आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने मंगलवार को भारत से वित्तीय क्षेत्र में ढांचागत सुधारों को बढ़ावा देने का आग्रह किया। ओईसीडी ने भारत से अनुरोध किया कि वह बैंकों व बीमा कंपनियों में सरकारी स्वामित्व घटाए और बाधाओं को दूर करके प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में उदारीकरण को बढ़ावा दे।
ओईसीडी ने नवीनतम रिपोर्ट ‘गोइंग फॉर ग्रोथ 2023’ में देश-वार ढांचागत प्राथमिकताओं को उजागर किया है ताकि सफलतापूर्वक हरित और डिजिटल बदलाव का मार्ग प्रशस्त हो सके। इससे वृद्धि की बुनियाद को भी मजबूती मिलेगी। यह सिफारिशें चार प्रमुख क्षेत्रों जैसे सामाजिक सहायता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने, संभावित वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों के समुचित इस्तेमाल की बाधाओं को दूर करना, कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में तेजी से बढ़ने और उत्पादकता आधारित वृद्धि के लिए डिजिटल बदलाव को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
इसमें यह भी कहा गया कि गैर निष्पादित ऋणों में कमी और परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (कथित बैड बैंक) के बावजूद समाधान की प्रक्रिया धीमी बनी हुई है।
ओईसीडी ने कहा कि सरकार को आर्थिक क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए दिवाला व ऋण शोधन संहिता प्रक्रिया व गैर निष्पादित संपत्तियों के प्रबंधन को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसके अलावा समुचित सरकारी पर्यवेक्षण को बढ़ावा दिया जाए। इस दौरान श्रम नियामकों के आधुनिकरण और कौशल विकास कार्यक्रमों से गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के सृजन की सलाह दी गई।
पेरिस स्थित अमीर देशों के इस समूह ने कहा कि भारत टिकाऊ और सुरक्षित हाई स्पीड ब्राडबैंड को बढ़ावा दे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों और गरीब घरों की सेवाएं बेहतर होंगी। सरकार से डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने और महिलाओं व हाशिए पर खड़े समूहों सहित अन्य को शिक्षा व प्रशिक्षण देकर कौशल विकास करने का आग्रह भी किया गया।
इसमें कहा गया कि मोबाइल फोन की उच्च पहुंच और वित्त, शिक्षा व स्वास्थ्य में सरकारी सेवाओं के डिजिटलीकरण से सार्वजनिक नीतियों का संवर्द्धन होने के बावजूद भारत डिजिटली रूप से व्यापक स्तर पर विभाजित है। यह विभाजन स्थान, लिंग, उम्र, आय व संपत्ति व कंपनी के आधार पर है।
ओईसीडी ने कहा कि भारत में मौद्रिक व बहुआयामी गरीबी की दर में गिरावट आई है। महामारी से पहले से ही अवसरों की असमानता और सामाजिक सुरक्षा चुनौती बनी हुई है। प्रवासी कर्मचारी व महिलाएं खराब प्रतिस्पर्धा व कौशल के स्तर के कारण खासतौर पर कमजोर थे।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘शिक्षा का अधिकार अनिवार्य रूप से 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा मुहैया करवाता है। हालांकि इसका वास्तविक रूप से दायरा कम है।