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हिंदुओं को निशाना बनाना भारत की परीक्षा के समान

आईएसआई की मंशा यह रही है कि भारत में हिंदू मौजूद अल्पसंख्यकों से बदला लेने पर उतारू हो जाएंगे। वह भारत में ऐसा संकट तैयार करना चाहती है कि यहां गृह युद्ध की स्थिति बन जाए

Last Updated- April 27, 2025 | 9:51 PM IST
प्रतीकात्मक तस्वीर

पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए आप कम से कम यह नहीं कह सकते कि उनका कोई भरोसा नहीं है, कब क्या कर जाएं। भारत के खिलाफ आतंकवाद शुरू करने के बाद पिछले 45 साल में हमेशा पता रहता है कि वे क्या करने जा रहे हैं।

पहले तो इस रणनीति को समझते हैं। इसके लिए कई नाम इस्तेमाल किए गए- छद्म युद्ध, हजारों जख्म देकर मौत, हिंसक जिहाद आदि। लेकिन आईएसआई के इन तरीकों में एक बात बराबर नजर आती है और वह है – पाकिस्तानी जिहादी लश्करों या भारतीय अल्पसंख्यकों में से आतंकियों के जरिये हिंदुओं को निशाना बनाना। उन्हें लगता है कि हिंदू अपने देश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध खड़े हो जाएंगे। वे भारत में ऐसा संकट लाना चाहते थे कि देश में गृह युद्ध की स्थिति बन जाए। इससे हम खुद से ही लड़ रहे होते और भारत सामरिक, सैन्य, राजनीतिक तथा नैतिक रूप से कमजोर होता। सबसे अहम बात: भारत के हिंदू बहुसंख्यक गुस्से और हताशा में अपने ही अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हो जाते तो दो राष्ट्र का सिद्धांत सही साबित हो जाता।

हम इसे सबसे अहम क्यों कह रहे हैं? विदेश में रहने वाले पाकिस्तानियों को पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने 16 अप्रैल को जो भाषण दिया, उसे देखिए। अपने ही देश में उनकी विश्वसनीयता जिस तरह कम हो रही है और वे जिस तरह कुरान का हवाला देकर आक्रामक बातें कर रहे हैं, उनसे आप समझ सकते हैं कि दर्द कहां उठ रहा है। यह दर्द पाकिस्तान की बुनियाद रखने वाले उस द्विराष्ट्र सिद्धांत की नाकामी से आया है, जो 1971 में ध्वस्त हो गया था। पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांतों में जातीय अल्पसंख्यक नए सिरे से इसे चुनौती दे रहे हैं। वे सभी मुस्लिम हैं। उनमें से कई तो पाकिस्तान से अलग होने के लिए मरने-मारने पर उतारू हैं।

इसके बावजूद आप द्विराष्ट्र सिद्धांत और पाकिस्तान की विचारधारा की बात कैसे करते हैं? यह साबित करके कि भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों का दमन हो रहा है। इसके लिए वह कायदे आजम का धन्यवाद करते हैं भले ही जिन्ना होते तो शायद जनरल के इस सुझाव को खारिज कर देते कि पाकिस्तान का निर्माण इस्लामिक कलमा के आधार पर किया गया था। या अंग्रेजीदां जिन्ना को यह समझने में ही मुश्किल होती कि पाकिस्तान की इस विचारधारा के स्वयंभू संरक्षक अपनी भद्दी अंग्रेजी में कहना क्या चाह रहे हैं। हमने 45 साल पहले की बात से शुरुआत इसलिए की क्योंकि यह सब तभी शुरू हुआ था, जब अफगानिस्तान में सोवियत आक्रमण के बाद से जब अमेरिका और पश्चिम तथा पश्चिम एशिया में उसके साथियों ने पाकिस्तान को अपना साझेदार बनाया था। उन्होंने इस्लामिक जिहाद का इस्तेमाल ‘काफिर’ सोवियत के खिलाफ रणनीति के रूप में किया था। अगर कम्युनिस्टों को काफिर घोषित किया जा सकता है तो हिंदुओं को किया ही जा सकता है।

इसकी शुरुआत 1980-81 में पंजाब में भिंडरांवाले के उदय के साथ हुई। शुरुआत में उसने पुलिस और निरंकारी पंथ के लोगों को निशाना बनाया लेकिन जल्दी ही हिंदू उसके निशाने पर आ गए। हिंदुओं को अलग करके मारने की पहली घटना 5 अक्टूबर 1983 को हुई। पंजाब में ढिलवाना कस्बे से कपूरथला जा रही एक बस को रास्ते में रोका गया और छह हिंदुओं को बाहर निकालकर गोली मार दी गई। यह हमला इतना बड़ा झटका था कि पूरा भारत उबल पड़ा। इंदिरा गांधी ने पंजाब में दरबारा सिंह के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

आने वाले महीनों में हिंदुओं को छांट-छांट कर उनकी हत्या की जाने लगी और बाद में यही आंतकी हमलों का तरीका बन गया। 1989 से कश्मीरी आतंकी समूहों ने भी ऐसा ही करना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत पंडितों को प्रताड़ित करने और उनकी हत्या करने से हुई। आईएसआई समर्थित समूहों या लश्कर ए तैयबा ने मंदिरों, शादियों, होली-दीवाली के त्योहारों, रामलीला और हिंदू धार्मिक जुलूसों पर हमले करना शुरू कर दिया। तब हिंदुओं को मजबूरन पलायन करना पड़ा और वे देश भर में बिखर गए। एक समय तो एक भारतीय आतंकी संगठन भी खड़ा हो गया, जो पूरी तरह आईएसआई से जुड़ा था। तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन ने देश भर में बम विस्फोट किए। इनमें दिल्ली में 2005 में हुए धमाके (जिनमें 62 जानें गईं), जयपुर में 2008 में हुए धमाके (63 मौतें) और 2008 में दिल्ली में ही फिर हुए बम धमाके (20 लोगों की मौत) शामिल थे।

बीते 45 सालों में हिंदुओं को निशाना बनाकर करीब 100 हमले किए गए। 1994 तक हमलावरों में पंजाब के आतंकी भी शामिल थे। इसका ब्योरा आपको साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल पर मिल जाएगा। मैं दिल्ली और जयपुर बम धमाकों के अलावा कुछ चुनिंदा घटनाएं याद दिलाता हूं, जहां इक्का-दुक्का आतंकियों को छोड़कर मरने वाले लगभग सभी हिंदू थे: ढिलवां बस हमला (1983, 6 मृत), फतेहाबाद बस हमला (1987, 34 मृत), रुद्रपुर रामलीला बम धमाका (1991, 41 मृत), लुधियान ट्रेन हत्याकांड (1991, 125 मृत)। इसके अलावा 1993 में चेन्नई आरएसएस कार्यालय में 11 लोग, 1996 में लाजपत नगर धमाकों में 13 लोग, 1996 में राजस्थान के दौसा धमाकों में 14 लोग, 1998 में कोयंबत्तूर धमाकों में 58 लोग, मार्च और नवंबर 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर में 12 और 14 लोग, 2002 में अक्षरधाम मंदिर में विस्फोट में 33 लोग, 2011 में अफजल गुरु की रिहाई की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में हुए धमाकों में 15 लोग मारे गए थे।

ये सैकड़ों हमलों में से बस कुछ हैं। इसमें मुंबई लोकल में हुए सिलसिलेवार धमाके और 26/11 का आतंकी हमला शामिल नहीं। कहने का अर्थ है कि आईएसआई की रणनीति रही है प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदुओं को मारना। वे चाहते हैं कि हिंदू उग्र हों और अपने देश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाएं। इतना ही नहीं इससे गर्त में पड़ी पाकिस्तानी सेना की लोकप्रियता भी बढ़ेगी।

मैं आपको 1993 के बंबई धमाके याद दिलाता हूं। धमाके से पहले वाली शाम को एके-47 और गोले चुनिंदा जगहों पर रखे गए थे, जिनमें अभिनेता संजय दत्त का घर भी था। विचार यह था कि अयोध्या दंगों के बाद (जो उसी समय हुए थे) शिव सैनिक मुस्लिम बहुल इलाकों में हमले करेंगे और इन हथियारों का इस्तेमाल पुलिस तथा आम लोगों को मारने के लिए किया जाएगा। उसके बाद पूरे भारत में जो आग लगती उसे कौन काबू कर पाता? उस समय मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी रहे एम एन सिंह याद दिलाते हैं कि उस समय महाराष्ट्र पुलिस के पास एक भी एके-47 नहीं थी।

शरद पवार को कई बार इसीलिए कोसा जाता है कि उन्होंने अपने उस झूठ के बारे में बताया, जब उन्होंने कहा था कि एक मस्जिद में भी बम फटा था। वह थोड़ा समय चाहते थे ताकि संवेदनशील जगहों पर पुलिस तैनात कर दंगे भड़कने से रोके जा सकें। यह एक अनुभवी नेता का समझदारी भरा कदम था। दंगे नहीं हुए और बंबई ने आईएसआई को परास्त कर दिया।

पाकिस्तान की कोशिश रही है कि भारतीय हिंदुओं को इतना गहरा और लंबा दर्द दिया जाए कि वे आखिरकार अपने अल्पसंख्यकों से बदला लेना शुरू कर दें। यही वजह है कि कनाडा में भी सिख कट्‌टरपंथी, पाकिस्तानियों के साथ मिलकर हिंदू मंदिरों पर हमले करते हैं। आइए देखते हैं कि कौन इसे अच्छी तरह समझते हैं। ऐसे लोगों को हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक विपरीत ध्रुवों में देख सकते हैं। मोदी ने बिहार में अपने भाषण में हिंदू, कलमा या सांप्रदायिक संकेत वाला कोई शब्द इस्तेमाल नहीं किया। यह बेहद समझदारी भरा कदम था। संघ में नंबर दो की हैसियत रखने वाले दत्तात्रेय होसबले ने पहलगाम हमले को ‘पर्यटकों’ की हत्या करार दिया। वे जानते हैं कि इस समय देश में आंतरिक स्थिरता कितनी जरूरी है।

ओवैसी ने भी आतंकवादियों के लिए अत्यधिक कठोर भाषा का इस्तेमाल किया जो हमारी राजनीति में किसी ने यहां तक कि भाजपा के धुर दक्षिणपंथियों या युद्धोन्मांदी चैनलों तक ने नहीं इस्तेमाल की। उन्हें पता है कि पाकिस्तानियों ने जानबूझकर हिंदुओं पर हमला किया है। वह हिंदुओं से कहना चाहते हैं कि भारतीय मुसलमान उनके साथ हैं। वे हमारे साथी नागरिक हैं कोई शत्रु नहीं।

आईएसआई और पाकिस्तान ने एक बार फिर भारतीय बहुसंख्यकों के धैर्य की परीक्षा ली है। हम हिंदुओं को उसकी यह कोशिश एक बार फिर नाकाम करनी होगी। आखिर हमारे पास अपना कहने को केवल एक ही मुल्क है। हमारा अस्तित्व 5,000 साल से अधिक पुराना है, हम किसी विचारधारा के नाम पर हाल में बने देश नहीं हैं।

First Published - April 27, 2025 | 9:51 PM IST

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