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महत्वहीन विषयों में उलझा देश

Last Updated- June 01, 2023 | 11:17 PM IST
Nirmala Sitharaman

पिछले कुछ दिनों से नीति निर्धारण करने वाले महकमे का ध्यान दो प्रमुख घटनाओं पर केंद्रित रहा है। इनमें एक है विदेश में किए जाने वाले कुछ खर्चों (मुझे स्पष्ट नहीं है किस खर्च पर) पर विदहोल्डिंग टैक्स (किसी व्यक्ति की आय से काटी जाने वाली राशि जिसका सीधा भुगतान सरकार को होता है) लगाना और दूसरा था 2,000 रुपये मूल्य के नोट वापस लिए जाने की घोषणा। ये दोनों भी उन खबरों जैसे ही हैं जिन्हें लोग नाई की दुकान में अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते हैं। मुंबई में इसे ‘टाइमपास’ करना भी कहते हैं। ये शायद ही ऐसे विषय हैं जो राष्ट्र की आर्थिक एवं राजनीतिक दशा-दिशा को प्रभावित करते हैं। पिछले कुछ समय से मैं भारत की आर्थिक वृद्धि एवं संपन्नता से जुड़ी गंभीर खामियों की तरफ इशारा कर रहा हूं।

विवेक कॉल ने हाल में अपने एक आलेख में कहा है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के चारों तत्त्वों- निजी उपभोग, निजी निवेश, सरकारी गतिविधियां और शुद्ध निर्यात- सभी की रफ्तार सुस्त पड़ रही है। निजी उपभोग सुस्त रहा है।

धनाढ्य लोग जिन चीजों-ट्रैक्टर, हवाई यात्रा एवं स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी)- का इस्तेमाल कर रहे हैं उनकी मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। मगर जिन चीजों एवं सुविधाओं का इस्तेमाल ज्यादातर भारतीय करते हैं उनकी मांग पिछले 10 वर्षों से जस की तस ही रही है। इनमें दोपहिया वाहन, रोजमर्रा के इस्तेमाल की सस्ती वस्तुएं शामिल हैं। यहां तक कि रेल यात्रा खंड में भी हलचल नहीं दिख रही है।

पारिवारिक, निजी एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आदि स्तरों पर निवेश पिछले दस वर्षों से स्थिर रहा है। शुद्ध निर्यात लगातार नकारात्मक रहा है। सरकारी गतिविधियां इस शिथिलता की भरपाई नहीं कर सकती हैं। तेजी से बढ़ते सरकारी व्यय के लिए रकम पर्याप्त नहीं है क्योंकि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था गरीब एवं असमानता के संकट में फंसी है।

ब्रिटेन में व्यक्तिगत कर प्रति व्यक्ति आय के एक तिहाई हिस्से पर लगाए जा सकते हैं। भारत में यह प्रति व्यक्ति आय के दोगुना स्तर पर शुरू होते हैं। इसका कारण यह है कि जो लोग कम कमाते हैं उनकी व्यक्तिगत आय पर कर लगाए गए तो वे आर्थिक रूप से पिछड़ जाएंगे।

हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने रकम जुटाने के लिए विनिवेश प्रक्रिया तेज की है मगर खराब क्रियान्वयन एवं बाजार पूरी तरह परिपक्व नहीं होने से यह प्रयास अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में विफल रहा है। संसाधन जुटाने का प्रयास इतना फीका रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से मिलने वाली रकम वित्तीय रूप से कमजोर केंद्र सरकार के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत बन गया है।

सरकार जो भी राजस्व अर्जित करती है और जितनी रकम उधार लेती है वे कुछ पहले से ‘तय’ मदों में चले जाते हैं। इनमें एक तो ब्याज के मद में होने वाला भारी भरकम भुगतान है जो पिछले कई वर्षों से राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिए बाजार एवं अन्य स्रोतों से लिए गए ऋणों का नतीजा है। दूसरा, महंगाई से बेअसर सरकारी कार्यबल है जिसमें रत्ती भर भी कमी नहीं की जा सकती है। इसका कारण बिल्कुल स्पष्ट है क्योंकि सरकारी नौकरियां अब भी युवाओं के लिए भविष्य सुरक्षित करने का एक मात्र जरिया लग रही हैं।

1991 से समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में विफल रहने के बाद राज्य सरकार एवं केंद्र सार्वजनिक धन का इस्तेमाल वृद्धि दर बढ़ाने एवं सार्वजनिक हितों के लिए करने के मुआवजा आधारित भुगतान पर अधिक कर रहे हैं। 80 करोड़ लोगों में सस्ते अनाज का वितरण, युवाओं पर बढ़ती बेरोजगारी दर का असर कम करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत लोगों को सीमित अवधि के रोजगार और बुजुर्ग लोगों को उनकी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने के लिए दी जाने वाली रकम इसका उदाहरण हैं।

सरकार को ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है कि वह युवाओं को शिक्षित एवं हुनरमंद बनाने में विफल रही है। सरकार जान बूझकर ऐसा नहीं कर रही है बल्कि इसके अलावा उसके पास और कोई रास्ता नहीं रह गया है। प्रचंड गरीबी दूर करना सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता है। दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में घनघोर गरीबी है और देश की 60 प्रतिशत से भी अधिक आबादी प्रति महीने 8,000 रुपये से कम पर गुजारा कर रही है।

ये सभी गंभीर चुनौतियां हैं और इनके समाधान के लिए गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं। हमें संरचनात्मक मांग की समस्या से जूझना पड़ता है। हम उन चीजों का उत्पादन या आयात तो कर लेते हैं जिनका इस्तेमाल शीर्ष 15 करोड़ लोग करते हैं मगर उन चीजों का उत्पादन या बंदोबस्त नहीं कर पाते हैं जिनका उपभोग देश की 40 प्रतिशत आबादी सस्ते दाम पर करना चाहती है।

सूचीबद्ध कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है मगर निवेश पिछड़ रहा है। वित्तीय संसाधन जुटाने में जूझती सरकार को अपने सीमित संसाधनों का इस्तेमाल इसलिए एक बड़ी आबादी के लिए करना पड़ रहा है क्योंकि वह आर्थिक संपन्नता बढ़ाने में विफल रही है।

आयात पर व्यय लगातार बढ़ रहा है और संसाधनों का इस्तेमाल खासकर उन महंगी सुविधाओं के आयात के लिए होता है जो भारत अपने अमीर लोगों को नहीं दे सकता है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम हो गई है।

मगर इससे भी अधिक अफसोस की बात यह है कि नीतिगत तंत्र गहरी मानसकि निष्क्रियता का शिकार हो चुका है। सरकार इस बीच अपना ही राग अलाप रही है। जी-20 समूह की अध्यक्षता इस बार भारत के पास होने की बात को सरकार भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सरकार इसे एक बड़ी उपलब्धि बताकर अपनी पीठ ऐसे थपथपा रही है मानो जैसे उसने कोई चमत्कार कर दिया हो।

समावेशी आर्थिक संपन्नता का लक्ष्य हासिल करने की राह में पेश आने वाली चुनौतियों से निपटने के स्थान पर सरकार नारे एवं खोखले वादों का ताना-बाना बुनती रहती है। उत्तर प्रदेश नेपाल की तुलना में गरीब है मगर इसमें भारत का सबसे समृद्ध जिला शामिल है। तमिलनाडु और केरल इंडोनेशिया की तरह संपन्न हैं मगर सांस्कृतिक एवं सांप्रदायिक मुद्दों पर बढ़ती आक्रामकता से बेहाल हैं।

इन समस्याओं के कारण हम राष्ट्र को आर्थिक संपन्न बनाने की वह रणनीति नहीं तैयार कर पा रहे हैं जिससे दक्षिण भारत की आर्थिक मजबूती का लाभ लेकर उत्तर एवं पूर्व को भी समृद्ध बनाया जा सके।

आर्थिक नीतियां तैयार करना एक तकनीकी एवं बुद्धिमता से जुड़ा कार्य है। इसे एक कुंठित मानसिकता के साथ क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। विभाजनकारी सांस्कृतिक-धार्मिक एवं इससे जुड़ी लोगों की असंतुष्टि दूर करने में समय जाया करना या फिर 2,000 रुपये के नोट और विदेश में किए जाने वाले खर्च जैसे छोटी बातों में उलझे रहना इसी कुंठित मानसिकता का उदाहरण है।

जब आंखों से पर्दा हटेगा और नीति निर्धारक वास्तविकता के धरातल पर आएंगे तो तब तक काफी देरी हो चुकी होगी। अवसर मिलने पर भी नुकसान की भरपाई और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए अथक प्रयास करने होंगे। फ्रैंको का स्पेन, सलाजार का पुर्तगाल, मार्कोस का फिलिपींस, मुबारक का मिस्र, टीटो का यूगोस्लाविया सभी उस गर्त से निकलने में पेश आने वाली कठिनाइयों का उदाहरण हैं जहां गंभीर आर्थिक विषयों के साथ मजाक किसी देश को धकेल सकता है।

First Published - June 1, 2023 | 10:04 PM IST

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