राष्ट्र की बात: भारत और उसके बाहर अदाणी समूह का मूल्यांकन
सेबी नए सिरे से जांच शुरू कर सकता है। संसद में शोर होगा और विदेशी पूंजी तक अदाणी की पहुंच असंभव हो जाएगी। इस बार नुकसान कहीं गहरा और लंबा असर डालने वाला होगा। तकरीबन दो साल में अदाणी समूह ने तीन बार बड़ी अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी हैं: पहली बार उसके कर्ज को लेकर, दूसरी […]
राष्ट्र की बात: दो मोर्चों पर रोकथाम के लिए कुछ सुझाव
दो सप्ताह पहले हमने देश के रक्षा बजट में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और राष्ट्रीय बजट दोनों के प्रतिशत में कमी आने को लेकर कुछ प्रश्न उठाए थे। हमने वादा किया था कि अगले आलेख में हम यह चर्चा करेंगे कि कैसे संसाधन जुटाकर अगले चार सालों में इसे जीडीपी के 1.9 फीसदी से जीडीपी […]
ट्रंप, मोदी, राहुल और चुनाव का फॉर्मूला तीन
चुनावी जीत का फॉर्मूला तीन स्तंभों पर टिका है और सफल प्रचार अभियान को उन पर आधारित होना चाहिए। ट्रंप ने इस पर अमल किया। मोदी ने भी 2014 और 2019 में ऐसा किया मगर 2024 में नहीं। अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत हमें क्या बताती है कि नेता ऐसा क्या करते हैं कि […]
राष्ट्र की बात: चीन-भारत सैन्य परिदृश्य बजट बढ़ाने की जरूरत
हम अपनी सेना के बारे में बहुत बातें करते हैं लेकिन उस पर उतना खर्च नहीं करते हैं जितना करने की आवश्यकता है। भारत और चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से अपनी-अपनी सेना हटाना हमारे राष्ट्रीय संकल्प की दावेदारी की दिशा में एक अहम कदम है। यह याद दिलाता है कि भारत और चीन […]
राष्ट्र की बात: कांग्रेस- अस्तित्व या मजबूती का सवाल
अगर मैं कहूं कि बीते दो दशक में कांग्रेस के साथ घटित दो सबसे बुरी बातें रहीं 2004 के आम चुनाव में जीत और 2024 में लोक सभा में 99 सीट जीतना तो? आप शायद मुझसे कहेंगे कि मैं अपनी दिमागी हालत की जांच करवाऊं। इससे पहले कृपया मेरी बात सुनें। कांग्रेस पार्टी महाराष्ट्र और […]
राष्ट्र की बात: विदेशों में बसे सिख उपद्रवियों से परेशान न हो भारत
बड़े और पुराने खतरे दोबारा सिर उठा रहे हैं और पीढ़ियों से दफन प्रेत फिर उठ रहे हैं तो सेना को हटाना या कम करना कैसे सही ठहराया जा सकता है? हम पंजाब और सिखों की बात कर रहे हैं। आप पूछ सकते हैं कि जंग के हालात आखिर कहां हैं? पंजाब खामोश है और […]
राष्ट्र की बात: फिलिस्तीन मसला और हमारी उदासीनता
गाजावासियों और खासतौर पर फिलिस्तीनियों के लिए भारतीयों के मन में सहानुभूति इतनी कम क्यों है? हिजबुल्ला प्रमुख हसन नसरल्ला के मारे जाने का समय छोड़ दें तो कोई खास विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं हो रहा है? नसरल्ला के मारे जाने पर भी ज्यादातर विरोध कश्मीर घाटी और लखनऊ के शिया बहुल इलाकों में ही […]
राष्ट्र की बात: सेना और आस्था के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था
अगर आप वादा करें कि जवाब तलाशने में गूगल की मदद नहीं लेंगे तो मैं आपसे एक प्रश्न करूंगा। कृपया मुझे बताइए कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में आपने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के अलावा और कौन सा नाम सुना है? पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महा सभा से इतर अमेरिका से लेकर […]
लोकतंत्र में धैर्य और उसका महत्त्व: श्रीलंका, नेपाल, भारत ने अस्थिरता से कैसे पाई जीत, बांग्लादेश और पाकिस्तान क्यों रहे असफल
श्रीलंका में सीमित ढंग से कराए जा रहे चुनाव में वहां के लोग एक नए राष्ट्रपति का चुनाव कर रहे हैं और यह उपयुक्त अवसर है कि हम खुद को यह याद दिलाएं कि महज दो वर्ष पहले वहां जिस तरह की घटनाएं घटी थीं, उसके बाद वहां के लोगों ने कितने परिपक्व और शांतिपूर्ण […]
मणिपुर संकट: भाजपा की पहचान की राजनीति और पूर्वोत्तर में बढ़ती चुनौतियां
बीते एक दशक में जब-जब नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों का जिक्र आया है तो ‘ताकतवर’ शब्द बार-बार देखने को मिला है। प्रश्न यह है कि वर्तमान सरकार वाकई में ताकतवर है या कमजोर? मणिपुर इसकी शुरुआत करने के लिए एक बढ़िया जगह है। अगर आप मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक हैं […]