भारत का सिनेमाई राष्ट्रवाद और मनोज कुमार का असर
बीते छह दशकों में भारतीय राष्ट्रवाद या देशभक्ति किस तरह विकसित हुई है इसे समझने का एक नजरिया इस बात पर नजर डालना भी हो सकता है कि सिनेमा, खासकर बॉलीवुड ने अलग-अलग दौर में इसे किस तरह परिभाषित किया। ‘भारत’ मनोज कुमार (वास्तविक नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी) के निधन ने हमें यह अवसर दिया […]
ट्रंप की धमकी और सुधार का अवसर
डॉनल्ड ट्रंप का आगमन और ‘ट्रंपवाद’ का तेज उभार भारत के लिए अच्छा है या बुरा? व्हाइट हाउस में आने के बाद से वह एक ही राग अलाप रहे हैं, ‘दुश्मन क्या हमें तो अपनों ने भी लूट लिया।’ तब से वह अपने दोस्तों को ही निशाना बना रहे हैं। सामरिक और रक्षा में यूरोप […]
भारत को गढ़ने वाले वे उन्नीस महीने
लाल बहादुर शास्त्री के 19 महीने के कार्यकाल की विरासत को ताशकंद शांति समझौते तक समेट देना उनके साथ न्याय नहीं है। पलटकर देखें तो 19-19 महीने के दो दौर नजर आएंगे, जिन्होंने तीन पीढ़ियों में हमारे अतीत को गढ़ा है, हमारा वर्तमान तय किया है और एकदम अलहदा तरीकों से हमारे भविष्य को भी […]
बोफोर्स तथा राजीव काल के बहाने स्थिति का आकलन
बोफोर्स तथा अन्य बातों के लिए राजीव गांधी को कोसने का चलन बन गया है मगर सच यह है कि 1985 से 1989 तक वह इकलौता दौर था, जब हमारे देश ने भविष्य को ध्यान में रखकर हथियार खरीदे थे। सबसे पहले वादा कीजिए कि आप लेख का आखिरी हिस्सा पहले नहीं पढ़ेंगे। इस लेख […]
अफसरशाही पर विपरीत है ट्रंप और मोदी का नजरिया
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जिस समय ईलॉन मस्क को देश की अफसरशाही यानी ब्यूरोक्रेसी पर लगाम कसने के अधिकार दे दिए हैं लगभग उसी समय भारत में मोदी सरकार ने आठवें वेतन आयोग की अधिसूचना जारी कर दी है। इनमें से पहला यानी ट्रंप का कदम सरकार का आकार कम करने और खर्च […]
परमाणु हथियारों की वापसी का दौर
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को मुसीबत में बेसहारा छोड़ दिया है, ग्रीनलैंड को नॉटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) के सहयोगी डेनमार्क से छीनने की धमकी दी है और और यूरोप को तो यह कहकर रुला ही दिया है कि व्लादीमिर पुतिन से खुद ही निपटो। ऐसे में कुछ सवाल तो बनते […]
राष्ट्र की बात: डीप स्टेट, शैलो स्टेट नॉन-स्टेट की बहस
अभी 2025 शुरू ही हुआ है और लगता है कि ‘डीप स्टेट’ को ‘वर्ष का शब्द’ करार दे दिया जाएगा। कुछ भी गलत होता है तो ठीकरा डीप स्टेट के सिर फोड़ दिया जाता है। मगर यह कोई मिथक नहीं है। यह हमारे जीवन और शासन व्यवस्था का उतना ही अंग है, जितना शैलो स्टेट […]
मूर्ति और सुब्रमण्यन के बयानों की अहमियत
लोगों को एक हफ्ते में आखिर कितना काम करना चाहिए? इस सवाल पर हाल में बहुत आक्रोश जताया गया। किसी विषय पर बहस के बजाय आक्रोश बहुत सोच-समझकर जताया जाता है। सबसे पहले इन्फोसिस के संस्थापक एन नारायण मूर्ति ने कहा कि कर्मचारियों को हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए। कुछ दिन बाद ही […]
समाजवाद के साथ परमाणु ऊर्जा का वादा
हमारे देश में बजट हरेक साल उबाऊ होता जा रहा है और वह भी इतना कि बाजार भी पसोपेश में पड़ जाता है। बजट की बातें बाजार के पल्ले ही नहीं पड़ती हैं और उसे समझ ही नहीं आता कि ऊपर जाए या गोता खाए। एक तरह से यह अच्छी बात है। लेकिन मैं भी […]
मध्य वर्ग और मोदी: दिल है कि मानता नहीं
भारत की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है और इसकी सबसे ज्यादा चोट मध्य वर्ग पर पड़ रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इसकी परवाह क्यों नहीं है और वह उन्हें तवज्जो क्यों नहीं दे रही है, इस पर बाद में आएंगे। उससे पहले ज्यादा बड़े संकट की बात कर लेते हैं। भारत की आर्थिक […]









