दक्षिण भारत के लोग देश के बाकी हिस्सों के लोगों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक ऋण बोझ तले दबे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पता चलता है कि देश के दक्षिणी क्षेत्र में अधिक समृद्धि होने के कारण लोगों की ऋण लेने और उसे चुकाने की क्षमता अधिक है।
सांख्यिकी मंत्रालय की द्विवार्षिक पत्रिका सर्वेक्षण के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि आंध्र प्रदेश में हर 5 में से 2 से अधिक लोगों ने ऋण ले रखा है। वहां ऋण लेने वालों का हिस्सा 43.7 फीसदी है। उसके बाद 37.2 फीसदी के साथ तेलंगाना, 29.9 फीसदी के साथ केरल, 29.4 फीसदी के साथ तमिलनाडु, 28.3 फीसदी के साथ पुदुच्चेरी और 23.2 फीसदी के साथ कर्नाटक का स्थान है। इसके विपरीत, राष्ट्रीय स्तर पर 2021 में भारत की वयस्क आबादी के लगभग 15 फीसदी लोगों ने ऋण ले रखा था।
अध्ययन में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 78वें दौर (2020-21) के मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे (एमआईएस) के इकाई स्तर के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘ऋण लेने और पारिवारिक आर्थिक स्थिति के बीच सीधा संबंध है। साथ ही ऋण लेने और परिवार के आकार के बीच विपरीत संबंध है।’
इंडिया रेटिंग्स के सहायक निदेशक पारस जसराय ने इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दक्षिणी राज्यों में लोगों की प्रति व्यक्ति आय अधिक है। उनके पास अधिक संपत्ति है और वित्तीय समावेशन भी बेहतर है। यही कारण है कि इन राज्यों में ऋण लेने के मामले भी अधिक हैं और परिवारों की कर्ज लेने की क्षमता भी अधिक है।
जसराय ने कहा, ‘वहां के लोगों के पास खर्च करने लायक आमदनी भी अधिक है। उनका ऋण बनाम जमा अनुपात भी देश के बाकी हिस्सों से ऊपर है। इसलिए वहां के लोगों को अपने
ऋण की अदायगी का पूरा भरोसा है। वित्तीय संस्थानों को भी उन्हें ऋण देने में कोई समस्या नहीं है। मगर यह जानकारी मिलने पर कि ये ऋण किस उद्देश्य से लिए जाते हैं, यह पता लगाया जा सकता है कि दक्षिणी राज्यों के परिवारों में ऋणग्रस्तता अपेक्षाकृत अधिक क्यों है।’
अध्ययन में किसी परिवार के सदस्य को ऋण लेने वाले के रूप में वर्गीकृत किया गया है बशर्ते उसने किसी संस्थागत या गैर-संस्थागत स्रोतों से कम से कम 500 रुपये का नकद ऋण लिया हो और सर्वेक्षण की तारीख तक वह रकम बकाया हो। अध्ययन में ऋणग्रस्तता का अनुमान 15 वर्ष और इससे अधिक उम्र के लोगों यानी वयस्कों के लिए लगाया गया है।
प्रमुख राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच दिल्ली में सबसे कम लोगों ने ऋण ले रखा है। दिल्ली के महज 3.4 फीसदी लोगों ने ऋण लिया है। उसके बाद 6.5 फीसदी के साथ छत्तीसगढ़, 7.1 फीसदी के साथ असम, 7.2 फीसदी के साथ गुजरात, 7.5 फीसदी के साथ झारखंड, 8.5 फीसदी के साथ पश्चिम बंगाल और 8.9 फीसदी फीसदी के साथ हरियाणा का स्थान है।
अध्ययन में ग्रामीण (15.0 फीसदी) और शहरी लोगों (14.0 फीसदी) के बीच ऋणग्रस्तता में कोई बड़ा अंतर नहीं पाया गया। जहां तक जातिगत समूहों का सवाल है तो ऋणग्रस्तता के मामले में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आबादी (16.6 फीसदी) सबसे ऊपर और अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी (11.0 फीसदी) सबसे नीचे है। धार्मिक समूहों में कोई खास अंतर नहीं दिखा।
अध्ययन में कहा गया है, ‘स्वरोजगारियों, वेतनभोगियों और आकस्मिक दिहाड़ी श्रमिकों के बीच काफी अधिक ऋणग्रस्तता पाई गई। मगर उन लोगों के बीच कम ऋणग्रस्तता दिखी जो शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े थे, काम नहीं करते थे लेकिन काम की तलाश में थे और/अथवा काम के लिए उपलब्ध थे या फिर दिव्यांगता एवं अन्य के कारणों से काम करने में असमर्थ थे।’