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लेखक : शेखर गुप्ता

आज का अखबार, लेख

राष्ट्र की बात: चीन-भारत सैन्य परिदृश्य बजट बढ़ाने की जरूरत

हम अपनी सेना के बारे में बहुत बातें करते हैं लेकिन उस पर उतना खर्च नहीं करते हैं जितना करने की आवश्यकता है। भारत और चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से अपनी-अपनी सेना हटाना हमारे राष्ट्रीय संकल्प की दावेदारी की दिशा में एक अहम कदम है। यह याद दिलाता है कि भारत और चीन […]

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राष्ट्र की बात: कांग्रेस- अस्तित्व या मजबूती का सवाल

अगर मैं कहूं कि बीते दो दशक में कांग्रेस के साथ घटित दो सबसे बुरी बातें रहीं 2004 के आम चुनाव में जीत और 2024 में लोक सभा में 99 सीट जीतना तो? आप शायद मुझसे कहेंगे कि मैं अपनी दिमागी हालत की जांच करवाऊं। इससे पहले कृपया मेरी बात सुनें। कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र और […]

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राष्ट्र की बात: विदेशों में बसे सिख उपद्रवियों से परेशान न हो भारत

बड़े और पुराने खतरे दोबारा सिर उठा रहे हैं और पीढ़ियों से दफन प्रेत फिर उठ रहे हैं तो सेना को हटाना या कम करना कैसे सही ठहराया जा सकता है? हम पंजाब और सिखों की बात कर रहे हैं। आप पूछ सकते हैं कि जंग के हालात आखिर कहां हैं? पंजाब खामोश है और […]

आज का अखबार, लेख

राष्ट्र की बात: फिलिस्तीन मसला और हमारी उदासीनता

गाजावासियों और खासतौर पर फिलिस्तीनियों के लिए भारतीयों के मन में सहानुभूति इतनी कम क्यों है? हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला के मारे जाने का समय छोड़ दें तो कोई खास विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं हो रहा है? नसरल्ला के मारे जाने पर भी ज्यादातर विरोध कश्मीर घाटी और लखनऊ के शिया बहुल इलाकों में ही […]

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राष्ट्र की बात: सेना और आस्था के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था

अगर आप वादा करें कि जवाब तलाशने में गूगल की मदद नहीं लेंगे तो मैं आपसे एक प्रश्न करूंगा। कृपया मुझे बताइए कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में आपने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के अलावा और कौन सा नाम सुना है? पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महा सभा से इतर अमेरिका से लेकर […]

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लोकतंत्र में धैर्य और उसका महत्त्व: श्रीलंका, नेपाल, भारत ने अस्थिरता से कैसे पाई जीत, बांग्लादेश और पाकिस्तान क्यों रहे असफल

श्रीलंका में सीमित ढंग से कराए जा रहे चुनाव में वहां के लोग एक नए राष्ट्रपति का चुनाव कर रहे हैं और यह उपयुक्त अवसर है कि हम खुद को यह याद दिलाएं कि महज दो वर्ष पहले वहां जिस तरह की घटनाएं घटी थीं, उसके बाद वहां के लोगों ने कितने परिपक्व और शांतिपूर्ण […]

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मणिपुर संकट: भाजपा की पहचान की राजनीति और पूर्वोत्तर में बढ़ती चुनौतियां

बीते एक दशक में जब-जब नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों का जिक्र आया है तो ‘ताकतवर’ शब्द बार-बार देखने को मिला है। प्रश्न यह है कि वर्तमान सरकार वाकई में ताकतवर है या कमजोर? मणिपुर इसकी शुरुआत करने के लिए एक बढ़िया जगह है। अगर आप मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक हैं […]

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राष्ट्र की बात: रचनात्मक स्वतंत्रता का दुरुपयोग गलत

आश्वस्त रहिए यह नेटफ्लिक्स पर आई अनुभव सिन्हा की वेबसिरीज ‘आईसी-814 : द कंधार हाइजैक’ पर आधारित एक और आलेख नहीं है। बल्कि यह आलेख समकालीन इतिहास के किसी भी अध्याय या व्यक्तित्व पर आधारित कला, साहित्य, सिनेमा या टीवी सिरीज से जुड़ी भयावह या शारीरिक दृष्टि से खतरनाक चुनौती को लेकर व्यापक विमर्श को […]

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राष्ट्र की बात: बांग्लादेशी हिंदुओं की चिंता और भारत का रुख

यह ऐसा दौर है जहां छोटे-मोटे विवाद भी भू राजनीतिक बहसों के विवाद में बदल जाते हैं। पिछले दिनों नरेंद्र मोदी और जो बाइडन के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद अमेरिका और भारत के बयानों में जो अंतर है उसे हम इसी आलोक में देख सकते हैं और मजाक के रूप में खारिज […]

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राष्ट्र की बात: मोदी का तीसरा कार्यकाल और तीन ‘सी’ का जाल

सी से शुरू होने वाला एक शब्द सेंसस यानी जनगणना अचानक राष्ट्रीय सुर्खियों का विषय बन गया है, जबकि इसे एक आम विषय होना चाहिए था। जैसा कि हम जानते हैं यह समय भी हमारे राजनीतिक इतिहास का आम समय नहीं है। पिछले दशक में कई पुराने नियम नए सिरे से तैयार हुए, कुछ नियम […]

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