छोटे और मझोले शेयरों के लिए साल 2025 उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। जहां बड़े और मजबूत शेयरों वाला सेंसेक्स निवेशकों को बेहतर रिटर्न देता दिखा, वहीं स्मॉलकैप और मिडकैप शेयर उससे काफी पीछे रह गए। बाजार के जानकारों का कहना है कि इसकी बड़ी वजह पिछले दो साल की तेज रैली के बाद अब बाजार का ‘नॉर्मल मोड’ में लौटना, हाई वैल्यूएशन पर मुनाफावसूली और वैश्विक अनिश्चितता रही।
विशेषज्ञों के मुताबिक 2023 और 2024 में स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों ने उम्मीद से कहीं ज्यादा तेज दौड़ लगाई थी। साल 2023 में जहां BSE स्मॉलकैप इंडेक्स करीब 47.5 फीसदी और मिडकैप इंडेक्स 45.5 फीसदी चढ़ा था, वहीं 2024 में भी स्मॉलकैप ने 29 फीसदी और मिडकैप ने 26 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दिया।
इतनी तेज बढ़त के बाद कई छोटे और मझोले शेयरों के दाम उनकी कमाई से काफी आगे निकल गए। 2025 में जैसे ही निवेशकों ने मुनाफा निकालना शुरू किया, इन शेयरों पर दबाव बढ़ गया। इसके उलट, मजबूत बैलेंस शीट और स्थिर कमाई वाले बड़े शेयर निवेशकों को ज्यादा सुरक्षित लगे।
अगर 24 दिसंबर 2025 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर साफ दिखती है। BSE मिडकैप इंडेक्स इस दौरान सिर्फ 360.25 अंक यानी करीब 0.77 फीसदी ही चढ़ पाया। BSE स्मॉलकैप इंडेक्स में तो गिरावट देखने को मिली और यह 3,686.98 अंक या करीब 6.68 फीसदी नीचे चला गया।
इसके मुकाबले 30 शेयरों वाला BSE सेंसेक्स 7,269.69 अंक यानी करीब 9.30 फीसदी की बढ़त दर्ज करने में कामयाब रहा। यानी बड़े शेयरों ने साफ तौर पर छोटे शेयरों से बेहतर प्रदर्शन किया।
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एनरिच मनी के CEO पोनमुडी आर का कहना है कि 2025 में स्मॉलकैप और मिडकैप की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह बाजार का संतुलन की ओर लौटना है। उनके मुताबिक 2024 में स्मॉलकैप इंडेक्स ने 29 फीसदी और मिडकैप ने 26 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न दिया था, जो सेंसेक्स से कहीं ज्यादा था।
इस तेज उछाल ने खासतौर पर छोटे शेयरों के वैल्यूएशन को काफी ऊंचा कर दिया, जबकि उनकी कमाई उतनी तेज नहीं बढ़ी। 2025 में इसी असंतुलन में सुधार शुरू हुआ। ग्लोबल अनिश्चितता के बीच निवेशकों ने मजबूत और भरोसेमंद लार्जकैप शेयरों को प्राथमिकता दी।
बाजार विशेषज्ञ बताते हैं कि स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों में ज्यादातर निवेश घरेलू निवेशकों का होता है, जबकि विदेशी निवेशक आमतौर पर बड़े और स्थापित शेयरों में पैसा लगाते हैं।
ट्रस्टलाइन होल्डिंग्स के CEO एन अरुणागिरी के मुताबिक सितंबर 2024 के बाद से बाजार में जो समय आधारित करेक्शन चला, उसमें छोटे और मझोले शेयरों का कमजोर प्रदर्शन करना स्वाभाविक था। इन शेयरों का जोखिम ज़्यादा होता है और ये लिक्विडिटी व निवेशकों के मूड पर जल्दी असर दिखाते हैं।
इसके अलावा अमेरिका-भारत ट्रेड डील को लेकर बढ़ी चिंता, रुपये में अचानक आई गिरावट और लगातार विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली ने पूरे बाजार में “रिस्क-ऑफ” माहौल बना दिया। इसका सबसे ज्यादा असर स्मॉलकैप और मिडकैप सेगमेंट पर पड़ा।
2025 में स्मॉलकैप और मिडकैप इंडेक्स ने काफी उतार-चढ़ाव देखा। BSE मिडकैप इंडेक्स ने 18 नवंबर 2025 को 47,549.4 का 52 हफ्ते का उच्च स्तर छुआ था, जबकि इसका ऑलटाइम हाई 24 सितंबर 2024 को 49,701.15 रहा था।
BSE स्मॉलकैप इंडेक्स 3 जनवरी 2025 को 56,497.39 के एक साल के उच्च स्तर पर पहुंचा, लेकिन 7 अप्रैल को यह गिरकर 41,013.68 के 52 हफ्ते के निचले स्तर तक आ गया। वहीं सेंसेक्स ने 1 दिसंबर 2025 को 86,159.02 का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर छुआ।
मास्टर कैपिटल सर्विसेज के चीफ रिसर्च ऑफिसर रवि सिंह के मुताबिक फरवरी से संभावित भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर बनी अनिश्चितता, कमजोर होता रुपया और ऊंचे वैल्यूएशन मुनाफावसूली की बड़ी वजह बने।
इसके साथ ही विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली ने छोटे शेयरों पर दबाव बनाए रखा, क्योंकि एफआईआई ने अपेक्षाकृत सुरक्षित बड़े शेयरों को तरजीह दी। कमजोर कमाई की रफ्तार और सख्त वैश्विक लिक्विडिटी ने भी निवेशकों को छोटे शेयरों से दूर रखा।
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अगर पिछले कुछ सालों का रिकॉर्ड देखें तो साफ होता है कि स्मॉलकैप और मिडकैप ने कई बार सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन किया है। साल 2024 में सेंसेक्स करीब 8.16 फीसदी और निफ्टी 8.80 फीसदी चढ़ा था, जबकि स्मॉलकैप 29.30 फीसदी और मिडकैप 26.07 फीसदी उछले थे।
2023 में भी सेंसेक्स 18.73 फीसदी बढ़ा, लेकिन स्मॉलकैप और मिडकैप ने क्रमशः 47.52 फीसदी और 45.52 फीसदी की तेज छलांग लगाई थी।
2022 में तस्वीर थोड़ी अलग रही, जब मिडकैप मामूली बढ़त के साथ बंद हुआ और स्मॉलकैप में गिरावट दर्ज की गई, जबकि सेंसेक्स ने साल का अंत 4.44 फीसदी की बढ़त के साथ किया।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 की गिरावट के बाद अब कई अच्छे मिडकैप शेयरों के दाम पहले की तुलना में ज़्यादा वाजिब हो गए हैं। हालांकि पोनमुडी आर का कहना है कि जब तक कमाई में ठोस सुधार नहीं आता, तब तक हर तरफ तेजी की उम्मीद करना सही नहीं होगा। आने वाले दौर में बाजार की चाल लिक्विडिटी से ज़्यादा कंपनियों के फंडामेंटल पर निर्भर करेगी।
एन अरुणागिरी के मुताबिक आगे चलकर रुपये की चाल अहम भूमिका निभाएगी। जैसे-जैसे रुपया स्थिर होगा और अपने ऐतिहासिक रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट के करीब आएगा, वैसे-वैसे बाजार पर दबाव कम हो सकता है और स्मॉलकैप-मिडकैप शेयरों में सुधार देखने को मिल सकता है।
(PTI के इनपुट के साथ)