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Opinion: क्या चीन का भी जापान जैसा होगा हाल?

पिछले कई वर्षों से चीन की आर्थिक तरक्की में 30 प्रतिशत से अधिक योगदान देने वाला रियल एस्टेट अत्यधिक कड़े नियामकीय उपायों से बहुत प्रभावित हुआ है।

Last Updated- July 20, 2023 | 9:52 PM IST
China

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को अपस्फीति (deflation in China) के उसी दौर से गुजरना पड़ सकता है जिसका सामना जापान ने 1990 के दशक के शुरू में किया था। बता रहे हैं श्याम सरन

कुछ दिन पहले चीन यात्रा के दौरान मुझे यह समझने का अवसर मिला कि नवंबर 2022 में कोविड महामारी का प्रसार रोकने के लिए सख्त पाबंदी होने के बाद वहां की अर्थव्यवस्था किस दिशा में बढ़ रही है।

कोविड के खतरे को देखते हुए यातायात पर पाबंदियों से घरेलू एवं बाह्य आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियां दोनों प्रभावित हुई थीं। 2022 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 3 प्रतिशत रह गई, जो पिछले कई वर्षों में निम्नतम स्तर पर रही।

पिछले कई वर्षों से चीन की आर्थिक तरक्की में 30 प्रतिशत से अधिक योगदान देने वाला रियल एस्टेट अत्यधिक कड़े नियामकीय उपायों से बहुत प्रभावित हुआ है। इस क्षेत्र में तेजी का बुलबुला फूट चुका है जिसका असर दूसरे क्षेत्रों खासकर, बैंकिंग एवं वित्त क्षेत्र पर विशेष रूप से देखा जा रहा है।

पहली तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही

उम्मीद की जा रही थी कि कोविड-संबंधी पाबंदियों के हटने के बाद अर्थव्यवस्था तेज गति से दौड़ पड़ेगी। 2023 की पहली तिमाही में तेजी दिखी भी थी। इस अवधि में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही थी, जिसे देखते कैलेंडर वर्ष में वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था।

मगर जून में समाप्त हुई तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर तेजी से फिसल गई। यह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 6.7 प्रतिशत रही थी, मगर यह कम आधार प्रभाव को दर्शाता है। पिछली तिमाही की तुलना में वृद्धि दर 1 प्रतिशत से कम रही है।

चीन के एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने मुझसे कहा कि देश की अर्थव्यवस्था अत्यधिक कठिन समय से गुजर रही है और कम से कम अगले तीन-चार वर्षों के दौरान आर्थिक सुस्ती हावी रह सकती है।

उन्होंने कहा कि पिछले 40 वर्षों में पहली बार विभिन्न क्षेत्रों में चीन के लोगों के वेतन में कमी की गई। ऐसे अवसर जरूर आए होंगे जब वहां लोगों की आय नहीं बढ़ी होगी मगर यह पहला मौका था जब बड़ी संख्या में लोगों की आय पहले से कम थी और वे भविष्य को लेकर आशावादी नहीं थे।

उन्होंने युवा बेरोजगारी का भी जिक्र किया जो इस समय 20 प्रतिशत से ऊपर है। वैश्विक स्तर पर आर्थिक हालात से भी भविष्य धुंधला नजर आ रहा है और भू-राजनीतिक हालात ने परिस्थितियां और गंभीर बना दी हैं। उन्होंने माना कि ये सभी कारक सामाजिक स्तर पर असंतोष पैदा कर रहे हैं मगर इससे शी चिनफिंग सरकार को कोई खतरा नहीं है।

हाल में प्रकाशित विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था के समक्ष इस समय कई चुनौतियां हैं। रिपोर्ट में संदेह जताया गया है कि चालू वर्ष के लिए अनुमानित 5.6 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल हो पाएगी या नहीं। रिपोर्ट के अनुसार 2024 में वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत और 2025 में 4.4 प्रतिशत तक लुढ़क सकती है।

इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2022 के अंत तक चीन पर कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 287 प्रतिशत के साथ अब तक के सर्वकालिक स्तर पर पहुंच गया है। यह स्थिति चीन को आर्थिक रफ्तार बढ़ाने के लिए वृहद स्तर पर वित्तीय प्रोत्साहन उपाय नहीं करने देगी।

रियल एस्टेट क्षेत्र के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि वास्तविक निवेश में 6.2 प्रतिशत की कमी आई है जबकि इस साल की पहली तिमाही में आवासीय परियोजनाओं की शुरुआत में 21.2 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। भूमि इस्तेमाल के अधिकार की स्थानीय सरकार द्वारा की जाने वाली बिक्री में इस तिमाही में सालाना आधार पर 21.7 प्रतिशत की गिरावट आई है।

2022 में इसमें पहले ही 23.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। इसका आशय है कि स्थानीय सरकार के राजस्व के प्रमुख स्रोत पर बड़ा असर आया है। चीन के वित्त मंत्रालय ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि स्थानीय सरकारों पर कर्ज का भारी भरकम बोझ है। कुछ विश्लेषकों के अनुसार यह आंकड़ा अधिक, संभवतः दोगुना भी हो सकता है। यह चीन की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है और स्थानीय सरकारों द्वारा भूमि-उपयोग के अधिकारों की बिक्री में कमी इस बात का संकेत है कि समस्या और गहराएगी।

स्थानीय सरकारों की कठिनाइयां बैंकिंग क्षेत्र के लिए भी खतरा बढ़ा सकती है। बैंकों की कुल परिसंपत्तियों में स्थानीय सरकारों के वित्तीय साधनों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत रहती है। बकाया आवास ऋण 2022 के अंत में 40.6 लाख करोड़ रेनमिनबी (आरएमबी) या 5.7 लाख करोड़ डॉलर का था और कुल बैंक ऋणों में इनकी हिस्सेदारी 18 प्रतिशत थी।

चीन में महंगाई दर काफी कम

प्रॉपर्टी डेवलपरों को आवंटित ऋण काफी कम (कुल ऋणों का महज 5.9 प्रतिशत) थे। चीन के बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) 2 प्रतिशत के साथ अब भी काफी कम हैं। अगर आर्थिक सुस्ती गहराई तो यह स्थिति बदल सकती है।

चीन में महंगाई दर काफी कम है। यह कमजोर मांग और उत्पादक मूल्यों में कमी का नतीजा है। यह अपस्फीति के चरण की शुरुआत मानी जा सकती है। 1990 के दशक के शुरू में जापान में इसी तरह की अपस्फीति का दौर दिखा था, जो रियल एस्टेट की कीमतों में अचानक कमी, फंसे ऋणों में बढ़ोतरी और तेजी से उम्रदराज हो रही आबादी का नतीजा था। 1990 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में जापान की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत थी, लेकिन 20 वर्षों में यह कम होकर केवल 8 प्रतिशत रह गई।

नीतिगत घोषणाओं में चीन की अर्थव्यवस्था को लगातार निवेश आधारित के बजाय उपभोग आधारित बनाने पर जोर दिया गया है मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया है। उपभोग अब भी तुलनात्मक रूप से 40 प्रतिशत के निचले स्तर पर है जबकि सर्वाधिक परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं में यह 60 प्रतिशत से ऊपर है।

तीन वर्षों तक कोविड महामारी की चोट से उपभोक्ता मांग पर असर हुआ है और उस पर स्थिर या तेजी से कम होती आय ने मुश्किलें और बढ़ा दी है। निक्केई में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार चीन में खुदरा बिक्री कोविड पूर्व की अवधि में दर्ज स्तर से अब भी 10 प्रतिशत से कम है। खराब हो रहे आर्थिक हालात को देखते हुए चीन के लोग सतर्कता बरतते हुए अधिक बचत कर रहे हैं। परिवारों में बचत का स्तर कोविड पूर्व अवधि में दर्ज बचत दर से इस समय 3 प्रतिशत अधिक है जो संकेत दे रहा है कि लोग खर्च करने से कतरा रहे हैं।

चीन की अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने की आशंका पहले भी कई बार जताई जा चुकी है मगर इसने तमाम अनुमानों को सदैव धता बताया है। इसे देखते है चीन को लेकर किसी तरह का अनुमान लगाने में सतर्कता बरती जानी चाहिए। चीन में एक मजबूत एवं सक्षम सरकार है जिसमें भावी संकट से निपटने के लिए कड़ी नीतियां लागू करने की पर्याप्त क्षमता है। इसे स्थानीय सरकारों पर कर्ज के भारी बोझ का पुनर्गठन करना होगा। उपभोग बढ़ाने के लिए इसे लोगों तक सीधे रकम पहुंचानी होगी।

तकनीकी नवाचार इस समाधान का हिस्सा है मगर अत्याधुनिक तकनीक पर भारी व्यय अधिक कारगर नहीं रहा है। शी चिनफिंग सरकार निजी क्षेत्र को लेकर असहज रहा है जबकि पिछले चार दशकों में इस क्षेत्र ने आर्थिक वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। क्या सरकार अपना यह रुख बदलेगी?

चीन के कई वार्ताकारों के साथ बातचीत में भारत के अंतरराष्ट्रीय पूंजी एवं तकनीक के प्रवाह के प्रमुख गंतव्य बनकर उभरने और चीन की तुलना में इसकी अर्थव्यवस्था इस समय अधिक आकर्षक लगने पर आश्चर्य भी जताया गया। यह तर्क दिया गया कि भू-राजनीतिक एवं सुरक्षा चिंताओं का असर व्यापार एवं आर्थिक संबंधों पर पड़ने से चीन पर प्रतिकूल असर हुआ है। मगर यह बात नहीं स्वीकार की गई कि चीन स्वयं इस हालात के लिए जिम्मेदार है।

भारत एवं चीन की अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरी की पूरक हैं। राजनीतिक संबंधों में सुधार (सीमा पर शांति एवं सद्भावना बहाल होने पर) होने से इन दोनों के बीच वृहद आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंधों के लिए संभावनाएं प्रशस्त हो सकती हैं। मगर ऐसा नहीं लग रहा कि चीन यह विकल्प चुनेगा।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च से जुड़े हैं।)

First Published - July 20, 2023 | 9:52 PM IST

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