होना चाहिए।
बजट में इन पांच क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा…
कोविड के बाद सरकार का फोकस कैपेक्स के जरिए आर्थिक सुधार पर रहा है, जो अब तक सफल रहा है। हालांकि, इसे जारी रखने के साथ ही अब कंजम्पशन बढ़ाने के कदम उठाने की भी जरूरत है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कंजम्पशन यानी खपत बढ़ेगी, तो इससे प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए बजट में पर्सनल इनकम टैक्स में 5% तक की कटौती पर विचार करना चाहिए। भले ही इससे जीडीपी का 0.2% राजस्व नुकसान होगा, लेकिन इससे लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी और कंज्यूमर सेंटिमेंट में सुधार होगा।
कमजोर जॉब क्रिएशन और कम रियल वेज ग्रोथ ने कंज्यूमर सेंटिमेंट को कमजोर किया है। आरबीआई के हाउसहोल्ड सर्वे के मुताबिक, महामारी के बाद से ही लोगों का भरोसा नकारात्मक बना हुआ है। ऐसे में, टैक्स में कटौती और खर्च करने की क्षमता बढ़ाने से डिमांड में सुधार हो सकता है, जो अर्थव्यवस्था को गति देगा।
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सरकार को अपने फिस्कल कंसॉलिडेशन प्रयासों की गति को थोड़ा धीमा करने की जरूरत है, ताकि ग्रोथ बढ़ाने वाले कदमों पर ध्यान दिया जा सके। सरकार ने FY26 तक फिस्कल डेफिसिट को GDP के 4.5% से कम करने का लक्ष्य रखा था।
अगर केंद्र FY26 में GDP के 4.7% फिस्कल डेफिसिट का लक्ष्य हासिल करता है और FY28 तक 4.5% के स्तर पर पहुंचता है, तब भी जनरल गवर्नमेंट डेब्ट-टू-GDP रेश्यो घटते हुए ट्रैक पर रहेगा।
आर्थिक ग्रोथ की धीमी रफ्तार को देखते हुए, फिस्कल कंसॉलिडेशन को धीरे-धीरे लागू करना चाहिए। साथ ही यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि डेट का ट्रेंड नीचे की ओर बना रहे।
भारत की बड़ी आबादी एग्रीकल्चर सेक्टर पर निर्भर है। अगर देश को डेवलप्ड बनाना है, तो एग्री सेक्टर को स्ट्रॉन्ग करना बहुत जरूरी है। एग्रीकल्चर में 45% लोग काम करते हैं, लेकिन ये देश की टोटल इनकम (GVA) में सिर्फ 18% का ही कंट्रीब्यूशन देता है।
बजट में खेती की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने पर फोकस होना चाहिए। इसके लिए टेक्नोलॉजी को प्रमोट करना, रिसर्च और इनोवेशन को सपोर्ट करना जरूरी है। खासतौर पर उन एग्री स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना चाहिए जो टेक्नोलॉजी को अच्छे से यूज कर रहे हैं। इसके लिए ‘एग्रीकल्चर एक्सीलरेटर फंड’ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
पशुपालन, बागवानी और फिशरीज जैसे एग्री-अलाइड सेक्टर्स को भी प्रमोट करना चाहिए ताकि किसानों की इनकम और लेबर प्रोडक्टिविटी बढ़ सके।
इसके साथ ही, एग्री-प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और एग्री-एक्सपोर्ट्स को बढ़ावा देना भी इंपोर्टेंट है। फसलों की ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेती और इंडस्ट्री के बीच स्ट्रॉन्ग कनेक्शन बनाना भी जरूरी है।
सरकार को कुछ ऐसे सेक्टर्स की पहचान करनी चाहिए, जिनमें एक्सपोर्ट और रोजगार बढ़ाने की बड़ी क्षमता हो। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो और ऑटो-एंसीलरी, टेक्सटाइल्स और फुटवियर जैसे सेक्टर्स शामिल किए जा सकते हैं। इन सेक्टर्स में निवेश आकर्षित करने के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार करना जरूरी है। इसके लिए मौजूदा औद्योगिक क्लस्टर्स को और बेहतर बनाना होगा और नए क्लस्टर्स बनाने होंगे। इन क्लस्टर्स में पूरी सुविधाएं और बैकवर्ड-फॉरवर्ड लिंकिंग पर ध्यान देना जरूरी है, जैसा कि पिछले केंद्रीय बजट में भी बताया गया था।
इन सेक्टर्स में सप्लाई चेन को बेहतर बनाने के लिए सरकार को इनपुट मटेरियल पर इम्पोर्ट टैरिफ कम करने जैसे कदम उठाने चाहिए। साथ ही, कंपनियों को प्रेरित करना चाहिए कि वे इन क्लस्टर्स में स्किलिंग सेंटर्स बनाएं या मौजूदा स्किलिंग इंस्टीट्यूट्स के साथ मिलकर काम करें। इससे लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से ट्रेनिंग मिलेगी और उन्हें इन क्लस्टर्स में आसानी से रोजगार मिल सकेगा।
इन क्लस्टर्स के जरिए मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने से भारत ‘चाइना-प्लस-वन’ के मौके का फायदा उठा सकता है। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और कृषि क्षेत्र से अतिरिक्त वर्कफोर्स को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लाया जा सकेगा। फिलहाल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सिर्फ 11% वर्कफोर्स काम कर रहा है।
एक और अहम बात यह है कि देश के 40% फैक्ट्री जॉब्स सिर्फ तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र तक सीमित हैं। इसलिए बाकी राज्यों में भी इन क्लस्टर्स को विकसित करना जरूरी है। इसके लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि देश के हर हिस्से में औद्योगिक विकास हो सके।
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भारत के पास एक खास मौका है, जो कई देशों के पास नहीं है – तेजी से बढ़ती वर्किंग-एज पॉपुलेशन। जहां दुनिया के ज्यादातर देश एजिंग पॉपुलेशन की प्रॉब्लम फेस कर रहे हैं, वहीं भारत अपनी युवा पॉपुलेशन का सही तरीके से इस्तेमाल करके बड़ी तरक्की कर सकता है। लेकिन इसके लिए ये जरूरी है कि हमारे वर्कर्स को वो स्किल्स मिले, जिससे वे प्रोडक्टिव तरीके से काम कर सकें।
अभी हाल ये है कि भारत में सिर्फ 4.4% वर्कफोर्स फॉर्मली स्किल्ड है, जबकि चीन में ये नंबर 24% है और डेवलप्ड कंट्रीज़ में ये आंकड़ा और भी ज्यादा है। सरकार ने पिछले कुछ बजट्स में स्किलिंग प्रोग्राम्स और ITIs (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट्स) को अपग्रेड करने पर फोकस किया है। लेकिन अब इस स्पीड को और तेज़ करना बहुत जरूरी है, ताकि हम अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का पूरा फायदा उठा सकें।
इसके साथ ही, ग्रोथ को तेज़ करना भी उतना ही जरूरी है। लेकिन ये ग्रोथ सस्टेनेबल और इनक्लूसिव होनी चाहिए। कैपेक्स (Capex) पर लगातार ध्यान देने के साथ-साथ कंजम्पशन बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे। ऐसा करने से हमारी इकोनॉमी की ग्रोथ रफ्तार और बेहतर हो सकती है।
लॉन्ग-टर्म सस्टेनेबिलिटी के लिए सबसे ज़रूरी है कि हमारी बड़ी वर्कफोर्स को सही तरीके से रोजगार मिले। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा जॉब्स क्रिएट करनी होंगी और यह पक्का करना होगा कि वर्कफोर्स स्किल्ड हो, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी नई चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए।
(डिस्क्लेमर: यह लेख रजनी सिन्हा द्वारा लिखा गया है, जो CareEdge Ratings की चीफ इकॉनमिस्ट हैं। व्यक्त विचार उनके अपने हैं। इनका hindi.business-standard.com या बिजनेस स्टैंडर्ड हिंदी अखबार की राय से कोई लेना-देना नहीं है।)