भारत की जी20 अध्यक्षता की सफलता के बारे में असुरक्षित सत्ताधारी अभिजात वर्ग का मानना है कि उसे तभी सफल माना जाएगा जब विदेशियों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाएगा। वैश्विक तकदीर के निर्धारण में भारत की अहम भूमिका को भी वे तभी स्वीकार करेंगे। बहरहाल, जी20 अध्यक्षता का संबंध भारत से नहीं बल्कि भारत की अच्छा प्रदर्शन कर सकने की क्षमता से है कि वह पिछली अध्यक्षताओं का किस प्रकार लाभ लेता है और आने वाले अध्यक्ष को कैसी विरासत सौंपता है।
भारत ने यह अध्यक्षता कठिन समय पर हासिल की थी। यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था, वैश्वीकरण सिमट रहा था और जलवायु और विकास योजनाओं को वित्तीय मदद पहुंचाने की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो पा रही थी। अपेक्षाएं भी अधिक नहीं थीं। भारत ने बाहरी मोर्चे पर जो प्रचार किया वह भी बहुत मददगार नहीं हुआ। एकदम उत्तर कोरियाई शैली में पूरे वर्ष सार्वजनिक शौचालयों से लेकर ट्रेन टिकट तक हर चीज पर जी20 के लोगो और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर चस्पा नजर आई।
हममें से जो लोग वित्तीय रुझानों पर नजर रखते हैं उन्हें भी थोड़ी घबराहट के साथ यह यकीन था कि निचले स्तर की बैठकों में प्रगति हुई है और भारत की वित्त मंत्री और उनकी तकनीकी तथा अफसरशाही पेशेवरों की टीम ने प्रभावी प्रदर्शन किया है। परंतु साझा सहमति वाले बयान जारी करने में शुरुआती नाकामी के बीच एक अहम सवाल यह था कि क्या नेताओं की सहमति पर आधारित बयान सामने आ सकेगा?
नेताओं का घोषणापत्र अनुमान से एक दिन पहले पेश कर दिया गया। यह जी 20 शेरपाओं और वित्त मंत्रियों की कड़ी कूटनीतिक मेहनत का नतीजा था। इसके साथ ही इसे उच्च स्तरीय राजनीतिक काम भी माना गया।
यह भारत की जी20 अध्यक्षता के लिए एक अहम सफलता थी। जो संवाद जारी किया गया उसमें यूक्रेन पर हमला करने वाले देश के रूप में रूस का उल्लेख नहीं है बल्कि ‘यूक्रेन में युद्ध’ का उल्लेख है। इसमें अन्य मानक राजनयिक बातें शामिल हैं जो सभी विकासशील देशों की साझा स्थिति को दर्शाती हैं और जो इस विषय पर संयुक्त राष्ट्र के अधिक आक्रामक प्रस्तावों से दूर रहती हैं।
इससे आर्थिक सहयोगी की दिशा में प्रगति की राह आसान हुई। वित्तीय मोर्चे पर इस क्षेत्र में महत्त्वाकांक्षाओं को नरमी के साथ पेश किया गया जबकि शेरपा ट्रैक की बात करें तो वहां ज्यादा बोझिल चीजें थीं। अपने यूपीआई और फिनटेक क्षमताओं को लेकर भारत के नजरिये ने उसे महत्त्वाकांक्षी प्रस्ताव पेश करने के लिए प्रेरित किया। इसमें यूपीआई को डिजिटल भुगतान ढांचे का विश्व गुरु मानने की बात शामिल थी।
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इस बात को औपचारिक तौर पर नहीं माना गया लेकिन भारत की वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना कोष के निर्माण की योजना को स्वीकार कर लिया गया जिसका श्रेय दिया जाना चाहिए। बाकी के लिए मौखिक रूप से सदिच्छा जताई गई और मौजूदा पहलों को तवज्जो दी गई। यह एकदम सामान्य है।
इसके बावजूद स्टार्टअप 20 नामक एक अन्य समूह बना दिया गया जो स्टार्टअप के सभी अंशधारकों में तालमेल कायम करेगा। इससे यह संकेत भी निकला कि वित्तीय क्षेत्र में अहम बदलाव करने होंगे ताकि इस पर गंभीरता से काम शुरू हो सके और महंगे तथा परिणामोन्मुखी नहीं रह गए शेरपा ट्रैक को सुसंगत बनाया जा सके।
वित्तीय ट्रैक पर सबसे उल्लेखनीय प्रगति इटली की अध्यक्षता में हुई थी जब बहुपक्षीय विकास बैंकों को मजबूत बनाने से संबंधित एक विशेषज्ञ समूह ने कुछ समझदारी भरे प्रस्ताव रखे थे। उक्त विशेषज्ञ समूह की अध्यक्षता भारत और अमेरिका ने साझा रूप से की थी। इस समूह ने विभिन्न वैश्विक कारकों और वित्तीय पेशेवरों से विशेषज्ञ राय हासिल की। इसे अमेरिका और भारत से मजबूत समर्थन मिला जिसका अर्थ यह भी हुआ कि पूंजी पर्याप्तता ढांचे में कुछ तकनीकी बदलाव किए गए।
दूसरा और अधिक महत्त्वाकांक्षी एजेंडा रहा रियायती दर पर अधिक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। यह एक अहम कामयाबी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आचरण और इसकी वित्तीय इंजीनियरिंग पहल से संचालन संबंधी व्यवस्थाओं को जोड़ने से संबंधित पैराग्राफ में सहमति पूरी तरह उभरते बाजारों की दीर्घकालिक अर्थव्यवस्था को लेकर पूरी तरह सुसंगत थी। भारत को यह श्रेय भी दिया जाना चाहिए कि वह अमेरिका तथा कुछ अन्य देशों के साथ इन मसलों पर राजनीतिक मोलतोल करने में कामयाब रहा। हालांकि कर्ज के मोर्चे पर चीन के रुख के कारण कुछ खास प्रगति नहीं हो सकी।
जलवायु की बात करें तो विभिन्न स्थितियों के बीच समझौता लाजिमी है। कार्बन निरपेक्षता और विशुद्ध शून्य जैसे शब्द बरकरार हैं। नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा किफायत आपस में संबद्ध हैं और दोनों में इजाफा करने के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यूरोपीय कार्बन बॉर्डर समायोजन कर को खामोशी के साथ पैराग्राफ 19 में जगह दी गई है।
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व्यापार के मोर्चे पर यह एक चतुराईभरा कदम है जिस पर यूरोप का ध्यान नहीं गया। भारत के जलवायु और व्यापार वार्ताकारों ने हमेशा साथ मिलकर अच्छा काम किया है और जी20 में यह बात विकासशील देशों के हित में साबित हुई। जलवायु वित्त संबंधी पैराग्राफ में इस बात को रेखांकित किया गया कि जलवायु वित्त की चुनौती से निपटने के लिए अनुकूलन करना होगा। इसके लिए पूरी पारिस्थितिकी के रखरखाव पर जोर दिया गया।
मैंने पिछले एक वर्ष में आर्थिक कूटनीति में एक अहम बदलाव दर्ज किया है। वह बदलाव यह है कि भारत ने जलवायु, पर्यावरणीय स्थिरता, ऋण और बहुपक्षीय सुधार पर अमेरिका और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच बेहतरीन रिश्तों को भारत ने बहुत तत्परता के साथ भुनाया है। मैंने अमेरिकी वित्त विभाग के दस्तावेज पढ़े हैं जिनमें नेकनीयत यूरोपीय जलवायु वित्त योद्धाओं से कहा गया है कि वे जलवायु के बारे में कम और पर्यावरण के बारे में अधिक बात करें।
इसकी वजह से यूरोप के लिए अपनी राह बनाना मुश्किल हो रहा है और चीन अलग हो गया है। अन्य मझोली आर्थिक शक्तियों ने इसे समझ लिया है और वे अपनी जगह बदल रही हैं। चूंकि अगली दो अध्यक्षताएं भी उभरते देशों के पास हैं इसलिए अगर यह साझा नजरिया विकसित होता है तो हमें वास्तविक प्रगति देखने को मिल सकती है।
भारत ने राजनीतिक उथलपुथल के बीच राह निकाली है और महत्त्वपूर्ण आर्थिक नेतृत्व दिखाया है ताकि जी20 प्रगति कर सके। मैं चाहता हूं कि हमारे देश के नेता थोड़ा कम असुरक्षित महसूस करें और यह समझें कि दिल्ली में गरीबी और झुग्गियों को विदेशी अतिथियों से छिपाना अनावश्यक और क्रूर था। मेरे लिए यही एक बात बुरी थी वरना तो भारत के लिए यह बहुत अच्छा अवसर साबित हुआ।
(लेखक ओडीआई, लंदन के प्रबंध निदेशक हैं)