
महत्वहीन विषयों में उलझा देश
पिछले कुछ दिनों से नीति निर्धारण करने वाले महकमे का ध्यान दो प्रमुख घटनाओं पर केंद्रित रहा है। इनमें एक है विदेश में किए जाने वाले कुछ खर्चों (मुझे स्पष्ट नहीं है किस खर्च पर) पर विदहोल्डिंग टैक्स (किसी व्यक्ति की आय से काटी जाने वाली राशि जिसका सीधा भुगतान सरकार को होता है) लगाना […]

महंगाई और इसके सामाजिक-आर्थिक परिणाम
महंगाई तभी चिंता का कारण बनती है जब वस्तु एवं सेवाओं की कीमतें आय की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती हैं। अगर महंगाई 10 प्रतिशत बढ़ती है और प्रत्येक परिवार की आय में भी 10 प्रतिशत का इजाफा होता है तो यह विशेष चिंता की बात नहीं होती है। हालांकि, महंगाई केवल किसी एक […]

बंधुता, समृद्धि और ध्रुवीकरण
भारत में अंतरसरकारी राजकोषीय रिश्तों का अब तक का एक अत्यंत सुखद और बंधुता दर्शाने वाला गुण रहा है-राज्यों के बीच करों के समांतर बंटवारे की दिशा में होने वाली प्रगति। हर पांच वर्ष पर नियुक्त होने वाले वित्त आयोगों की अनुशंसा ने दोनों तरह के बंटवारे की अनुशंसा की है: केंद्र और राज्यों के […]

बजट में वृहद राजकोषीय चुनौतियों के प्रबंधन पर जोर
व्यापक राजकोषीय दृष्टिकोण से वित्त वर्ष 2023-24 का बजट बेहतर माना जा सकता है। यह वर्ष 2016 में अरुण जेटली द्वारा पेश चर्चित बजट के बाद से अब तक का सबसे शानदार बजट है। बजट की घोषणाओं के क्रियान्वयन और वृहद राजकोषीय हालात के प्रबंधन में वित्त मंत्रालय कई बार कमजोर साबित हुआ है। वर्ष […]

परिवर्तन के बिना संभव नहीं कोई सार्थक सुधार
अमीर देशों में बहुपक्षीय विकास बैंकों में आवश्यक सुधारों के प्रति अनिच्छा का भाव दिखता है, तीन उभरती अर्थव्यवस्थाओं को मिलने जा रही जी-20 की अध्यक्षता से उम्मीद बंधी है। बता रहे हैं रथिन रॉय कोविड के बाद की दुनिया में जलवायु संकट और अमीर एवं गरीब देशों के बीच अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही […]